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पाइ-पाइ का जायकेदार हिसाब

पाइ एक खास किस्म का केक होता है, जो टार्ट से बड़े आकार का होता है, जिसके भीतर भरी जानेवाली सामग्री मांसाहारी या शाकाहारी हो सकती है. पहले खस्ता सांचा बेक किया जाता है, फिर उसे स्वादिष्ट माल से भर दोबारा सेका जाता है. इसको किसी सॉस, कद्दूकश करी हुई चीज या आटे की पतली […]

पाइ एक खास किस्म का केक होता है, जो टार्ट से बड़े आकार का होता है, जिसके भीतर भरी जानेवाली सामग्री मांसाहारी या शाकाहारी हो सकती है. पहले खस्ता सांचा बेक किया जाता है, फिर उसे स्वादिष्ट माल से भर दोबारा सेका जाता है. इसको किसी सॉस, कद्दूकश करी हुई चीज या आटे की पतली परत से ढका भी जा सकता है. खाने में खस्ता पाइ केक के बारे में बता रहे हैं व्यंजनों के माहिर प्रोफेसर पुष्पेश पंत…
पुष्पेश पंत
एक जमाना था जब रुपये में सोलह आने होते थे, एक आने में चार पैसे तथा हर पैसे में तीन पाइयां. इसे सस्ती खरीद कौड़ियो में होती थी या राई-रत्ती में. आज यह सब बातें मुहावरों में ही शेष रह गयी हैं.
जब से हमारा प्यारा ‘रुपैया’ दशमलव प्रणाली वाली चाल में ढला तब से ‘पाइ’ शब्द सिर्फ विदेशी खान-पान के शौकीनों के मुंह से ही सुना जा सकता है. वास्तव में इसका सही उच्चारण ‘पाइ’ है और अंग्रेजी मुहावरों में भी इस व्यंजन का तरह तरह से प्रयोग होता है. ‘टु मेक सम वन ईट अ हंबल पाइ’ का अर्थ है किसी को हराकर उसे बड़बोली बात नकारने को मजबूर करना है. ‘टु चेज अ पाइ इन दि स्काय’ मरीचिका के पीछे भागना है.
मगर हम बचपन से उस लौरी के दीवाने हैं, जिसमें एक भोजन-भट राजा के सामने ऐसी अनोखी ‘पाइ’ पेश की जाती है, जिस पर नश्तर लगाते ही उसके भीतर दुबकी चिड़िया फुर्र से उड़ जाती है और सवाल पूछा जाता है- ‘वौसन्ट दैट अ डेंटी डिश टु पुट बिफोर अ किंग?’अवध के इतिहासकारों का दावा है कि नवाबी दौर में वहां के बावर्ची ऐसा ही अद्भुत व्यंजन वाजिद अली शाह के दस्तरखान को सजाने में कामयाब हुए थे!
सवाल यह भी पूछा जा सकता है कि ‘पाइ’ है किस चिड़िया का नाम? यह एक खास किस्म का केक होता है, जो टार्ट से बड़े आकार का होता है कभी गहरा कभी उथला, नमकीन या मीठा जिसके भीतर भरी जानेवाली सामग्री मांसाहारी या शाकाहारी हो सकती है.
पहले खस्ता सांचा बेक किया जाता है, फिर उसे स्वादिष्ट माल से भर दोबारा सेका जाता है. इस पाइ को किसी सॉस, कद्दूकश करी हुई चीज या आटे की पतली परत से ढका भी जा सकता है. छोटे आकार की पाइ किसी खानेवाले को पूरी परोसी जा सकती है अथवा बड़ी पाइके टुकड़े पित्जा की तरह काट कर बांटे जा सकते हैं.
बर्तानवी अौपनिवेशिक शासन काल में ‘शेफर्ड्स पाइ’ से उन हिंदुस्तानियों का साक्षात्कार हुआ, जो गोरे साहब लोगों के साथ काम करते थे. जैसा इसके नाम से संकेत मिलता है यह पारंपरिक रूप से गरीब-गड़ेरियों का भोजन था.
