– डिब्बाबंद फिल्में
* 41 साल बाद रिलीज हो रही है फिल्म ‘लव इन बॉम्बे’
– बॉलीवुड में अपनी रूमानी फिल्मों से दर्शकों पर राज करने वाले दिवंगत अभिनेता जॉय मुखर्जी की फिल्म ‘लव इन बॉम्बे’ लगभग 41 साल के बाद रिलीज होने जा रही है. 1974 में बनी इस फिल्म को उनके बेटे सुजॉय और मुन जॉय रिलीज करने जा रहे हैं. हालांकि, पहली बार ऐसा नहीं हुआ है. इससे पहले भी कई ‘डिब्बाबंद फिल्में’ अंतराल के बाद दर्शकों के समक्ष आयी हैं. ऐसी ही फिल्मों के इतिहास पर पेश है उर्मिला कोरी की रिपोर्ट.. –
‘लव इन बॉम्बे’ की तरह का इंतजार निम्मी और संजीव कुमार स्टारर फिल्म ‘लव एंड गॉड’ को करना पड़ा था. ‘मुगल-ए-आजम’ जैसी ‘मेग्नम ऑपस’ बना चुके के आसिफ ‘लव एंड गॉड’ के जरिये परदे पर इतिहास को फिर से जिंदा करना चाहते थे, लेकिन उन्होंने आंखें मूंदी, तो फिल्म भी लटक गयी. 20 साल बाद निर्माता केसी बोकाड़िया की मदद से उनकी पत्नी फिल्म को रिलीज कर पायीं, लेकिन त्रसदी यह कि फिल्म से जुड़े ज्यादातर दुनिया छोड़ चुके थे. कुछ ऐसा ही हाल ‘पाकीजा’ का भी रहा है.
14 साल के इंतजार के बाद मीना कुमारी की यह फिल्म पूरी हो पायी, विडंबना यह कि फिल्म जब रिलीज हुई, तो वह नहीं रहीं. विश्लेषकों के मुताबिक मीना की मौत की उपजी साहनभूति के कारण फिल्म को दर्शकों का इंतजार नहीं करना पड़ा. भीड़ उमड़ पड़ी. दर्शकों के इस जुड़ाव को निर्देशक अशोक त्यागी आज भुनाना चाहते हैं. वे इंडस्ट्री के पहले सुपरस्टार दिवंगत राजेश खन्ना की आखिरी फिल्म ‘रियासत’ को उनकी पुण्यतिथि (18 जुलाई) को रिलीज करना चाहते हैं. इंतजार करें, क्या होता है.
* चिंता यह भी : एक अंतराल के बाद रिलीज हुई फिल्मों के हश्र की चिंता भी सालती है. ‘लव इन बॉम्बे’ में मुख्य भूमिका निभा रहीं वहीदा रहमान उत्साहित तो हैं, लेकिन डर भी है. फिल्म का हश्र क्या होगा? आंकड़े भी वहीदा की चिंता के समर्थन में ही हैं. बॉक्स ऑफिस पर अधिकांश डिब्बाबंद फिल्में कमाल नहीं कर सकी.
चाहे प्रियंका की सात साल बाद रिलीज हुई गोविंदा स्टारर ‘दीवाना, मैं दीवाना’ हो या सनी देओल की ‘देवधर गांधी’. सभी ने दम तोड़ा है. बॉक्स ऑफिस किंग शाहरुख खान का भी इस मामले में करिश्मा नहीं चल सका, जब उनकी रवीना टंडन स्टारर फिल्म ये ‘लम्हे’, जुदाई के दस सालों बाद 2004 को रिलीज हुई.
* बात यह भी : डिब्बाबंद फिल्में टिकट खिड़की पर इसलिए नहीं पहुंच पाती हैं कि तब तक उससे जुड़ा अभिनेता/ अभिनेत्री स्टार बन चुका/ चुकी होता/ होती है/हैं. निर्माता एवं वितरक उस स्टारडम को भुनाना चाहते हैं. करिश्मा कपूर की शादी के बाद सालों से अटकी फिल्म ‘मेरे जीवन साथी को’ रिलीज कर निर्माता निर्देशक धर्मेश दर्शन ने भुनाने की कोशिश की, लेकिन उन्हें फायदा नहीं पहुंचा. अभिनेता शरमन जोशी इस बात को स्वीकार करते हुए कहते हैं, मेरी फिल्म ‘फरारी की सवारी’ जब टिकट खिड़की पर चल पड़ी, तो फिल्म ‘बेचलर्स’ के निर्माताओं को सुध आयी और रिलीज किया. हालांकि इसका फायदा उन्हें नहीं मिला.
डिब्बाबंद निर्देशक थे अनुराग कश्यप : इंडस्ट्री के नियमों को दरकिनार कर अपनी बात रखने वाले मशहूर निर्देशक अनुराग कश्यप को शुरुआती दौर में डिब्बाबंद निर्देशक कहा जाता था. 2003 में उनकी पहली फिल्म ‘पांच’में हिंसा के नाम पर सेंसर बोर्ड ने उसे प्रतिबंधित कर दिया. फिल्म आज तक रिलीज नहीं हुई है. ऐसा ही प्रतिबंध ‘ब्लैक फ्राइडे’ पर कोर्ट ने भी लगा दिया था, फिल्म 93 के मुंबई बम धमाकों पर आधारित थी. इसके बाद उन्हें डिब्बाबंद निर्देशक कहा जाने लगा.
हालांकि दो साल बाद कोर्ट ने फिल्म की रिलीज का रास्ता साफ कर दिया. इसके बाद अनुराग ने कहा कि मैं निर्माता अरिंदम का शुक्रगुजार हूं, आखिरकार फिल्म अगले वर्ष नौ फरवरी को रिलीज होने जा रही है, पर मुङो डर है. ‘पांच’ का इंतजार मेरे लिए पचास साल के बराबर है.
– अमिताभ की सबसे ज्यादा फिल्में डिब्बाबंद
सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की सबसे ज्यादा फिल्में डिब्बाबंद रही हैं. अमिताभ और मनमोहन देसाई की सुपरहिट जोड़ी की फिल्में गजब (1978 ), सरफरोश (1979 ) जैसी फिल्में कभी भी शूटिंग फ्लोर से आगे बढ़ ही नहीं पायीं. ‘देवा’ का भी यही हश्र हुआ. अपना-पराया, शिवा, बंधुआ, यार मेरी जिंदगी, टाइगर, शिनाख्त, खबरदार, खुदा गवाह और जमानत जैसी फिल्में इसी लंबी फेहरिस्त में है. 1978 में ही ‘खुदा गवाह’ फिल्म बनने वाली थी लेकिन कुछ दिनों की शूटिंग के बाद अटक गयी. 1992 में इसी नाम से फिर एक नयी फिल्म बनी.
– डिब्बाबंद फिल्में स्टारडम को भुनाने का जरिया कई दशकों से बनते आये हैं और बनते रहेंगे, लेकिन आखिर में सबसे महत्वपूर्ण बात यही है कि फिल्म कहानी की वजह से चलती है और किसी वजह से नहीं. अगर ऐसा न होता तो पिछले तीन सालों से रिलीज के लिए तरस रही ‘पान सिंह तोमर बॉक्स’ ऑफिस पर सफलता का इतिहास न लिखती.
-तरन आदर्श, फिल्म समीक्षक