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दूर देश में अपने व्यंजन

पुष्पेश पंत मलेशिया एक ऐसा देश है, जिसके साथ हमारे सदियों पुराने संबंध हैं. चूंकि उसकी जमीनी सरहद दक्षिण एशिया के दूसरे पड़ोसियों की तरह हमसे जुड़ी हुई नहीं है, इसलिए हम उसे पड़ोसी के रूप में नहीं पहचानते. भूराजनीति के विद्वानों के अनुसार, सागर भी पुल का काम कर सकता है और इस नजर […]

पुष्पेश पंत

मलेशिया एक ऐसा देश है, जिसके साथ हमारे सदियों पुराने संबंध हैं. चूंकि उसकी जमीनी सरहद दक्षिण एशिया के दूसरे पड़ोसियों की तरह हमसे जुड़ी हुई नहीं है, इसलिए हम उसे पड़ोसी के रूप में नहीं पहचानते. भूराजनीति के विद्वानों के अनुसार, सागर भी पुल का काम कर सकता है और इस नजर से मलयेशिया को किसी दूसरे पड़ोसी से कमतर नहीं आंका जाना चाहिए. खान-पान के मामले में तो यह रिश्तेदारी और भी आत्मीय है.
कुछ दशक पहले तक मलयेशिया की कुल आबादी का लगभग दस प्रतिशत हिस्सा भारतवंशियों का था- उन मजदूरों तथा पेशेवर हिंदुस्तानियों के वंशजों का, जिन्हें अंग्रेज जबरन रबड़ के बागानों तथा टीन की खानों में काम करने ले गये थे. यह स्वाभाविक ही है कि इनके खान-पान की गहरी छाप मलयेशिया के भोजन पर दिखलायी देती है. आव्रजक भारतीय तामिल, पंजाबी, सिंधी, बिहारी मूल के थे और बहुतायत तामिलों-सिंहलों की थी.
यह सभी प्रांतीय स्वाद स्थानीय मलय लोगों की जबान पर चढ़ गये. मसम्मान करी, पेनांग करी इसी का उदाहरण हैं. लकड़ी की पतली सींक पर कोयलों की सिगड़ी पर सेके जानेवाले ‘साते’ चपटे पतले टिक्के तो सींक कबाब की याद दिलाते हैं, जिनका आनंद मूंगफली की हल्की मिठास वाली चटनी के साथ लिया जाता है. एक तरह से यह संबल अचार और चटनी के बीच की चीज नजर आती है.
उत्तर की ओर मलयेशिया दक्षिणी थाइलैंड से जुड़ा है. यह इलाका मुस्लिम बहुल आबादी वाला है और खुद को बौद्ध बहुल थाइलैंड से अलग समझता है. थाई खान-पान का असर भी मलयेशिया की रसोई पर पड़ा है. लाक्सा नामक व्यंजन इसे दर्शाता है.
बड़े से प्याले में गर्मागरम सूप में दो तरह के नूडल्स- चावल तथा अंडे से बने- हरे प्याज, गलांगल नामक अदरक, कच्ची हल्दी तथा नींबू के रस के साथ डाले जाते हैं. (याद रहे मलयेशिया का खाना लेमनग्रास की महक से अछूता रहता है!) तरी की बुनियाद नारियल के दूध पर टिकी रहती है, पर इसकी कुदरती मिठास की काट हरी और लाल मिर्ची पेश करते हैं.
एक ही प्याले में इसे आप पूर्णतः संतुलित आहार कह सकते हैं. थोड़ी मात्रा में ही सही, मुर्गी के हड्डी रहित मांस के टुकड़े तथा झींगों की चटनी इसे स्वादिष्ट बनाने के साथ पौष्टिक भी बनाती है. यदि शाकाहारी लाक्सा को खाना-पीना-सुड़कना चाहें, तो तोफू यानी सोयाबीन के पनीर के टुकड़े इस्तेमाल कर सकते हैं. लाक्सा तो बर्मा के कौस्वे की याद दिलाता है और वियतनामी फ की भी.
मलयेशिया की आबादी का दूसरा बड़ा हिस्सा चीनियों का है, जो न जाने कितनी पीढ़ियों से यहां रहता आया है. मलयेशिया में रहनेवाले भारतवंशी मजदूर, अध्यापक, वकील, डाॅक्टर आदि थे, तो चीनियों का वर्चस्व आर्थिक जीवन में निर्विवाद था. अंग्रेज शासकों ने जान-बूझकर मलय भूमिपुत्रों के बारे में यह भ्रांति फैलायी थी कि वह आलसी-अहंकारी और जल्दी भड़क जानेवाले होते हैं, काम करना नहीं चाहते आदि. यह फूट डालो और राज करो वाली रणनीति का ही हिस्सा था.
बहरहाल, मलय मुसलमानों तथा चीनियों के बीच की खाई को खान-पान भी गहरा करता रहा है. चीनी भोजन का प्रमुख हिस्सा सुअर का मांस है, जिसे मुसलमान हराम मानते हैं. वह हिंदू शाकाहारी खाना बेहिचक खा सकते हैं, पर चीनी खोमचे या ठेले की ओर रुख भी नहीं करते. मलयेशिया में आप बेहतरीन चीनी व्यंजन कैंटनी शैली के चख सकते हैं. हालांकि, चीन के सभी प्रांतों के खाने की बेहतरीन किस्में पकाने और खिलाने का दावा सिंगापुर वाले करते हैं, पर हमारा मानना है कि मलयेशिया इस मामले में कमजोर नहीं है.
मलयेशिया एक उपप्रायद्वीप है, जिसकी भूमि तीन ओर से सागर द्वारा पखारी जाती है. इस कारण ताजा समुद्री जंतुओं के व्यंजनों का जायका आजमाने के लिए यह उपयुक्त स्थान है. फिलीपींस तथा इंडोनेशिया के साथ मलयेशिया का विवाद कालिमांतान उतरा (बोर्नियो) को लेकर बहुत पुराना है. इस द्वीप की आबादी मलयों से इतर ईबान जैसे आदिवासियों की है. इनका खाना मलयों, चीनियों या भारतवंशियों से कुछ अलग तरह का है. यह टापू वर्षा वनों से ढका हुआ है और अपने विशेष प्रकार के फलों के लिए मशहूर है.
इनमें कुछ मलयेशिया की जमीन पर भी पैदा होते हैं. रांबुटान, डुरियान, मैंगोस्टीन, लौंगसाट इनमें प्रमुख नाम हैं. इनके बारे में विस्तार से फिर कभी. फिलहाल, जब बंगाल में ‘चिंगड़ी मलाई करी’ हमारे सामने हो या केरल की ‘मीन मौइली’ हो, तब इनकी मलयेशिया ई रिश्तेदारी को भला कोई कैसे भूल सकता है.

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