।। रविदत्तबाजपेयी ।।
– प्रतिरोध के प्रतिमान श्रृंखला की अंतिम कड़ी (11) में आज पेश है पत्रिका ‘हिमाल’ की यात्रा. संयुक्त राष्ट्र संघ की नौकरी छोड़ कर नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभानेवाले पत्रकार कनक मणि दीक्षित ने 1987 में नेपाल से ‘हिमाल’ साउथ एशिया पत्रिका की शुरुआत की. ‘हिमाल’ दक्षिण एशिया को एक ‘पत्रकारिता महासंघ’ के रूप में देखता है. फरवरी, 2013 से इसका प्रिंट संस्करण मासिक के स्थान पर त्रैमासिक जर्नल हो गया है, लेकिन यह अपने उद्देश्य पर कायम है. –
संयुक्त राष्ट्र संघ की बेहद प्रतिष्ठित और आर्थिक तौर बेहद लाभकारी नौकरी छोड़ कर राजनीतिक–सामाजिक ज्वालामुखी पर बैठे आर्थिक रूप से अत्यंत पिछड़े देश को वापस लौटना, देश के अधिनायक राज परिवार के दरबारी कवि–अनुचर न बन कर आम लोगों की आवाज उठाने के लिए पत्रकारिता करने का निर्णय कोई साधारण व्यक्ति कभी भी नहीं करेगा. कनक मणि दीक्षित एक ऐसे असाधारण व्यक्ति हैं, जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ की नौकरी छोड़ कर वर्ष 1990 में वापस अपने देश नेपाल आने का निर्णय लिया. और देश में राजशाही के स्थान पर लोकतंत्र स्थापित करने के लिए जारी संघर्ष में आम लोगों के हक की पत्रकारिता की.
लोकतंत्र की स्थापना के बाद इस नयी व्यवस्था में भी वे आम लोगों के हक के लड़ाई के साथ ही बने हुए हैं. कनक मणि दीक्षित सिर्फ नेपाल के एक पत्रकार नहीं, बल्कि समूचे दक्षिण एशिया की क्षेत्रीय एकता के सूत्रधार हैं. उनकी अवधारणा में इस क्षेत्र में आधुनिक काल में बनाये गये विभिन्न राजनीतिक राष्ट्र–राज्य वस्तुत: भौगोलिक–ऐतिहासिक–सांस्कृतिक दृष्टि से एक संपूर्ण इकाई के भाग हैं और उन्होंने इस इकाई का नाम दक्षिण व एशिया को एक साथ जोड़ कर ‘दक्षिण एशिया’ दिया है.
27 जनवरी, 1956 को नेपाल के ललितपुर शहर में एक अत्यंत प्रतिष्ठित परिवार में जन्मे कनक मणि दीक्षित ने अपनी स्नातक की पढ़ाई त्रि चंद्र कॉलेज, काठमांडू में की, इसके बाद कानून की पढ़ाई दिल्ली विश्वविद्यालय से और अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय से पहले अंतरराष्ट्रीय संबंध और फिर पत्रकारिता में उच्च शिक्षा प्राप्त की. 1982 में अमेरिका से वापस लौटने पर उन्होंने कुछ दिनों के लिए त्रिभुवन विश्वविद्यालय में कानून का अध्यापन किया और इसके बाद अगले आठ वर्षो तक संयुक्त राष्ट्र संघ के न्यूयॉर्क स्थित मुख्यालय में काम किया.
वर्ष 1987 में कनक मणि दीक्षित ने नेपाल से दक्षिण एशिया के विभिन्न राष्ट्रों की राजनीतिक सीमाओं में फैले हिमालय क्षेत्र के बारे में समाचार–जानकारी–विश्लेषण प्रस्तुत करने के लिए ‘हिमाल’ नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन का आरंभ किया. ‘हिमाल’ के प्रवेशांक में कनक मणि दीक्षित ने इस पत्रिका का मूल उद्देश्य विकास पत्रकारिता बताया और नेपाल जैसे विकासशील देश में पत्रकारिता के नाम पर अधिकतम विश्लेषण और न्यूनतम रिपोर्टेज के अखबारी ढांचे को बदल कर इस पत्रिका को आम लोगों के जीवन से संबंधित प्रासंगिक एवं अनिवार्य विषयों पर गंभीर, तथ्यात्मक व ईमानदार रिपोर्टिग का माध्यम बनाने का एक प्रयास बताया.
वर्ष 1990 में संयुक्त राष्ट्र संघ से अपनी नौकरी छोड़ कर कनक मणि दीक्षित वापस नेपाल लौट आये. अपना सारा समय नेपाली पत्रकारिता के विकास व समूचे दक्षिण एशिया को एकसूत्र में बांधने के लिए समर्पित कर दिया है. नेपाल वापस लौट कर कनक मणि दीक्षित ने नेपाल में रंगीन छपाई की तकनीक पर आधारित नेपाल के पहले प्रिंटिंग प्रेस ‘जगदंबा प्रेस’ की स्थापना की जिसके बाद नेपाल के प्रकाशन उद्योग का अभूतपूर्व विकास हुआ.
