जान का डर
जिरगा की संस्थापक तबस्सुम अदनान कहती हैं, हमारे समाज में पुरु षों का प्रभुत्व है और वे महिलाओं को गुलामों की तरह समझते हैं. वे उन्हें उनके अधिकार नहीं देते. हमारा समाज हमें अपने तरीके से जीने का हक नहीं देता. हो सकता है मेरा कत्ल कर दिया जाये. मेरे साथ कुछ भी हो सकता है, लेकिन मुझे लड़ाई जारी रखनी है. हमारी जिरगा से पहले पुलिस और प्रशासन महिलाओं को नजरअंदाज करता था, लेकिन अब जिरगा महिलाओं के लिए बहुत कुछ कर रही है.
पाकिस्तान के स्वात घाटी इलाके में महिलाओं ने महिला जिरगा का गठन कर इतिहास रच दिया है. मगर इसी के साथ ताकतवर लोग जिरगा के दुश्मन भी बन गये हैं. महिलाओं के इस फोरम में उन मुद्दों पर सुनवाई होती है, जिन पर पुरुषों का एकाधिकार समझा जाता था. परंपरागत लेकिन विवादस्पद जिरगा व्यवस्था में समाज के बुजुर्ग इकट्ठे होते हैं और विवादित मामलों का निबटारा करते हैं, लेकिन अब 25 महिला सदस्यों की जिरगा अपने ढंग से न्याय देने की तैयारी कर रही है.
इनसाफ की आवाज
किशोरावस्था में ब्याही और फिर मां बनी ताहिरा को उसके ही ससुरालवालों ने तेजाब फेंक कर मार डाला. जीते जी ताहिरा को इनसाफ तो नहीं मिला, लेकिन उसने एक मोबाइल वीडियो के जरिये अपने बयान दर्ज किये, ताकि उसे कोर्ट में इस्तेमाल किया जा सके . इस वीडियो में खुद पर जुल्म करनेवालों के नाम लिए थे और कहा था कि उन्हें भी ऐसे ही जलाया जाये जैसे उसे जलाया गया है. ताहिरा के पति, ससुर और सास को इसी महीने उन पर तेजाब से हमला करने के आरोप से बरी कर दिया गया है. उनकी मां अब इस फैसले के खिलाफ अपील करने की तैयारी कर रही हैं. इसमें पाकिस्तान में हाल ही में शुरू हुई पहली महिला जिरगा उनकी मदद कर रही है.
अन्याय के खिलाफ जंग