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जिन्होंने बाघों को दिलाया अभयदान

स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स की भूमिका अहम 2014 के बाघ गणना रिपोर्ट के मुताबिक 2010 से 2014 के बीच देश में बाघों की संख्या 1706 से बढ़ कर 2226 हो गयी है. इसके लिए सरकारी प्रयासों की सराहना करनी होगी. इसी में शामिल है स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स भी, जिन्होंने दिन-रात जंगलों की पहरेदारी की, […]

स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स की भूमिका अहम
2014 के बाघ गणना रिपोर्ट के मुताबिक 2010 से 2014 के बीच देश में बाघों की संख्या 1706 से बढ़ कर 2226 हो गयी है. इसके लिए सरकारी प्रयासों की सराहना करनी होगी. इसी में शामिल है स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स भी, जिन्होंने दिन-रात जंगलों की पहरेदारी की, बाघों को तस्करों और शिकारियों से बचा कर उन्हें अभयदान दिलाया. इस काम में महिलाओं के भी दस्ते सक्रिय रहे. आइए जानें इनके बारे में.
सन 2006 में भारत में बाघों की संख्या 1411 थी, 2011 में यह 1706 हुई और 2014 के आंकड़ों के अनुसार, अब देश में 2226 बाघ हैं. एक ओर जहां दुनिया में बाघों की संख्या दिनोंदिन घट रही है, वहीं भारत में यह बढ़ रही है. यह देश के लिए गर्व की बात है. इस बार कर्नाटक, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में बाघों की संख्या बढ़ी है. देश में सबसे ज्यादा 406 बाघ कर्नाटक में, 346 उत्तराखंड में, 308 मध्य प्रदेश में, 229 तमिलनाडु में, 136 केरल में हैं. मोटे तौर पर बाघों की संख्या को लेकर चिह्न्ति इन राज्यों में 35 से लेकर 52 प्रतिशत तक बाघ बढ़े हैं.
लेकिन यह स्थिति यूं ही नहीं बदली. हर चार साल में बाघों की गणना के जारी होने वाले आंकड़े जनता के बीच पेश करते हुए वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इस इजाफे के लिए अधिकारियों, वन्यकर्मियों, सामुदायिक भागीदारी और वैज्ञानिक सोच को श्रेय दिया है. इसी कड़ी में श्रेय बाघों को बचाने के लिए प्रयासरत केंद्र सरकार द्वारा गठित एक ऐसे बल को भी जाता है जो उन्हें जंगली जानवरों के साथ ही प्राकृतिक तौर पर उत्पन्न होनेवाले अन्य खतरों से बचाता तो है ही, इसके साथ ही तस्करों और शिकारियों की गतिविधियों पर भी नकेल कसता है.
बाघों की सुरक्षा को लेकर बनाये गये इस बल, यानी स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स का गठन कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिल नाडु सहित कई राज्यों में हुआ है.
इन्हीं में से एक है मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के सीमावर्ती क्षेत्र में स्थित पेंच नेशनल पार्क और तदोबा अंधारी टाइगर रिजर्व में काम कर रहा स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स का दस्ता. इस दस्ते की खास बात यह है कि इसमें 28 महिलाएं हैं जो हर रोज इन जंगलों में कम से कम 20 किलोमीटर की चहलकदमी करती हैं. इस दौरान वन विभाग के कर्मचारियों के साथ मिल कर काम करनेवाली इन महिलाओं का सामना बाघ, तेंदुए, भालू, जंगली भैंसों के अलावा कई तरह के जंगली जानवरों के साथ होता है.
लेकिन इन सब से कहीं अधिक खतरनाक प्रजाति पर भी इस दस्ते को नजर रखनी होती है और वह है इनसान. जी हां, बाघ बहुल इस क्षेत्र में शिकारी और तस्कर भी घात लगा कर बैठे रहते हैं कि बाघ कब नजर में आयें और वे उन्हें ढेर कर पैसे बना सकें. लेकिन अपने काम पर मुस्तैद ये महिलाएं उनकी गतिविधियों पर लगाम लगाती हैं और महाराष्ट्र व मध्य प्रदेश में बढ़ी बाघों की संख्या के लिए कहीं न कहीं ये भी बधाई की पात्र जरूर हैं.
आमतौर पर स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स में स्थानीय लोगों का चयन किया जाता है, जो वन विभाग के कर्मचारियों के साथ मिल कर जंगल और जंगली जनवरों की रक्षा करते हैं. इसके लिए बाकायदा एक नियुक्ति परीक्षा होती है और इसमें उत्तीर्ण उम्मीदवारों को छह महीनों का कड़ा प्रशिक्षण पूरा करना होता है. इसमें शारीरिक प्रशिक्षण, वन प्रबंधन, वन्यजीव संरक्षण, वन कानून और शिकारियों व तस्करों से निबटने के गुर सिखाये जाते हैं. बहरहाल, आठ घंटों की पालियों में बंटी इन महिलाओं की डय़ूटी, जंगलों में बाघों को शिकारी जानवरों और मनुष्यों से निर्भीक और स्वच्छंद होकर घूमने की आजादी देती है. यही नहीं, वन संपदा की अवैध तस्करी रोकना और गलती से बाघ या कोई और जंगली जानवर अगर किसी गांव में घुस जाये, तो लागों से उन्हें बचाना भी इस दस्ते की जिम्मेवारी होती है.
यह इस महिला दस्ते की मुस्तैदी का ही नतीजा है कि 2012 में इसके गठन से लेकर अब तक पेंच और तदोबा क्षेत्र में एक भी बाघ का शिकार नहीं हो पाया है. इस बात के लिए पिछले साल दिसंबर में इन 28 महिलाओं को सैंचुअरी एशिया द्वारा स्पेशल टाइगर अवार्ड से नवाजा गया. लेकिन ऐसा नहीं है कि तब से अब तक इस इलाके में शिकार और तस्करी की गतिविधियां हुई ही नहीं. इस महिला दस्ते ने वन क्षेत्र से कई शिकारियों और तस्करों को पकड़कर स्थानीय पुलिस के हवाले किया है.
वाकई यह काम जोखिम भरा और चुनौतीपूर्ण है, लेकिन जरा सोचिए कि आम लोगों को बाघ, तेंदुए, भालू जैसे जंगली जानवरों के दर्शन कहां हो पाते हैं भला! और जो देखना चाहें भी तो उन्हें समय निकालकर शहर से दूर किसी चिड़ियाघर जाना पड़ता है, जिसके लिए अच्छे-खासे पैसे भी लग जाते हैं, लेकिन इन महिलाओं को हर रोज ये जानवर देखने को मिल जाते हैं और वह भी मुफ्त में. और तो और सरकार इसके लिए उन्हें अच्छा-खासा मेहनताना भी देती है. तो ऐसा आनंद और कहां!

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