<figure> <img alt="महात्मा गांधी" src="https://c.files.bbci.co.uk/7E40/production/_109102323_a194dea4-0442-4fc1-9f9d-6d8168e6ec23.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>अपनी अनुयायी आभा और मनु के साथ महात्मा गांधी</figcaption> </figure><p>असली मर्द और मर्दानगी के आम सामाजिक-सांस्कृतिक पैमाने पर लंगोट धारण करने और दुबली-पतली काया वाले महात्मा गांधी कहीं टिकते दिखाई नहीं देते हैं. वो बर्बर हिंसक ब्रितानी साम्राज्य के सामने ‘अहिंसा’ की बात करते हैं.</p><p>इस अहिंसक जद्दोजहद में उनके हथियार हैं: सत्याग्रह, चरखा, खादी, उपवास और अनशन.</p><p>पूछने वाले आज भी पूछते ही हैं: ये कौन से हथियार हैं?</p><p>इसलिए कई तरह के लोगों और ख़ासकर एक विचार वालों को उनकी सोच और काम करने के तरीके में ‘नामर्दगी, ‘नपुंसकता’ और ‘कायरता’ नज़र आती है.</p><p>उन्हें ‘डरपोक’ कहा जाता है और सबको डरपोक बनाने का इल्जाम लगाया जाता है.</p><p>हालांकि, गांधी के मुताबिक़ उनकी अहिंसा, बहादुरों की अहिंसा है. ख़ैर.</p><p><strong>ये भी पढ़ें</strong><strong>: </strong><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49887276?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">गांधी @ 150: गांधी डरते थे, कोई उन्हें ईश्वर न बना दे</a></p><figure> <img alt="महात्मा गांधी" src="https://c.files.bbci.co.uk/F370/production/_109102326_d9fe89ee-1101-4701-9876-9e0cd9734da3.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h3>नई मर्दानगी वाला राष्ट्र</h3><p>जिस तरह की मर्दानगी हमारा समाज और हमारी संस्कृति पुरुषों में देखना और बोना चाहती है, वो सुनने और देखने में चुम्बक जैसा आकर्षण रखती है. मगर वह पैदा क्या करती है? वो ग़ैरबराबरी और हिंसा ही तो पैदा करती है. स्त्रियों को अपने से कमतर और मातहत मानती है.</p><p>तो आज़ादी के लिए अहिंसा का रास्ता चुनने का मतलब एक ऐसा देश बनाना था, जहां हिंसा से किसी भी तरह की चीज़ें तय न होती हों.</p><p>इस अहिंसा का मतलब ये भी था कि घर के दायरे में और घर के बाहर, पुरुष समाज स्त्रियों के साथ ‘अहिंसक’ सुलूक करता है या नहीं.</p><p>ऐसा नहीं था कि इससे पहले ऐसी सोच वाले लोग नहीं हुए थे. मगर राष्ट्र के तौर पर यह नई तरह की मर्दानगी गढ़ने की बात थी.</p><p>इस जगह की सीमा है. इसलिए हम ख़ासतौर पर उन कुछ बातों को ही देखेंगे, जो स्त्रियों की ज़िंदगी से जुड़ी हैं. यानी गांधी किसी पुरुष को स्त्री जीवन में किस तरह की ‘मर्दानगी’ के साथ देखना चाहते थे. शायद इनसे कुछ संकेत मिलें.</p><p><strong>ये भी पढ़ें</strong><strong>: </strong><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49901568?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">जब महात्मा गांधी धोती में बकिंघम पैलेस पहुंचे</a></p><figure> <img alt="महात्मा गांधी" src="https://c.files.bbci.co.uk/11A80/production/_109102327_ada7783e-f5d8-4eb7-aad5-1a4956b06e9e.jpg" height="549" width="976" /> <footer>GANDHI FILM FOUNDATION</footer> <figcaption>महात्मा गांधी और कस्तूरबा</figcaption> </figure><h3>किस्सा पति गांधी और उनकी मर्दानगी का </h3><p>बात उनकी ज़ाती ज़िंदगी से शुरू करते हैं. गांधी अपनी आत्मकथा में शादी और उसके बाद की ज़िंदगी का ज़िक्र करते हैं.