।।दक्षा वैदकर।।
नौ-दस महीने पहले मेरा एक दोस्त मुङो मिला था. उसने एमबीए (फाइनेंस) किया हुआ है. मैंने पूछा, ‘कैसे हो?’ उसने कहा, ‘मैं तो परेशान हो गया हूं. मेरी इस क्षेत्र में रुचि ही नहीं है. मैं तो जैसे-तैसे ऑफिस में वक्त गुजारता हूं.’ मैंने कहा, ‘अगर ऐसा है, तो तुम्हें कुछ सोचना चाहिए.’ उसने कहा, ‘मैं सोच रहा हूं कि तेरी तरह पत्रकार बन जाऊं.’ मैंने कहा, ‘बढ़िया है, लेकिन तुम पत्रकार क्यों बनना चाहते हो?’ उसने कहा, ‘क्योंकि तुम अपना काम कर के बहुत खुश रहती हो. 12 घंटे भी काम करती हो, तो थकती नहीं हो. मैं भी तुम्हारी तरह खुश रहना चाहता हूं.’ मैंने कहा, ‘एक काम और करो फिर. कल से तुम करेले की सब्जी खाना शुरू कर दो, क्योंकि मैं करेले की सब्जी खा कर भी बहुत खुश होती हूं.’ दोस्त नाराज हो गया.
मैंने कहा, ‘तुम अपनी पुरानी गलती दोहराने जा रहे हो, दूसरों की देखा-देखी क्षेत्र चुनने की. मैं ऐसे अनेक पत्रकार बता सकती हूं, जो अपने काम से खुश नहीं है और कई ऐसे लोगों को भी बता सकती हूं, जो तुम्हारी ही फील्ड में है और खुश हैं.’ दोस्त बोला, ‘तो अब मैं क्या करूं?’ मैंने कहा, ‘अपने अंदर की आवाज सुनो. कोई भी ऐसा काम, जो तुम बिना थके दिन में 12 घंटे कर सकते हो, बिना पैसों की परवाह किये, वही काम तुम्हें करना चाहिए.’ दोस्त बोला, ‘मैं 12 घंटे खाना बना सकता हूं. मुङो उसमें बड़ा मजा आता है.’ मैंने कहा, ‘तुम कोई रेस्टोरेंट खोल लो.’ उसने कहा, ‘अच्छा आइडिया है. मैं एक मॉल में रेस्टोरेंट खोलूंगा. इसमें 40-50 लाख रुपये लगेंगे, लेकिन मेरे पास तो अभी चार-पांच लाख ही हैं. छोड़ो, ये आइडिया छोड़ते हैं.’ मैंने कहा, ‘तुम बड़े मॉल में रेस्टोरेंट नहीं खोल सकते, तो कहीं फूड कॉर्नर खोल लो. उसी से शुरुआत करो.’
उसने कहा, ‘लोग क्या कहेंगे.’ मैंने समझाया, ‘सबसे बड़ी समस्या यही है. जब मैंने रिपोर्टर बनने का फैसला लिया था, तो हर कोई कहता कि कभी खबर लिख के भी घर चलता है क्या? लेकिन आज देखो. सभी के विचार बदल गये न.’ दोस्त को बात समझ आयी. उसने अपना फूड कॉर्नर खोला. आज आठ महीने बाद उसका फोन आया. उसे एक पार्टनर मिल गया है और दोनों मिल कर अब मॉल में रेस्टोरेंट खोल रहे हैं.
बात पते कीः
-दूसरों की देखा-देखी फील्ड का चुनाव न करें. ऐसा काम करें, जो आपको पसंद हो, जिसमें आपकी रुचि हो. तभी आप अपना सवश्रेष्ठ दे पायेंगे.
-दुनिया का सबसे बड़ा रोग है- ‘क्या कहेंगे लोग’. इस बात की चिंता छोड़ दें कि लोग क्या सोचेंगे. लोगों के बातों पर आप अपना रास्ता न छोड़ें.