दक्षा वैदकर
टीवी पर एक कंपनी के कुछ थीम एड रोजाना आ रहे हैं. इनकी टैग लाइन है ‘चालू रखो भलाई की सप्लाई.’ वैसे तो इसके कई तरह के विज्ञापन आ रहे हैं, लेकिन मुङो एक विज्ञापन बेहद पसंद है. इसमें दिखाते हैं एक फैक्ट्री, जहां एक पढ़ा-लिखा नौजवान काम कर रहा है. वह मशीन के जरिये आगे खिसकते जा रहे प्रेशर कूकर पर सिटी फिट करता जा रहा है. बैकग्राउंड में आवाज आती है. ‘44 डिग्री टेम्प्रेचर.’ आत्मा के आर्म पिट्स तक पहुंचता पसीना.
आपका दोस्त सिंगापुर से एमबीए करके सीधे बेलापुर में खानदानी बिजनेस की परंपरा के प्रेशर में पक रहा है. इस वक्त उसे क्या चाहिए? आपकी सिम्पैथी? एसी? इस डायलॉग के साथ उसके चेहरे पर ढेर सारा पसीना दिखाया जाता है. बैकग्राउंड से जवाब आता है ‘नहीं’. तभी फोन पर एक व्हॉट्सएप्प मैसेज आने की आवाज आती है.
युवक एक झलक मोबाइल की ओर देखता है उसके चेहरे पर एक ठंडी हवा का झोंका लगता है, गले में बंधी टाई हवा में हलकी सी उड़ती है और उसके चेहरे पर चंद सेकेंड के लिए स्माइल आ जाती है. अब आगे कहा जाता है. ‘जब एक चिंदी-सा व्हॉट्सएप्प जोक इन्हें इतनी राहत दे सकता है, तो सोचिये क्या करेगा आपका गॉसिप से भरा एक कॉल. ये कॉल नहीं, स्नो बॉल है. (इस डायलॉग के साथ युवक पर बर्फ के गोले फेंके जाते हैं और वह खुश नजर आने लगता है.) ‘करतेरहो गॉसिप. चालू रखो भलाई की सप्लाई.’ इस संदेश के साथ एड खत्म होता है.
इस विज्ञापन में एक संदेश छिपा है. यह हमें बताता है कि किस तरह हमारा छोटा-सा एसएमएस, कॉल लोगों को राहत पहुंचाता है. यह सोचने वाली बात है. हम सभी के ढेर सारे दोस्त हैं, रिश्तेदार हैं, जो हमसे बेहद दूर रहते हैं. कठिन परिस्थितियों में रहते हैं. उदास हैं. अकेले रहते हैं. पसंद की जॉब उन्हें नहीं मिल रही. घर का माहौल खराब है. ऑफिस में वे खुश नहीं हैं. ऐसी स्थिति में अगर हम उन्हें एसएमएस कर दें, कुछ जोक्स भेज दें, थोड़ी चैट कर लें. फोन पर पुराने दिनों को याद कर लें, तो उन्हें कितनी खुशी मिल सकती है!
daksha.vaidkar@prabhatkhabar.in
बात पते की..
* हम अक्सर कहते हैं कि टाइम ही नहीं है बात करने का. लेकिन अगर हम थोड़ा सोचें, तो वक्त निकाल लेंगे और दोस्तों को कॉल कर सकेंगे.
* दोस्तों व रिश्तेदारों को बीच-बीच में फोन लगा लिया करें. एसएमएस से हालचाल पूछ लें. उन्हें यह बहुत अच्छा लगेगा. आपको भी खुशी होगी.