</p><p>उनका और कस्तूरबाई का बाल विवाह हुआ था. वो बाल विवाह पर शर्मिंदा हैं. बाद में वो ऐसे बाल विवाह के ज़बरदस्त विरोधी भी बने. वो बताते हैं कि किसी किताब में पढ़ा था, ‘एक पत्नी-व्रत पालना पति का धर्म है’.</p><p><a href="https://www.youtube.com/embed/LJOMm0676cg">https://www.youtube.com/embed/LJOMm0676cg</a></p><h3>मगर इसका नतीजा क्या हुआ?</h3><p>गांधी को लगा कि अगर मुझे एक पत्नी व्रत पालना है तो पत्नी को एक पति का व्रत पालना चाहिए. मैं ईर्ष्यालू पति बन गया. ‘पालना चाहिए’ में से मैं ‘पलवाना चाहिए’ के विचार पर पहुंचा. और अगर पलवाना है, तो मुझे पत्नी की निगरानी रखनी चाहिए… मुझे हमेशा यह देखना चाहिए कि मेरी स्त्री कहां जाती है? इसलिए मेरी अनुमति के बिना वह कहीं जा ही नहीं सकती. यानी उनके शब्दों में, ‘मैंने तो पति की सत्ता चलाना शुरू कर दिया.'</p><p>तो क्या पत्नी को काबू में रखने के लिए गांधी के यही विचार थे? गांधी जी से ही जवाब मांगा जाए.</p><p>वे कहते हैं, "बिना अनुमति के कहीं भी न जा सकना तो एक तरह की क़ैद ही हुई. पर कस्तूरबा ऐसी क़ैद सहन करने वाली थी ही नहीं. अगर मैं उस पर दबाव डालता हूं तो वह मुझ पर क्यों न डाले? यह तो अब समझ में आ रहा है. उस समय तो मुझे अपना पतित्व सिद्ध करना था."</p><p>यहाँ एक मर्द न सिर्फ़ अपनी कमज़ोरी का बयान कर रहा बल्कि स्त्री की आज़ाद सत्ता को स्वीकार कर रहा है. अपने बराबर मान रहा है. यह कैसा मर्दाना पति है? कैसी मर्दानगी है?</p><p><strong>ये भी पढ़ें</strong><strong>: </strong><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49873446?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">गांधी जब लंदन में छड़ी के साथ नाचे…</a></p><figure> <img alt="महात्मा गांधी" src="https://c.files.bbci.co.uk/16526/production/_109103419_198f9240-14e6-4832-9ab3-552b6c04a60c.jpg" height="1484" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h3>पत्नी जायदाद नहीं है</h3><p>एक नौजवान गांधी को लिखते हैं कि मैं खादी प्रेमी हूँ लेकिन पत्नी को खादी पसंद नहीं है.</p><p>वह पूछते हैं कि क्या मैं उसे खादी पहनने के लिए मजबूर करूं? गांधी ने तो खादी के लिए बहुत कुछ किया. विदेशी कपड़ों का बहिष्कार किया. चरखा चलवाया. सूत कतवाया. उनका जवाब क्या हो सकता है? सोचिए.</p><p>वे सलाह देते हैं, "अपनी पत्नी को मोहब्बत से जीतना है, ज़ोर-ज़बरदस्ती कर हरगिज़ नहीं. यानी आप अपनी पत्नी को खादी इस्तेमाल करने के लिए मज़बूर नहीं कर सकते. याद रखिए जैसे आप उसकी जायदाद नहीं हैं वैसे ही आपकी पत्नी आपकी जायदाद नहीं है."</p><figure> <img alt="महात्मा गांधी" src="https://c.files.bbci.co.uk/308E/production/_109103421_de0073cd-fa10-44f4-a3d8-467eee463750.jpg" height="449" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h3>स्त्री को दोस्त बनाइए</h3><p>गांधी कहते हैं कि मैं यह समझता हूं कि किसी शौहर को अपनी पत्नी पर या मां-बाप को बड़ी संतानों पर अपनी राय जबरन थोपने का अधिकार नहीं है.