कहते हैं पेट्स का दीवानापन अलग तरह का होता है. उनका सुख आपकी मुस्कुराहट में नजर आता है. अपने इसी अहसास को संजीव और प्रीति कुमार ने पेट्स बाइट और स्कूपी स्क्रब नाम से दुनिया के सामने पेश किया.
पैशन हो तो ऐसा! संजीव और प्रीति कुमार को पालतू जानवरों से इतना प्यार था कि इन्होंने उससे संबंधित चीजों को ही अपना कैरियर बना लिया. इन्होंने दिल्ली में उस समय अपनी पेट शॉप खोली, जब दिल्ली में ऐसी चार से पांच दुकानें ही थीं. इन्होंने इसका नाम रखा पेट्स बाइट. फिर ग्रूमिंग पार्लर खोला. इसका नाम है स्कूपी स्क्रब.
कैसे की शुरुआत
संजीव कहते हैं हमलोग शुरूसे इस क्षेत्र के नहीं थे. मैं बैंकर था और मेरी पत्नी टीचर. हम दोनों को ही कुत्तों से बहुत प्यार था. मेरे पास शुरू से ही कई नस्लों के कुत्ते थे. हम दोनों के बीच कुत्तों से प्यार एक कॉमन फैक्टर था. इसलिए दोनों का पेट शॉप की ओर खिंचाव आसानी से हो गया.
बैंक में नौकरी के दौरान एक बार मैं दोपहर में खाना खाने के लिए घर आया. हमने उस समय भी कुत्ते पाले हुए थे. मैं उनके लिए सामान खरीदने गया. एक पेट शॉप दिखी. तभी मन में विचार आया कि क्यों न हम भी एक पेट शॉप खोलें. मैंने प्रीति से इसके बारे में चर्चा की. वह भी खुश हुई. फिर 2005 में हमने कनाट प्लेस में अपनी पहली पेट शॉप खोली. उस समय प्रीति प्रेगनेंसी के कारण छुट्टी पर थी. मैं नौकरी करता रहा. इस शॉप में हम पेट्स की जरूरत के सभी सामान रखते थे. साथ ही कई तरह की सर्विसेस भी देते थे. चार से पांच महीने बाद हमने दूसरी शॉप अरविंदो प्लेस, हौज खास में खोली. तब मैंने नौकरी छोड. दी. दुकान शुरूकरने के बाद प्रीति ने दोबारा नौकरी ज्वॉइन नहीं की.
कैसे कटे शुरू के दिन
पहले महीने में प्रीति के अलावा सिर्फ एक स्टाफ था. दूसरे महीने में दो स्टाफ रख लिये. दूसरी शॉप खोलने के वक्त हमें समझ में आ गया कि यह काम हमारी पसंद का है. साथ ही इसमें हम अच्छा कमा भी सकते हैं. 2005 तक दिल्ली में गिनी-चुनी पेट्स शॉप हुआ करती थीं. पेट्स बाइट में पेट्स से संबंधित सामान मिलता था. शुरू में हमारे स्टाफ घरों में जाकर डॉग ग्रूमिंग किया करते थे. तब हम भी ग्रूमिंग का मतलब सिर्फ डॉग को नहलाना और बाल काटना समझते थे. पर जब हम ट्रेनिंग के लिए विदेश गये, तब समझ में आया डॉग ग्रूमिंग का मतलब क्या है.
स्कूपी स्क्रब की शुरुआत
2007 में हमने स्कूपी स्क्रब नाम से ग्रूमिंग पार्लर की शुरुआत की. हमारा पार्लर देश का पहला पार्लर है, जहां ब्रीड स्पेसिफिक स्टाइल की शुरुआत की गयी. शुरू में सबने कहा कि भारत में यह नहीं चलेगा. हमें भी इसे स्थापित करने में डेढ. से दो वर्ष लग गये. करीब 700 कुत्तों की किस्म ऐसी है, जो बालोंवाले होते हैं. सबकी हेयर टाइलिंग की स्पेसिफिक स्टाइल होती है.
अब तक का अनुभव
अनुभव बहुत अच्छा है. शुरुआत में कुछ दिक्कतें आयीं. आर्थिक दृष्टि से थोड.ा डगमगाये भी. पर ग्रूमिंग के बाद कुत्ते खुश होते थे. प्यार जताने के लिए हमें चाटते थे. वही हमारी कमाई थी. हमारे देश में लोग कुत्ते पाल लेते हैं, पर उनकी उचित तरीके से केयर नहीं कर पाते हैं. हम अपने बालों में दिन में दो से तीन बार कंघी करते हैं, लेकिन उनके नहीं. उनके बाल उलझ जाते हैं. इससे उन्हें खिंचाव होता है. जब उनके बाल कट जाते हैं और काढ. दिये जाते हैं, तो वे बहुत खुश होते हैं.
किस तरह की हैं सुविधाएं
हमारे यहां अंतरराष्ट्रीय स्तर के ग्रूमिंग सेंटर हैं. हम नाखून काटना, कई तरह की मसाज, हेयर कलरिंग (पेट फ्रेंडली कलर), नहलाना (आठ से दस तरीके के बाथ जैस – एलोवेरा, मेडिकेटेड, एंटीडेंडरफ बाथ आदि.), ब्रीड स्पेसिफिक स्टाइल आदि सुविधाएं देते हैं. हमारे यहां डॉग, कैट, रैबिट आदि पेट्स की ग्रूमिंग की जाती है.
