।।दक्षा वैदकर।।
न्याय को लेकर हमारे समाज की विचारधारा बहुत रोचक है. हम कहते हैं कि जब कोई अपराध करता है, तो उसे सजा मिलनी चाहिए. मैं भी इस बात से सहमत हूं, लेकिन समाज उन लोगों से भी बुरा व्यवहार करता है, जो अपने अपराध की सजा भुगत चुके हैं. सिद्धांत रूप में, उस पुरुष या महिला से कहा जाता है- ठीक है, अब हिसाब बराबर, तुमने जो कानून तोड़ा, उसके लिए सजा भुगत ली. अब मामला खत्म. लेकिन यह मामला कभी खत्म नहीं होता.
यदि अपने जुर्म की सजा भुगत चुका कोई अपराधी अपने मालिक को यह बता दे कि वह जेल की सजा काट चुका है, तो कोई उसे दूसरा मौका नहीं देगा. इसका सीधा-सा कारण यह है कि हम उसे अपराधी के रूप में देखते हैं और सजा काट चुका शब्द भूल जाते हैं. उस व्यक्ति को देख हमारे मन में विचार आता है कि यह व्यक्ति कैदी रहा है, चोर है, झूठा है, जालसाज है आदि. यह बात भी याद रहे कि हम लोगों से वैसा ही व्यवहार करते हैं, जैसा हम उन्हें देखते हैं. इसलिए हम उन पूर्व अपराधियों को चोरों की तरह देखते हैं, तो हम इसी बात की पुष्टि करने में लगे रहते हैं. हम किसी की काल्पनिक व वास्तविक घटना को उसके साथ जोड़ कर देखते हैं. हम उस इनसान से जीने का हक ही छीन लेते हैं.
यह बात केवल अपराधियों तक सीमित नहीं है. कई बार हम अपने दोस्त, रिश्तेदार, पति, पत्नी, बच्चे, साथी कर्मचारी के साथ भी करते हैं. कई बार लोग हमें धोखा दे देते हैं, हमारे साथ बुरा व्यवहार कर बैठते हैं, उनसे कामों में कोई बड़ी गलती हो जाती है, जिससे कंपनी को या हमें भारी नुकसान होता है. यदि वह इनसान उस गलती की सजा भुगत चुका है, उसने माफी मांग ली है, उसे आत्मग्लानि है और वह सुधरने का एक मौका चाहता है, तो क्या आपको वह मौका उसे नहीं देना चाहिए? मेरे हिसाब से निश्चित रूप से देना चाहिए.
यदि आप उस इनसान को मौका नहीं देंगे, तो उसके दिमाग में यही विचार आयेगा कि जब मुङो मौका मिलनेवाला ही नहीं है, कोई मुझ पर भरोसा करनेवाला ही नहीं है, तो भला सुधरने से क्या फायदा? जब बिना गलती के सजा लगातार मिलनी है, तो बेहतर है कि गलती कर के ही मिल जाये.
बात पते कीः
-जब भी कोई व्यक्ति गलती करे और दिल से माफी मांगे, उसे माफ कर दें. उस पर उसी विश्वास के साथ दोबारा जिम्मेवारी सौंपें. उस पर शक न करें.
-गलती हर इनसान करता है, जिसके लिए वह सजा भी भुगतता है. जब हिसाब बराबर हो गया, तो हम उसे दोबारा जीने का मौका क्यों नहीं दे सकते?