।। दक्षा वैदकर ।।
कई लोगों की आदत बहुत कम बोलने की होती है. ऐसे लोग यदि किसी बात का बुरा मान जायें, तो वे तुरंत नहीं कहते. बस अपने दिमाग में स्टोर करते रहते हैं. वे सोचते हैं– ‘सामनेवाला बुरा मान जायेगा, मैं मन में ही रखूं तो बेहतर है, मैं जब तक सहन कर सकता हूं, तब तक कर लूं.’ उन्हें लगता है कि इस तरह वे झगड़ों को होने से बचा रहे हैं, जबकि ऐसा नहीं है.
ये सभी घटनाएं, बातें दिमाग में जमा होती जाती हैं और एक दिन ज्लावामुखी की तरह फट पड़ती हैं. ऐसा हो जाने पर न केवल उस व्यक्ति को नुकसान पहुंचता है, बल्कि सामनेवाला भी उससे प्रभावित हो जाता है. रिश्ता टूट जाता है. बेहतर यही है कि हम बातों, मनमुटावों को दिमाग में स्टोर न होने दें. गलतफहमियों को उसी वक्त बातचीत करके दूर कर लें.
आपने उस अलमारी को तो देखा ही होगा, जिसमें कोई भी चीज व्यवस्थित नहीं होती. ऐसी अलमारी को जब किसी एक कपड़े को निकालने के लिए खोला जाता है, तो उसमें से कपड़ों का ढेर लुढ़कते हुए गिरने लगता है. सारे खानों से कपड़े गिरते जाते हैं. आप उस परिस्थिति को संभाल नहीं पाते और आप उसमें दब जाते हैं. ऐसा तब बिल्कुल नहीं होता, अगर आपने सभी कपड़ों को व्यवस्थित जमाया होता.
अलमारी की तरह हमारा दिमाग भी होता है. अगर हम झगड़ों, बातों, मनमुटावों, मतभेदों को बातचीत कर बिना हल किये ही छोड़ देंगे, तो कुछ महीनों व सालों बाद वे मुद्दे दोबारा हमारा सामने आ जायेंगे. उदाहरण के तौर पर आपका पत्नी से किसी छोटी बात पर झगड़ा होगा और आप अपने दिमाग की अलमारी तुरंत खोल देंगे.
अलमारी के विभिन्न खानों में ठूंस–ठूंस कर कपड़ों की तरह रखे किस्से, घटनाएं, कहानियां गिरने लगेंगे और आप पत्नी को पुरानी बातों को लेकर ताना मारते जायेंगे. छोटा–सा झगड़ा बड़ा हो जायेगा. पत्नी को भी इस बात का बुरा लगेगा कि आपने इतने दिन पुरानी बात को आज इस झगड़े में क्यों जोड़ा. उस वक्त ही सवाल क्यों नहीं पूछ लिया? कम–से–कम इतने दिनों तक तनाव में तो नहीं रहते.
* किसी महान व्यक्ति ने यह कहा था कि आज का काम कल पर न छोड़ें. आप उसमें एक बात और जोड़ें, आज का झगड़ा आज ही बातचीत कर खत्म करें.
* जब भी किसी मुद्दे पर बात हो, पुराने झगड़ों को उसमें शामिल न करें. विवाद को अधूरा न छोड़ें. उसे हल करके ही उठें, वरना जख्म बना रहेगा.