</p><p>वो 1917 में ही कह चुके थे कि, "जब तक हमारी स्त्रियां महज़ हमारे भोग का सामान रहेंगी या हमारे लिए रसोइया बनकर रहेंगी और हमारी ज़िंदगी की हमसफ़र, ज़िंदगी की जद्दोजेहद की बराबर की साथी, सुख-दुख की साथी नहीं बनतीं (उनकी बेहतरी की) हमारी सारी कोशिशों का फेल होना तय है. कुछ लोग अपनी स्त्री को जानवर के बराबर समझते हैं. स्त्रियों को हीन समझने की जो प्रथा पड़ी हुई है, हमें उसे जड़ से उखाड़ फेंकना होगा. पुरुष को अपनी पत्नी के बारे में अपना रवैया बदलना होगा."</p><p>इसी तरह वो कई जगह कहते दिखते हैं, "पत्नी पति की ग़ुलाम नहीं है बल्कि वह उसकी साथी है."</p><p><strong>ये भी पढ़ें</strong><strong>: </strong><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49854584?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">महात्मा गांधी कश्मीर, गोरक्षा, मॉब लिंचिंग, अंतर-धार्मिक विवाह पर क्या सोचते थे</a></p><figure> <img alt="महात्मा गांधी" src="https://c.files.bbci.co.uk/7EAE/production/_109103423_8ef6a577-0b67-4a1f-a724-dcfa157b0fe3.jpg" height="680" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h3>लड़कों को अपनी छवि की चिंता करनी चाहिए</h3><p>गांधी से सवाल-जवाब बहुत होता था. 1938 की बात है. एक लड़की ने उनसे बाहर निकलने वाली लड़कियों पर लड़कों की तरफ़ से होने वाली छींटाकशी, फ़ब्तियां, बेहूदगी और हिंसा की चर्चा की तो उन्होंने लंबा जवाब दिया.</p><p>उस जवाब में लड़कों के बारे में एक बात कही. वह आज भी कम अहम नहीं है.</p><p>उन्होंने कहा, "सबसे बड़ा सवाल है कि नौजवान लड़के सामान्य शिष्टाचार भी क्यों छोड़ दें जिससे भली लड़कियों को उनसे उत्पीड़न और सताए जाने का हमेशा डर लगा रहे? मुझे यह जानकर बड़ा दुख होगा कि ज़्यादातर नवयुवकों में स्त्री सम्मान की भावना ही ग़ायब हो गयी है. बतौर युवक वर्ग, इन्हें तो अपनी छवि के बारे में चिंतित होना चाहिए. यही नहीं, अपने साथियों के बीच पाये जाने वाली (स्त्रियों के प्रति) असभ्यता के ऐसे हर मामले का इलाज करना चाहिए."</p><p><strong>ये भी पढ़ें</strong><strong>: </strong><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-49826245?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">गांधी @150: नये हुक्मरानों से तो गांधी अच्छा था</a></p><figure> <img alt="महात्मा गांधी" src="https://c.files.bbci.co.uk/CCCE/production/_109103425_4182c99b-ead2-4754-9df2-7e0ee2db0066.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h3>रसोई की ग़ुलामी से आज़ादी ज़रूरी </h3><p>गांधी के लिए आज़ादी का आंदोलन पुरुषों का मर्दाना आंदोलन नहीं था. यह उनकी मर्दानगी का प्रयोग भी था.</p><p>स्त्रियों की भागीदारी आसान नहीं थी लेकिन देखते ही देखते वे आज़ादी की मुहिम का ज़रूरी हिस्सा बन गईं. वो गांधी को भी चुनौती दे रही थीं.</p><p>इस बात को बेहतर समझने के लिए हम 1939 की एक बात का सहारा ले सकते हैं.