दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग द्वारा विधानसभा भंग करने की सिफ़ारिश के बाद अब ताज़ा विधानसभा चुनाव का रास्ता साफ़ हो गया है.
उपराज्यपाल ने सरकार के गठन की संभावना तलाशने के लिए भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के नेताओं से विचार-विमर्श किया था. सभी पार्टियों ने सरकार बनाने में असमर्थता जताई थी.
ज़ुबैर अहमद का ब्लॉग
आम आदमी पार्टी और कांग्रेस पहले ही दिल्ली में नए सिरे से चुनाव कराने की मांग कर रही थीं. अब भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) ने भी सरकार बनाने में असमर्थता जताई है जिसके बाद विधानसभा भंग करने और ताज़ा चुनाव कराने के अलावा और कोई चारा नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने आम आदमी पार्टी की एक अर्ज़ी पर सुनवाई करते हुए उपराज्यपाल को सरकार बनाने की दिशा में कोई क़दम उठाने के लिए 11 नवंबर तक का समय दिया था जिसके बाद उपराज्यपाल ने तीनों अहम पार्टियों से उनकी राय जानने के लिए सोमवार को इन पार्टियों के नेताओं से मुलाक़ात की.
पिछले महीने उपराज्यपाल ने राष्ट्रपति को लिखा था कि भाजपा को सरकार बनाने के लिए निमंत्रण दिया जा सकता है क्यूंकि 29 सीटों के साथ वो दिल्ली विधानसभा में सब से बड़ी पार्टी है.
पार्टी की दुविधा
एक समय ऐसा लगा भाजपा सरकार बनाने के लिए तैयार है. आम आदमी पार्टी ने आरोप लगाया था कि भाजपा सरकार बनाने के लिए इसके विधायकों को तोड़ने की कोशिश कर रही है.
इसके नेता अरविंद केजरीवाल ने तो यहाँ तक कहा था कि भाजपा ताज़ा चुनाव कराने से पीछे हट रही है इसी लिए पिछले दरवाज़े से सत्ता हासिल करने की कोशिश कर रही है.
पिछले महीने भाजपा के एक नेता ने मुझे बताया था कि कांग्रेस के आठ विधायकों में से अधिकतर को भाजपा में शामिल करने की तैयारी हो गई है और पार्टी सरकार बनाने का दावा कर सकती है.
सत्ता का दावा
लेकिन ख़ुद पार्टी के अंदर इस बात पर मतभेद था कि पार्टी चुनाव लड़े या सत्ता हासिल करने का दावा करे.
महाराष्ट्र और हरियाणा में भाजपा की भारी जीत के बाद एक बार फिर पार्टी के अंदर सत्ता हासिल करने के पक्ष में जो लोग थे उन्होंने सरकार बनाने पर ज़ोर देने की कोशिश तेज़ कर दी.
लेकिन आख़िरी फ़ैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पर छोड़ दिया गया. रविवार को दोनों नेताओं की मौजूदगी में हुई एक बैठक में आखिर ये फैसला किया गया कि पार्टी को दोबारा चुनाव लड़ना चाहिए.
एड़ी चोटी का ज़ोर
तो क्या बीजेपी के इस फ़ैसले का मतलब ये निकला जाए कि पार्टी महाराष्ट्र और हरियाणा में हालिया जीत के बाद आत्मविश्वास से भरी है और किसी राज्य में चुनाव के लिए तैयार है?
या इसका मतलब ये निकाला जाए कि पार्टी के अंदर विश्वास तो जगा है लेकिन इतना भी नहीं कि भाजपा दिल्ली की सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद सरकार बनाने से कतरा रही है?
सरकार बनाने के दावे के अवसर को छोड़ने के बाद अब भाजपा दिल्ली में एक बड़े चुनौती का सामना कर रही है. चुनाव में जीत के लिए अब ये एड़ी चोटी का ज़ोर लगा देगी लेकिन नतीजों को लेकर पक्के तौर पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता.
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