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माइक्रोमैक्स कैसे बनी नंबर वन

शिल्पा कन्नन बीबीसी संवाददाता, दिल्ली भारत दुनिया में मोबाइल फ़ोन के सबसे बड़े बाज़ारों में से एक है और यहां हर साल लगभग दो करोड़ मोबाइल बेचे जाते हैं. लेकिन कोई भी भारतीय कंपनी मोबाइल फ़ोन नहीं बनाती. हर कोई अपने हैंडसेट्स के लिए चीन के फ़ोन निर्माताओं पर निर्भर है. सस्ते मोबाइल फ़ोन के […]

भारत दुनिया में मोबाइल फ़ोन के सबसे बड़े बाज़ारों में से एक है और यहां हर साल लगभग दो करोड़ मोबाइल बेचे जाते हैं.

लेकिन कोई भी भारतीय कंपनी मोबाइल फ़ोन नहीं बनाती. हर कोई अपने हैंडसेट्स के लिए चीन के फ़ोन निर्माताओं पर निर्भर है.

सस्ते मोबाइल फ़ोन के सेगमेंट में माइक्रोमैक्स के पास सबसे बड़ा हिस्सा है, लेकिन वे चीन में बने हैं. हाँ भारतीयों की ज़रूरत के मुताबिक उनमें कुछ बदलाव किए जाते हैं.

जैसी ज़रूरत, वैसे बदलाव

भारतीय मोबाइल फ़ोन ग्राहकों की ख़ास ज़रूरतें समझने में वे माहिर हैं.

उसने पहला फ़ोन एक्सएलआई बाज़ार में उतारा तो गारंटी दी कि इस मोबाइल फ़ोन में एक महीने का बैट्री बैकअप होगा. इसकी कीमत भी 40 डॉलर यानी करीब 2400 रुपये रखी गई.

भारतीय गांव जहाँ या तो बिजली नहीं है या बहुत कम आती है, वहाँ इसे ज़ोरदार कामयाबी मिली.

माइक्रोमैक्स ने एक और सफल प्रयोग किया. अधिकतर भारतीयों के पास प्री-पेड कनेक्शन और मोबाइल दरों के सस्ते विकल्पों को देखते हुए कंपनी ने दो सिम वाले आकर्षक मोबाइल फ़ोन बाज़ार में उतारे.

सरप्राइज़ेज़

लेकिन भारत में आलोचकों ने इसे सस्ती मोबाइल फ़ोन कंपनी बताकर हल्के में लिया. उन्हें उम्मीद नहीं थी कि यह कभी बड़े नामों के लिए गंभीर ख़तरा बनेगी.

इसके बाद माइक्रोमैक्स ने एक और सरप्राइज़ दिया. उन्होंने स्मार्टफ़ोन की अपनी ‘कैनवस’ सिरीज़ के लिए ऑस्ट्रेलियाई अभिनेता ह्यू जैकमैन को ब्रैंड अंबेसडर नियुक्त कर दिया.

स्मार्टफ़ोन की इस सिरीज़ ने तो बाज़ार में तहलका मचा दिया और 2012-13 में कंपनी इस सेगमेंट में सैमसंग को पछाड़कर पहली पायदान पर पहुंच गई.

काउंटर प्वॉइंट टेक्नॉलॉज़ी मार्केट रिसर्च के मुताबिक अभी हैंडसेट बाज़ार में माइक्रोमैक्स की हिस्सेदारी 16.6 फ़ीसदी है जबकि सेमसंग 14.4 फ़ीसदी हिस्से के साथ दूसरी पायदान पर है.

बड़ी चुनौती

माइक्रोमैक्स का दावा है कि वह हर महीने लगभग 23 लाख मोबाइल हैंडसेट्स बेचती है.

कंपनी हालांकि अभी शेयर बाज़ार में लिस्टेड नहीं है, लेकिन विशेषज्ञों का अनुमान है कि कंपनी का कारोबार 100 करोड़ डॉलर के आस-पास पहुंच गया है.

भारत में कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ने के बाद माइक्रोमैक्स अब दूसरे देशों में भी विस्तार पर सोच रही है और उसका ख़ास निशाना रूस का बाज़ार है.

देखना होगा कि घरेलू बाज़ार में कोरियाई कंपनी सैमसंग को पटखनी देने के बाद वह विश्व बाज़ार में उसे कितनी कड़ी टक्कर दे पाएगी.

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