</p><p>मृदुला साराभाई उनसे पूछती हैं कि महिलाओं पर तो दोहरा-तिहरा बोझ पड़ रहा है. उन्हें आज़ादी के काम के साथ-साथ घर भी संभालना पड़ता है. आपका क्या कहना है?</p><p>जवाब में गांधी कहते हैं, "मैं समझता हूँ कि महिलाओं की यह घर की दासता हमारी बर्बरता की निशानी है. मेरी राय में बावर्चीख़ाने की ग़ुलामी मुख्यत: हमारी बर्बर ज़माने की ही बची हुई निशानी है. बहुत हो चुका. अब हमारी महिलाओं को इस दु:स्वप्न से आज़ाद होना ही चाहिए. किसी महिला का सारा वक़्त घर के काम में ही नहीं लग जाना चाहिए."</p><p>मगर यह सब होगा कैसे? बर्बर मर्दानगी के सांचे में ढाले गए मर्द इस नयी मर्दानगी को कैसे अपनाएंगे?</p><p>वो स्त्रियों का सम्मान कैसे करेंगे? स्त्रियां रसोई की दासता से कैसे निकलेंगी? स्त्री के काम का मर्द सम्मान कैसे करेगा? बड़े होने पर अचानक वह कैसे सीखे? गांधी की पोटली से ही एक तरकीब दिखती है.</p><p><strong>ये भी पढ़ें</strong><strong>: </strong><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49821545?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">अपनी पहली और आख़िरी कश्मीर यात्रा में क्या बोले थे महात्मा गांधी</a></p><figure> <img alt="महात्मा गांधी" src="https://c.files.bbci.co.uk/11AEE/production/_109103427_39b25bcf-cafd-4e00-872e-c3bf45141f85.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h3>जो घर का काम करे, वैसा मर्द बनाना है</h3><p>जेल में रहने के दौरान गांधी ने 1922 में एक ‘बालपोथी’ लिखी. जानकारी के मुताबिक़ अंग्रेज़ सरकार ने इसे छापने की इजाज़त नहीं दी. इसका पहला प्रकाशन 29 साल बात 1951 में हो पाया.</p><p>गांधी लिखते हैं, "पोथी की रचना में धारणा यह रही है कि बालक जो कुछ सीखें, उस पर अमल करें. ऐसी कोई चीज़ नहीं दी है, जिसका उन्हें रोज़ अनुभव न होता हो." यह पोथी एक लड़का और उसकी मां के बीच संवादों पर आधारित 12 पाठ की है.</p><p>ग्यारहवाँ पाठ है ‘घर का काम'</p><p>क्यों न इसे हम सब मिलकर पढ़ें?</p><p>*** *** *** </p><p>’देखो बेटा, जिस तरह शांता दीदी घर के काम में मदद करती है, उसी तरह तुम्हें भी करनी चाहिए.'</p><p>’लेकिन मां, शांता दीदी तो लड़की है. लड़के का काम है खेलना और पढ़ना.'</p><p>शांता बोल उठी: ‘क्या हमें खेलना और पढ़ना नहीं होता?'</p><p>’मैं इनकार कब करता हूं? लेकिन तुम्हें साथ-साथ घर काम भी करना होता है.'</p><p>माँ बोली: ‘तो क्या लड़का घर काम न करे?'</p><p>माधव ने चट से जवाब दिया: ‘लड़के को तो बड़ा होने पर कमाना होता है, इसलिए यह ज़रूरी है कि वह पढ़ने में ज़्यादा ध्यान दे.'</p><p>माँ ने कहा: ‘बेटा, यह विचार ही ग़लत है. घर का काम करने से भी बहुत-कुछ सीखने को मिलता है. तुम्हें अभी पता नहीं कि अगर तुम घर साफ़ रखो, रसोई में मदद करो, कपड़े धोओ, बरतन मांजो, तो उससे तुम्हें कितना सारा सीखने को मिल सकता है.'</p><p>’घर के काम में आँख का, हाथ का, दिमाग़ का उपयोग कुछ कम नहीं करना पड़ता. लेकिन यह उपयोग सहज ही हो जाता है इसलिए हमें उसका पता नहीं चलता. इस तरह धीरे-धीरे हमारा विकास होता रहता है और यही हमारी सच्ची पढ़ाई है.'