मंजूषा सेंगरपैशन हो तो ऐसा! संजीव और प्रीति कुमार को पालतू जानवरों से इतना प्यार था कि इन्होंने उससे संबंधित चीजों को ही अपना कैरियर बना लिया. इन्होंने दिल्ली में उस समय अपनी पेट शॉप खोली, जब दिल्ली में ऐसी चार से पांच दुकानें ही थीं. इन्होंने इसका नाम रखा पेट्स बाइट. फिर ग्रूमिंग पार्लर खोला. इसका नाम है स्कूपी स्क्रब.
कैसे की शुरुआत
संजीव कहते हैं हमलोग शुरूसे इस क्षेत्र के नहीं थे. मैं बैंकर था और मेरी पत्नी टीचर. हम दोनों को ही कुत्तों से बहुत प्यार था. मेरे पास शुरू से ही कई नस्लों के कुत्ते थे. हम दोनों के बीच कुत्तों से प्यार एक कॉमन फैक्टर था. इसलिए दोनों का पेट शॉप की ओर खिंचाव आसानी से हो गया.
बैंक में नौकरी के दौरान एक बार मैं दोपहर में खाना खाने के लिए घर आया. हमने उस समय भी कुत्ते पाले हुए थे. मैं उनके लिए सामान खरीदने गया. एक पेट शॉप दिखी. तभी मन में विचार आया कि क्यों न हम भी एक पेट शॉप खोलें. मैंने प्रीति से इसके बारे में चर्चा की. वह भी खुश हुई. फिर 2005 में हमने कनाट प्लेस में अपनी पहली पेट शॉप खोली. उस समय प्रीति प्रेगनेंसी के कारण छुट्टी पर थी. मैं नौकरी करता रहा. इस शॉप में हम पेट्स की जरूरत के सभी सामान रखते थे. साथ ही कई तरह की सर्विसेस भी देते थे. चार से पांच महीने बाद हमने दूसरी शॉप अरविंदो प्लेस, हौज खास में खोली. तब मैंने नौकरी छोड. दी. दुकान शुरूकरने के बाद प्रीति ने दोबारा नौकरी ज्वॉइन नहीं की.
कैसे कटे शुरू के दिन
पहले महीने में प्रीति के अलावा सिर्फ एक स्टाफ था. दूसरे महीने में दो स्टाफ रख लिये. दूसरी शॉप खोलने के वक्त हमें समझ में आ गया कि यह काम हमारी पसंद का है. साथ ही इसमें हम अच्छा कमा भी सकते हैं. 2005 तक दिल्ली में गिनी-चुनी पेट्स शॉप हुआ करती थीं. पेट्स बाइट में पेट्स से संबंधित सामान मिलता था. शुरू में हमारे स्टाफ घरों में जाकर डॉग ग्रूमिंग किया करते थे. तब हम भी ग्रूमिंग का मतलब सिर्फ डॉग को नहलाना और बाल काटना समझते थे. पर जब हम ट्रेनिंग के लिए विदेश गये, तब समझ में आया डॉग ग्रूमिंग का मतलब क्या है.
स्कूपी स्क्रब की शुरुआत
2007 में हमने स्कूपी स्क्रब नाम से ग्रूमिंग पार्लर की शुरुआत की. हमारा पार्लर देश का पहला पार्लर है, जहां ब्रीड स्पेसिफिक स्टाइल की शुरुआत की गयी. शुरू में सबने कहा कि भारत में यह नहीं चलेगा. हमें भी इसे स्थापित करने में डेढ. से दो वर्ष लग गये. करीब 700 कुत्तों की किस्म ऐसी है, जो बालोंवाले होते हैं. सबकी हेयर टाइलिंग की स्पेसिफिक स्टाइल होती है.
अब तक का अनुभव
अनुभव बहुत अच्छा है. शुरुआत में कुछ दिक्कतें आयीं. आर्थिक दृष्टि से थोड़ा डगमगाये भी. पर ग्रूमिंग के बाद कुत्ते खुश होते थे. प्यार जताने के लिए हमें चाटते थे. वही हमारी कमाई थी. हमारे देश में लोग कुत्ते पाल लेते हैं, पर उनकी उचित तरीके से केयर नहीं कर पाते हैं. हम अपने बालों में दिन में दो से तीन बार कंघी करते हैं, लेकिन उनके नहीं. उनके बाल उलझ जाते हैं. इससे उन्हें खिंचाव होता है. जब उनके बाल कट जाते हैं और काढ. दिये जाते हैं, तो वे बहुत खुश होते हैं.
किस तरह की हैं सुविधाएं
हमारे यहां अंतरराष्ट्रीय स्तर के ग्रूमिंग सेंटर हैं. हम नाखून काटना, कई तरह की मसाज, हेयर कलरिंग (पेट फ्रेंडली कलर), नहलाना (आठ से दस तरीके के बाथ जैस – एलोवेरा, मेडिकेटेड, एंटीडेंडरफ बाथ आदि.), ब्रीड स्पेसिफिक स्टाइल आदि सुविधाएं देते हैं. हमारे यहां डॉग, कैट, रैबिट आदि पेट्स की ग्रूमिंग की जाती है.
मंजूषा सेंगर