नेपाल में बड़ी संख्या में आधुनिकतम प्रिंटिंग प्रेस भी स्थापित हुए. 1990 के दौरान ही नेपाल में माओवादी क्रांति, नेपाली राजसत्ता को कड़ी चुनौती भी दे रही थी. इस समय सरकार की सेंसरशिप से कहीं अधिक समाचार माध्यमों ने ही स्वैच्छिक सेंसरशिप लागू कर रखी थी. राजशाही व माओवादियों के इस संघर्ष के दौरान कनक मणि दीक्षित के अनुसार समाचार माध्यमों के पत्रकारों और संवाददाताओं ने अपनी भूमिका बहुत ईमानदारी से निभायी थी लेकिन सार्वजनिक बुद्धिजीवियों और अखबारों के स्तंभकारों–समालोचकों ने निडरता व निष्पक्षता से अपना काम नहीं किया था.
अपने पत्रकारिता जीवन में कनक मणि दीक्षित ने नेपाल की राजसी सत्ता का घोर विरोध किया था. विशेषकर वर्ष 2005 में जब आकस्मिक सत्ता परिवर्तन में राजा ज्ञानेंद्र ने नेपाल में सेंसरशिप की घोषणा के साथ ही सारी इंटरनेट सुविधाएं, टेलीफोन व मोबाइल फोन सुविधाएं बंद कर दी थीं, तब कनक मणि दीक्षित ने संयुक्त राष्ट्र कार्यालय से उपग्रह फोन के जरिये बीबीसी नेपाली सेवा को इसकी जानकारी दी थी.
अप्रैल 2006 में राजा ज्ञानेंद्र के मुखर विरोध और नेपाल में प्रजातांत्रिक व्यवस्था की बहाली को मुक्त समर्थन के कारण कनक मणि दीक्षित को 19 दिनों तक कारावास में भी रखा गया. इन दिनों ‘हिमाल’ पत्रिका पर सेना के सेंसर अधिकारियों ने कड़े प्रतिबंध लगाये हुए थे और इस दमन के विरोधस्वरूप ‘हिमाल’ पत्रिका, सेंसर द्वारा रोकी गयी पंक्तियों के स्थान को खाली छोड़ दिया करते थे.
माओवादियों के सरकार में हिस्सेदार बनने के बाद से कनक मणि दीक्षित का इन पूर्व क्रांतिकारियों से भी टकराव होता रहता है, एक समय माओवादियों ने कनक मणि दीक्षित को ‘ जनता का शत्रु’ भी करार दिया था. कनक मणि दीक्षित के दक्षिण एशिया में म्यांमार आज भी बर्मा है और तिब्बत भी इस दक्षिण एशिया का एक भाग है. ‘हिमाल’ दक्षिण एशिया, इस क्षेत्र के सारे राष्ट्रों को एक ‘पत्रकारिता महासंघ’ के रूप में देखता है. सारी राजनीतिक सीमाओं को लांघ कर बर्मा और तिब्बत सहित सार्क संगठन के देशों के अनधिकृत मुखपत्र की भूमिका निभा रहा है.
कनक मणि दीक्षित नेपाल के अत्यंत प्रसिद्ध बाल साहित्यकार भी हैं और उनकी एक रचना ‘नेपाली मेढक की रोमांचक यात्रा’ बेहद लोकप्रिय पुस्तक है. नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय बिश्वेसर प्रसाद कोइराला की आत्म कथा ‘आत्म वृतांत’ का अनुवाद भी किया है इसके अलावा नेपाल के राजनीतिक घटनाक्र म पर कनक मणि दीक्षित ने नेपाली भाषा में एक बेहद प्रामाणिक पुस्तक ‘देखेको मुलुक’ की रचना की है.
अगस्त 2001 में नेपाल के अन्नपूर्णा पर्वत श्रृंखलाओं में अकेले पैदल यात्रा करने के दौरान कनक मणि दीक्षित एक गंभीर दुर्घटना के शिकार हो गये और उनकी रीढ़ की हड्डियों में काफी चोटें आयीं, अपने लंबे इलाज के बाद स्वस्थ होने पर कनक मणि दीक्षित ने नेपाल में रीढ़ से संबंधित चोटों के उपचार के लिए एक चिकित्सा केंद्र की स्थापना की है.
फरवरी 2013 से ‘हिमाल’ दक्षिण एशिया का प्रिंट संस्करण मासिक पत्रिका के स्थान पर त्रैमासिक जर्नल हो गया है, लेकिन ‘हिमाल’ ने अपने दक्षिण एशिया महासंघ की सरोकारी पत्रकारिता को आज भी अपना प्राथमिक उद्देश्य बना रखा है. मार्च 1987 के प्रवेशांक में ‘हिमाल’ पत्रिका ने भारत में विकास के नाम पर बनाये जा रहे विशाल बांध पर एक लेख प्रकाशित किया था ‘टिहरी: मंदिर या मकबरा’. विगत दिनों उत्तराखंड में आयी विनाशलीला के मुख्य कारण 26 साल पुराने इस लेख में वर्णित हैं.