</p><p>’साथ ही, अगर तुम घर का काम करते रहो तो उससे तुम्हारी योग्यता और कुशलता बढ़ती है, शरीर कस जाता है और काम करने का आदी बनता है और फिर बड़े होने पर तुम किसी के मोहताज नहीं रहते. मैं तो कहती हूं कि घर का काम सीखने और करने की जितनी ज़रूरत शांता दीदी को है, उतनी ही तुम्हें भी है.'</p><p>*** *** ***</p><figure> <img alt="महात्मा गांधी" src="https://c.files.bbci.co.uk/17C96/production/_109103479_c4c76673-dab9-446b-9d9d-3a25e8ce6bcb.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>यहां ग़ौर करने लायक कुछ बातें हैं. लड़के को घर के काम इसलिए नहीं करने हैं कि वे स्त्रियों की मदद करें. बल्कि इसलिए करें क्योंकि ये उनकी भी उतनी ही ज़िम्मेदारी है, जितनी किसी स्त्री की.</p><p>यही नहीं, गांधी के मुताबिक़ ऐसे काम लड़कों की ख़ुशहाली के लिए ज़रूरी है. उन्होंने घर के काम को ‘काम’ का दर्ज़ा दिया है. उसे दिमाग़ी काम माना है.</p><p>क्या इसमें हमें ऐसी बातों का जवाब नहीं मिलता है: ‘तुम घर में करती ही क्या हो? तुम्हें कुछ नहीं समझ में आएगा. अपना दिमाग चूल्हा-चौका में ही लगाओ…'</p><p>यही नहीं, इसमें शांता यानी लड़के की बहन की सक्रिय भागीदारी और आज़ाद शख़्सियत है. वह अपने बारे में ख़ुद बोलती है.</p><p>ध्यान रहे, यह पाठ आज से लगभग 100 साल पहले लिखा गया है. जेंडर की समझदारी का दौर है न ‘अनपेड डोमेस्टिक/ केयर वर्क’ को समझने और घर के काम में मर्दों की भागीदारी की मुहिम का. मगर यहां बात तो वही हो रही है.</p><p>(‘अनपेड डोमेस्टिक/ केयर वर्क’ यानी घर में देखभाल और रोज़ाना के दूसरे काम, जिसे घर की महिलाओं की ज़िम्मेदारी मानी जाती है और इन कामों के लिए अलग से कोई पैसा नहीं मिलता है.)</p><p>तो गांधी जी ऐसा मर्द बनाना चाहते थे. ऐसे ही मर्द, नई मर्दानगी की नींव बन सकते हैं. ऐसी मर्दानगी की जैसी ज़रूरत 100 साल पहले थी, उससे ज़्यादा आज है.</p><p>(नोट: गांधी जी की अनेक बातों को आज कसौटी पर कसा जा सकता है. कसा ही जाना चाहिए. उनकी अनेक बातें अटपटी या टकराती मिलेंगी. मगर सबसे बड़ा सवाल है कि क्या महात्मा गांधी पुरुषों को महिलाओं का हाकिम बनाना चाहते थे? अगर नहीं तो बाकि चीज़ों पर बात हो सकती है.)</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a><strong> और </strong><a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>
महात्मा गांधी@150: स्त्री जीवन में कैसे मर्द और कैसी मर्दानगी चाहते थे महात्मा गांधी?
<figure> <img alt="महात्मा गांधी" src="https://c.files.bbci.co.uk/7E40/production/_109102323_a194dea4-0442-4fc1-9f9d-6d8168e6ec23.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>अपनी अनुयायी आभा और मनु के साथ महात्मा गांधी</figcaption> </figure><p>असली मर्द और मर्दानगी के आम सामाजिक-सांस्कृतिक पैमाने पर लंगोट धारण करने और दुबली-पतली काया वाले महात्मा गांधी कहीं टिकते दिखाई नहीं देते हैं. वो बर्बर हिंसक ब्रितानी साम्राज्य के सामने ‘अहिंसा’ की बात करते हैं.</p><p>इस […]
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