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कई इलाकों में है राजद-जदयू का प्रभाव

जातीय समीकरण के कारण परिणाम हो सकता है प्रभावित आनंद मोहन रांची : विधानसभा चुनाव में पहली बार गंठबंधन का समीकरण बदला है. भाजपा की हमसफर रहे जदयू नये साथियों के साथ चुनाव मैदान में है. कांग्रेस-राजद के साथ जदयू का गंठबंधन नया चुनावी समीकरण बना है. बिहार की टॉनिक से पले-बढ़े दोनों दल की […]

जातीय समीकरण के कारण परिणाम हो सकता है प्रभावित
आनंद मोहन
रांची : विधानसभा चुनाव में पहली बार गंठबंधन का समीकरण बदला है. भाजपा की हमसफर रहे जदयू नये साथियों के साथ चुनाव मैदान में है. कांग्रेस-राजद के साथ जदयू का गंठबंधन नया चुनावी समीकरण बना है. बिहार की टॉनिक से पले-बढ़े दोनों दल की खास इलाके में पैठ भी है. केंद्र और झारखंड की राजनीति में दो ध्रुव में रहे राजद-जदयू मिल कर भाजपा का रास्ता रोकने के लिए ताकत लगा रहे हैं. पलामू, उत्तरी छोटानागपुर और संताल के कुछ खास सीटों पर राजद की पकड़ है.
यही हाल जदयू का है. जातीय समीकरण के कारण चुनाव परिणाम राजद-जदयू के कारण प्रभावित होता रहा है. पलामू में अब जदयू का साथ है. राजद ने 18 सीटों पर, जबकि जदयू ने छह सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं. कांग्रेस के साथ गंठबंधन के तथाकथित शर्त को मानें, तो राजद को 10 और जदयू को पांच सीट दिये जाने की बात थी. यूपीए का गंठबंधन भी कई सीटों पर फंसा है. कांग्रेस, राजद और जदयू के उम्मीदवार आपस में भिड़ रहे हैं.
छत्तरपुर, हुसैनाबाद और मनिका में गंठबंधन के प्रत्याशी आमने-सामने हैं. चुनाव में इसकी भरपाई यूपीए को करनी होगा. दोनों दलों के लिए विधानसभा चुनाव में जमीन बढ़ाने की चुनौती है. वहीं भाजपा विरोधी वोट की गोलबंदी के लिए भी इन्हें पसीना बहाना होगा. जदयू ने बिहार के बेहतर शासन को एजेंडा बनाया है, तो राजद को अपने नेता लालू प्रसाद के करिश्मा पर भरोसा है. राजद-जदयू गंठबंधन से यह तो तय है कि पलामू और उत्तरी छोटानागपुर में एक बड़े वोट बैंक के बिखराव रोका जा सकता है.
इसके लिए दोनों दलों के बड़े नेताओं को दम लगाना होगा. इन दलों के प्रत्याशी अपने-अपने क्षेत्र में पकड़ रखते हैं, लेकिन दूसरी जगह समीकरण को पक्ष में नहीं कर सकते. दोनों ही पार्टी को लालू-नीतीश के करिश्मा पर भरोसा है. राजद को पांच सीटों पर साख बचानी है, तो जदयू को अपनी पुरानी सीटों का कब्जा करना होगा. संताल परगना में राजद को राजमहल जैसे सीटों पर उम्मीदवार मिला है. वहीं सारठ में पिछड़ा कार्ड खेला है.
जदयू को छत्तरपुर में प्रतिष्ठा बचानी है. जदयू के प्रदेश अध्यक्ष जलेश्वर महतो अपनी परंपरागत सीट बाघमारा से दावं लगा रहे हैं. यहां कांग्रेस-राजद के साथ गंठबंधन का लाभ भी मिल सकता है, लेकिन नयी सीट पर दोनों दलों के लिए रास्ता आसान नहीं है. जमीन पर दोनों ही दलों का संगठन पस्त है. बदली राजनीतिक परिस्थिति में संसाधन के मोरचे पर भी दोनों पार्टियां पिछड़ रही हैं. धन बल का प्रभाव बढ़ा है. बाघमारा जैसी जदयू की सीटों पर पूरी चुनावी गणित बदल गयी है. मांडू का भी यही हाल है. अलग-अलग सीटों पर उम्मीदवारों की छवि और लालू-नीतीश के प्रभाव का ही सहारा है. कुल मिला कर कहा जाये, तो कश्ती मझधार में ही फंसी है.

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