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कलाई दर्द का प्रमुख कारण है डिक्वेर्वेंस डिजीज

उम्र बढ़ने से डायबिटीज जैसी बीमारियों के कारण कलाई की मांसपेशियां कमजोर पड़ जाती हैं. अत: यदि इस स्थिति में अंगूठे से अधिक कार्य किया जाये, तो घर्षण के कारण काफी तेज दर्द होता है. फिजियोथेरेपी से इसमें लाभ मिलता है. यह ‘सॉफ्ट टिश्यू’ डिसऑर्डर है, जिसमें हाथ के अंगूठे के पीछे भाग में स्थित […]

उम्र बढ़ने से डायबिटीज जैसी बीमारियों के कारण कलाई की मांसपेशियां कमजोर पड़ जाती हैं. अत: यदि इस स्थिति में अंगूठे से अधिक कार्य किया जाये, तो घर्षण के कारण काफी तेज दर्द होता है. फिजियोथेरेपी से इसमें लाभ मिलता है.

यह ‘सॉफ्ट टिश्यू’ डिसऑर्डर है, जिसमें हाथ के अंगूठे के पीछे भाग में स्थित मांसपेशी में दर्द का एहसास होता है. कलाई के पीछे के भाग को छह कंपार्टमेंट में विभाजित गया है. पहले कंपार्टमेंट में दो मसल्स ऐबडक्टर पॉलिसिस लांग्स एवं एक्सटेंसर पॉलिसिस ब्रेक्सि स्थित होते हैं. इनके टेंडन कलाई के रेडियल स्टेलॉयड बोन से गुजरते हुए अंगूठे तक जाते हैं. इनका कार्य क्रमश: अंगूठा को बाहर लाना एवं सीधा करना है. कलाई के पास टेंडन के चारों ओर सायनोवियल कवरिंग होता है. यह सायनोवियल द्रव्य बनाता है. यह द्रव्य चिकनाई की तरह कार्य करता है. इससे टेंडन का मूवमेंट आराम से एवं घर्षण रहित होता है. अंगूठा या कलाई को ज्यादा घुमाने से या चीजों को जोर से पकड़ने के कारण सायनोवियल कवरिंग में सूजन आती है. धीरे-धीरे कवरिंग की सतह तथा टेंडन मोटे होने लगते हैं एवं इनके बीच स्थित ‘टनल’ का स्पेस घट जाता है.

सायनोवियल द्रव की मात्र भी घट जाती है. ऐसे में टेंडन ठीक से मूव नहीं कर पाते. अंगूठा या कलाई चलाने पर घर्षण के कारण भयंकर दर्द होता है और चीजों को पकड़ने में असमर्थ हो जाता है. अंगूठा का इस्तेमाल करने पर दर्द बढ़ता जाता है. यह रिपिटिटिव स्ट्रेन इंज्यूरी का एक प्रकार है. इसे गेमर्स थंब या ‘मदर्स रिट’ भी कहते हैं. यह सामान्यत: 30-50 वर्ष के लोगों में ज्यादा होता है. इस बीमारी से डायबिटीज एवं रूमेटाइड आर्थराइटिस के रोगी एवं प्रग्नेंट महिलाएं ज्यादा प्रभावित होती हैं.

क्या हैं कारण

इसका प्रमुख कारण अंगूठा के ज्यादा इस्तेमाल के कारण इस पर पड़ने वाला दबाव है, जैसे- , कंप्यूटर के माउस का ज्यादा उपयोग, टाइपिंग, गोल्फ खेलना, पियानो बजाना, सिलाई, ज्यादा लिखना, भारी थैला उठाना, कैंची का ज्यादा प्रयोग, बाइक चलाना,हाथ में चोट लगना आदि.

ये हैं लक्षण

अंगूठे के पिछले हिस्से में दर्द, कलाई के बाहरी भाग में दर्द व सूजन, दर्द धीरे-धीरे अथवा अचानक होना, कलाई अंदर या बाहर करना कष्टप्रद होता है, अंगूठा के बेस पर दबाने से दर्द होना, ग्रिप का कमजोर होना, पकड़ने में कष्ट होना आदि.

फिंकेलस्टेन टेस्ट : अंगूठे को हथेली के पास मोड़ कर रखें एवं मुट्ठी बनाएं. अब कलाई को अनामिका ऊंगली की ओर ले जाएं. यदि अंगूठे के पीछे के हिस्से में बेस अथवा कलाई के पास दर्द महसूस हो, तो टेस्ट पॉजिटिव माना जाता है.

फिजियोथेरेपी से होता है लाभ

दर्द की शुरुआत होने पर ऑर्थोपेडिक डॉक्टर एवं कुशल फिजियोथेरेपिस्ट से संपर्क करें. डॉक्टर एंटी इन्फ्लेमेट्री ड्रग्स या स्टेरॉयड का इंजेक्शन देते हैं. फिजियोथेरेपिस्ट चिकित्सीय मशीनों जैसे-अल्ट्रासोनिक थेरेपी, टेंस, शॉर्टवेव डायथर्मी, लेजर इंफ्रारेड आदि से दर्द एवं सूजन में राहत पहुंचाते हैं. साथ ही डीप फ्रिक्शन मसाज द्वारा टाइट टिश्यू को नॉर्मल बनाते हैं.व्यायाम द्वारा भी मांसपेशी को मजबूत बनाया जाता है. वे कार्य करने के तरीके के बारे में बताते हैं. हाथ को आराम दें, अंगूठे में स्प्लिंट लगा कर रखें, फिजियोथेरेपिस्ट से करेक्ट लिफ्ंिटग तकनीक सीखें, अंगूठा मोड़ कर या सीधा करके अधिक कार्य न करें, बर्फ से सेकें, क्रेप बेंडेज का उपयोग करें. जिस कार्य को करने में तकलीफ हो उसे न करें.

सर्जरी : यदि इनसे आराम नहीं मिले, तो सर्जरी द्वारा टाइट टिशु को फ्री किया जाता है ताकि टेंडन आसानी से मूव कर सके. सर्जरी के बाद भी फिजियोथेरापी कराने की आवश्यकता होती हे.

डॉ नीरज प्रकाश

सीनियर कंसलटेंट

फिजियो एंड एक्यूप्रेशर थेरेपिस्ट, पटना

मो : 9693281781

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