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मक्के के खेत में बंदगोभी उगाते हैं सदानंद
सरसी (पूर्णिया): सरसी गांव एक छोटे से किसान 72 वर्षीय सदानंद सिंह ने मक्के की खेती में नई तकनीक का प्रयोग कर देश भर के किसानों के लिए इंटर क्रॉपिंग की दिशा में नई दिशा दिखाई है. किसान सदानंद सिंह ने मक्का की खेती के बीच बंधगोभी की उम्दा पैदावार कर कृषि विशेषज्ञों एवं क्षेत्र […]
सरसी (पूर्णिया): सरसी गांव एक छोटे से किसान 72 वर्षीय सदानंद सिंह ने मक्के की खेती में नई तकनीक का प्रयोग कर देश भर के किसानों के लिए इंटर क्रॉपिंग की दिशा में नई दिशा दिखाई है. किसान सदानंद सिंह ने मक्का की खेती के बीच बंधगोभी की उम्दा पैदावार कर कृषि विशेषज्ञों एवं क्षेत्र के सैकड़ों किसानों को अचंभित कर दिया है. यह जानकारी फैलते ही विभिन्न जिलों से बड़े-बड़े किसान एवं कृषि विश्वविद्यालय के छात्र एवं विशेषज्ञ सदानंद सिंह के प्रयोग एवं कृषि पद्धति को देखने पहुंच रहे हैं. और तकनीक की जानकारी जुटाने में लगे हुए हैं. सदानंद सिंह की खेत को देखने कृषि कॉलेज के छात्र-छात्राएं एवं किसानों का सिलसिला जारी है.
कैसे की गयी है खेती
किसान सदानंद सिंह ने बताया कि पहली बार पांच कट्ठा खेत में प्रायोगिक तौर पर मक्के के साथ बंध गोभी की खेती की. उन्होंने बताया कि मक्का बोआई से पूर्व खेत में फर्टिलाइजर आदि डाल कर मक्का का बीज बोया गया. पौधा निकलने के तुरंत बाद बंधगोभी भी बोया. उन्होंने बताया कि बंध गोभी की खेती के लिए अलग से पटवन एवं फर्टिलाइजर की आवश्यकता नहीं है.
बंध गोभी के पत्ते की प्राकृतिक बनावट के कारण कभी अलग से पटवन की आवश्यकता नहीं है. स्वत: ओस या कुहासे से पत्ताें जमा पानी बंध गोभी की जड़ों में चला जाता है. जिससे पर्याप्त पानी पौधे को मिल जाता है. उन्होंने बताया कि बंध गोभी के साथ मक्का की खेती में न तो मक्का को कोई नुकसान है और न ही बंध गोभी को. उन्होंने बताया कि प्रति एकड़ के हिसाब से 16 हजार पौधा बंध गोभी का आता है जिसमें अनुमानित खर्च 10722
रुपये आता है. मक्के के फसल के बीच बंध गोभी की खेती कर किसान प्रति एकड़ लगभग 80000 (अस्सी हजार) तक अतिरिक्त मुनाफा कमा सकते हैं. इससे मक्का की खेती में लगाया गया लागत फसल करने से पूर्व ऊपर हो सकता है.
छोड़ दी थी पोस्टमास्टर की नौकरी : 72 वर्षीय किसान सदानंद सिंह ने बताया कि 75 के दशक में वे पोस्टमास्टर की नौकरी छोड़ कृषि के क्षेत्र में अपना कैरियर बनाने में जुट गये. उन्होंने बताया कि वे लगातार मक्का, गेहूं, धान, पटसन एवं गन्ना की खेती करते आ रहे हैं. वर्ष 2011 में मक्का की खेती को देखने अमेरिका से कृषि वैज्ञानिक पहुंचे थे. इससे पूर्व बनमनखी चीनी मील की तरफ से गन्ना की बेहतर पैदावार के लिए भी पुरस्कृत किये जा चुके हैं. उन्होंने बताया कि कृषि के ही बदौलत अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दिला पाया उनका एक पुत्र सेंट्रल स्कूल में शिक्षक तथा दूसरे पुत्र पशु चिकित्सक है तथा सबसे छोटा पुत्र फौज में कार्यरत है. इसके बावजूद किसान सदानंद सिंह का हौसला खेती के प्रति कम नहीं हुआ है. वे आज भी बेहतर से बेहतर कृषि करने की दिशा में पूरी गंभीरता से प्रयास कर रहे हैं.
कृषि की तकनीक समझने आये किसानों ने की तारीफ
मक्का के साथ बंध गोभी की खेती की तकनीक जानने बनमनखी से पहुंचे किसान अजय सिंह, कटिहार से पहुंचे राजू चौधरी, मधेपुरा से पहुंचे डब्लू यादव, बिहारीगंज से पहुंचे जवाहर मंडल, भागलपुर से पहुंचे किसान डा हलधर, विकास मंडल, भूपेंद्र मंडल, रामदेव यादव आदि समेत विभिन्न जिला से पहुंचे किसानों ने उनके द्वारा अपनाये गये तकनीक की जम कर तारीफ की. किसानों ने बताया कि वे इस प्रकार की तकनीक का प्रयोग अपने-अपने खेतों में भी करेंगे. सफल होने पर बड़े पैमाने पर वे इस तरह की खेती करेंगे. बाहर से पहुंचे तमाम किसान उनकी खेती देख अचंभित थे.
सरकारी स्तर से नहीं मिल रहा लाभ : किसान सदानंद सिंह का कहना है कि कृषि के लिए उन्हें सरकारी स्तर से कोई लाभ नहीं मिलता है. यहां तक की समय-समय पर उन्हें खाद एवं बीजों के लिए यत्र-तत्र भटकना पड़ता है. उनका कहना है कि वे बार-बार फसलों को बेच कर ही अगली खेती करते हैं. उनका कहना है कि कृषि संबंधी योजनाएं तथा उनका लाभ किसानों तक नहीं पहुंच पा रहा है जिसके कारण क्षेत्र के किसान धन के अभाव में कृषि से अभिमुख हो रहे हैं.
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