इसे घर पर गरमागरम खाने के अलावा भेड़-बकरियां चराते वक्त भूख मिटाने के लिए साथ बांद कर ले जाया जा सकता था और ठंडा भी निबटाया जा सकता था. अकसर दौरे पर रहनेवाले फिरंगी अफसर जिन डाक बंगलों में रातें बिताते थे, वहां के पुराने चौकीदार-खानसामे सूप के साथ पाइ बनाने में अपने महारत से बख्शिश पाते रहे. एंग्लो-इंडियन विरासत वाली पाइ में सांचा उबले आलुओं का रहता था और इसमें भरी जानीवाली सामग्री मसाकेदार कीमा होती थी. ‘झाल फरेजी’ या ‘केजरी’ की तरह पाइ यह सहूलियत भी प्रदान करता है कि रात या दोपहर के बचे भोजन का इस्तेमाल इसमें किया जा सकता है.
इतिहासकारों का मानना है कि पेस्ट्रीनुमा पाइ का आविष्कार यूनानियों ने किया वैसे मिस्र के बादशाहों की कब्र में शहद से भरी अच्छी सिकी रोटी के अवशेष मिले हैं, जिसे पाइ का पूर्वज समझना तर्क संगत है.
खान-पान के तौर-तरीकों के विकास का अध्ययन करनेवालों की राय है कि लंबी जहाजी यात्रा पर साथ ले जानेवाले टिकाऊ खाद्य पदार्थ की जरूरत को पाइ पूरा करता था, इसीलिए 15वीं-16वीं सदी में इसकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ी.
ब्रिटेन से सांप्रदायिक प्रताड़ना से बचने के लिए अमेरिका पहुंचे शरणार्थी पाइ को अपने साथ ले गये और आज ‘मौम्स ऑल अमेरिकन एप्पल पाइ’ सुखी अमेरिकी पर्याय का प्रतीक है. अमेरिका में एक राष्ट्रीय पाइ कौंसिल भी स्थापित की गयी है, ताकि पाइ की धरोहर की रक्षा की जा सके. वहीं कुछ जगह एक-दूसरे पर पाइ फेंकनेवाला त्यौहार भी है.
हमें लगता है कि भारत में पाइ इसीलिए पराई संतान बनी रही, क्योंकि इस तरह के भोजन की जरूरत पूरा करने के लिए हमारे भरवां पराठे, कचौरियां, मकुनी-लिट्ठी-बाटी यथेष्ठ थे. इस उपमहाद्वीप की आबोहवा में मछली-गुर्दे या कीमे से भरे पाइ ज्यदा भरोसेमंद नहीं समझे जा सकते थे.
हमारे एक गणितज्ञ दोस्त भूख मिटाने के लिए (जायके के लिए नहीं) जो हाथ लगा मुंह के जरिये पेट तक पहुंचाने में माहिर हैं. एक बार कॉलेज कैंटीन में पाइ खाते उन्होंने हमारी परीक्षा ले डाली, ‘पता है तुम्हें गणित में वृत्त का क्षेत्रफल निकालने के लिए इस्तेमाल किए जानेवाले प्रसिद्ध गूढ़ाक्षर ‘पाइ’ का मूल्य क्या है?’ हमें पता था कि पाइ की कीमत हमने ही चुकानी है, सो हम उनका सवाल अनसुना कर खायी जा रही पाइ का रस गूंगे के गुड़ की तरह लेते रहे.
रोचक तथ्य
इतिहासकारों का मानना है कि पेस्ट्रीनुमा पाइ का आविष्कार यूनानियों ने किया वैसे मिस्र के बादशाहों की कब्र में शहद से भरी अच्छी सिकी रोटी के अवशेष मिले हैं, जिसे पाइ का पूर्वज समझना तर्कसंगत है.
बर्तानवी अौपनिवेशिक शासन काल में ‘शेफर्ड्स पाइ’ से उन हिंदुस्तानियों का साक्षात्कार हुआ, जो गोरे साहब लोगों के साथ काम करते थे.
भारत में पाइ इसीलिए पराई संतान बनी रही, क्योंकि इस तरह के भोजन की जरूरत पूरा करने के लिए हमारे भरवां पराठे, कचौरियां, मकुनी-लिट्ठी-बाटी यथेष्ठ थे.

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