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गुमनामी में उम्मीदों की ‘लौ’

आजादी के दीवानों के वंशजों की दास्तां आज हम जिस लोकतंत्र में श्वास ले रहे हैं, उसकी नींव वीर सपूतों की बलिदान, तपस्या व तप पर रखी गयी है. लेकिन अजीब बात है कि आजादी के इन दीवानों को तो हम पुण्यतिथि-जन्मतिथि पर याद कर लेते हैं, पर उनके विचारों को आत्मसात नहीं करते. आज […]

आजादी के दीवानों के वंशजों की दास्तां

आज हम जिस लोकतंत्र में श्वास ले रहे हैं, उसकी नींव वीर सपूतों की बलिदान, तपस्या व तप पर रखी गयी है. लेकिन अजीब बात है कि आजादी के इन दीवानों को तो हम पुण्यतिथि-जन्मतिथि पर याद कर लेते हैं, पर उनके विचारों को आत्मसात नहीं करते.

आज जब देश भ्रष्टाचार, द्वेष व राग से घिरता जा रहा है, तो ऐसे में उनके वंशज उनके विचारों के साथ होने का एहसास कराते हैं. इस श्रृंखला की अंतिम कड़ी में आज पेश है लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, गोपालकृष्ण गोखले व उधम सिंह के वंशजों की दास्तां.

।। बाल गंगाधर तिलक ।।

पुणो के नारायणपेठ में तिलकवाड़ा है. बाल गंगाधर तिलक की जन्मभूमि. आज भी तिलकवाड़ा में गंगादर तिलक की स्मृति जीवंत रहती है. यहीं उन्होंने ‘केसरी’ अखबार की शुरुआत की थी, जो आजादी के लिए अलख जगाने का काम करता था.

यह अखबार आज भी प्रकाशित हो रहा है. इसकी कमान उनके परपोते 60 वर्षीय दीपक के हाथ में है. वह इस पत्र के वर्तमान संपादक हैं. वर्ष 1999 में तिलक की स्मृति में तिलक मेमोरियल म्यूजियम स्थापित किया गया है. इस संग्रहालय में उनकी निजी सामान रखे गये हैं.

मांडले जेल में बंदी जीवन के दौरान लिखी गयी किताब ‘गीता रहस्य’ की मूल प्रति यहां रखी हुई है. दीपक और उनके भाई शैलेश लोकमान्य पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट और तिलक महाराष्ट्र विद्यापीठ से जुड़े हैं. उनका परिवार आज भी तिलक की शैली में गणोशोत्सव मनाता है. इस कार्यक्रम में व्याख्यान व सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं. हाल ही में इस परिवार ने मांडले जेल से तिलक की रिहाई के शताब्दी वर्ष पूरे होने के अवसर पर दो दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किया था.

इसमें देश भर के क्रांतिकारियों के वंशजों को बुलाया गया था. शैलेश की पत्नी मुक्ता कहती हैं, ‘‘ इतिहास में तिलक के सिर्फ एक पहलू के बारे में ही बताया जाता है. उन्होंने सिर्फ ‘स्वराज’ की बात नहीं की थी, बल्कि ‘सुराज’ की भी बात की थी. वह वकील थे, गणितज्ञ थे, खगोलशास्त्री थे और लेखक तो थे ही. उन्होंने वित्तीय और कृषि की स्वदेशी नीति बनाने को कहा था.

वह स्वभाषा के पक्षधर थे’’. तिलक के वंशज राजनीतिक रूप से सक्रिय रहे हैं. दीपक के पिता जयंतराव कांग्रेस की ओर से राज्यसभा सांसद बने थे. मुक्ता अभी भाजपा में हैं. शैलेश कहते हैं कि आज की राजनीति में तिलक होना बहुत ही मुश्किल है.

।। गोपालकृष्ण गोखले ।।

59 वर्षीय श्रीधर धवले गोपालकृष्ण गोखले के प्रपौत्र हैं. पुणो के जिस मकान में गोखले रहते थे, जहां महात्मा गांधी घंटों गोखले से विचार-विमर्श किया करते थे, इस पर रियल एस्टेट डेवलपर्स की नजर लगी हुई.

धवले जमीन के इन्हीं कारोबारियों से लड़ने में लगे रहते हैं. वह अपने पुरखे की विरासत को बचाना चाहते हैं. श्रीधर के छोटे भाई विद्याधर संयुक्त राष्ट्र में कार्यरत हैं. दोनों भाई कहते हैं कि पुणो में गोखले के वंशज के रूप में चिह्न्ति होना थोड़ा मुश्किल है. महाराष्ट्र के मानस में गोखले के प्रति एक नकारात्मक छवि रही है कि वह बाल गंगाधर तिलक के गरम विचारों के विरोधी थे.

मैं भी अपनी जवानी में ऐसे ही सोचता था. मुझे आश्चर्य होता था कि अंगरेजों के खिलाफ हमारे पुरखे ने ऐसा समझौतापरस्त रुख क्यों अपनाया था. जब मैं कॉलेज पहुंचा तो बीआर नंदा के द्वारा लिखित गोखले की आत्मकथा पढ़ी, तब जाकर मैं उनके विचारों को समझ पाया. वह दूरदृष्टि वाले थे.

वह झूठे सपने दिखानेवालों के खिलाफ थे. उन दिनों झूठा सपना दिखाया गया कि अंगरेजों को भगा देंगे तो भारत का भविष्य निखर जायेगा. ऐसा सपना दिखानेवालों ने भारत के यथार्थ से नजरें चुरा ली थीं, हालांकि ऐसे ही लोग जनता के द्वारा पूजे गये. गोखले के विचार आज भी प्रासंगिक हैं, जब भारत को फिर से ऊर्जावान बनाने की बात हो रही है. गोखले गलियों के नेता नहीं थे.

पुणो में गोखले की सिर्फ एक प्रतिमा है, जो पेड़ों के झुरमुट में छिपी रहती है. एक स्लम एरिया का नाम गोखले नगर रखा गया है. आजादी के पहले से ही पुणो में ही गोखले के नाम पर गोखले इंस्टिटय़ूट ऑफ पॉलिटिक्स एंड इकोनॉमिक्स नामक संस्थान स्थापित है.

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