राजनीतिक दलों और मीडिया के तेजी से बढऩे के कारण चुनाव विश्लेषण का क्षेत्र काफी उज्ज्वल है. साथ ही इनकी मांग अन्य क्षेत्रों में भी काफी है. इसके आधार पर मार्केट रिसर्च, कंज्यूमर व ब्रांडिंग रिसर्च व इवैल्युएटिव रिसर्च के क्षेत्र में भी काम किया जा सकता है. देश में हो रहे आम या विधानसभा चुनाव के दौरान राजनीतिक और आम जन यह जानने को उत्सुक रहते हैं कि चुनाव का नतीजा क्या होने वाला है.
भारत एक लोकतांत्रिक देश है और इस नाते यहां चुनाव विश्लेषक के लिए काफी संभावनाएं हैं. हमारे देश में कई सारे अच्छे चुनाव विश्लेषक और नये-नये टीवी चैनलों के आने से अच्छे चुनाव विश्लेषकों की मांग में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन इसके साथ यह भी सच है कि चुनाव विश्लेषक का काम पार्ट टाइम होता है क्योंकि चुनाव हर पांच साल में एक बार होते हैं. इस दौरान विश्लेषक अच्छे पैसे कमा लेते हैं, लेकिन बाकी के समय वे दूसरे काम से जुड़े होते हैं. फिर भी आप इससे संबंधित अन्य क्षेत्रों से जुड़कर अपने जॉब को सदाबहार बनाये रख सकते हैं. चूंकि चुनाव में आम लोगों की काफी रुचि होती है, खासकर राज्यों में होने वाले चुनाव में विश्लेषकों के लिए काफी अवसर होते हैं.
यहां मिलेगा काम
राजनीतिक दलों और मीडिया के तेजी से बढ़ने के कारण चुनाव विश्लेषण का क्षेत्र काफी उज्ज्वल है. इसके अलावा इनकी मांग अन्य क्षेत्रों में भी उतनी ही है. एक बार यह जान लेने के बाद कि विश्लेषण करने के लिए किन चीजों का इस्तेमाल किया जाता है और कैसे निष्कर्ष निकाला जाता है, मार्केट रिसर्च, कंज्यूमर व ब्रांडिंग रिसर्च व इवैल्युएटिव रिसर्च के क्षेत्र में भी काम किया जा सकता है. चुनाव विश्लेषण का काम इतना आसान नहीं है. टीवी के दर्शक और समाचार पत्र के पाठकों की उम्मीदों पर खरा उतरना काफी मुश्किल है. आम लोगों की उम्मीदों के विपरीत जाकर सही आकलन करना इस क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौती है. चुनाव विश्लेषक के रूप में सफल होने के लिए संख्याओं का जोड़-तोड़ करना आना चाहिए.
ये कोर्स देंगे कामको रफ्तार
– बीए इन पॉलिटिकल साइंस.
– बीए इन सोशियोलॉजी.
– बीए इन स्टैटिस्टिक्स.
– एमए इन पॉलिटिकल साइंस.
– एमए इन सोशियोलॉजी.
– एमए इन स्टैटिस्टिक्स.
– पीएचडी इन पॉलिटिकल साइंस.
राजनीतिक हलचलों से अपडेट रहें
इसमें राजनीतिक आंकड़ों का ताना-बाना बुनने के साथ ही जनसांख्यिकी पैटर्न को गहराई से समझना जरूरी होता है.साथ ही उन्हें जातिगत समीकरणों व राजनीतिक हलचलों से खुद को अपडेट रखना पड़ता है.एक अच्छा चुनाव विश्लेषक बनने के लिए यह आवश्यक है कि प्रोफेशनल्स जातिगत एवं मतों के धु्रवीकरण को बखूबी समझे, अन्यथा वह एक स्वस्थ व निर्विवाद निष्कर्ष पर कभी नहीं पहुंच सकता.इन प्रमुख गुणों के साथ-साथ उसे परिश्रमी व धैर्यवान भी बनना होगा.
रोजगार की संभावना
इसमें प्रोफेशनल्स को सरकारी व प्राइवेट दोनों जगह पर्याप्त अवसर मिलते हैं.यदि छात्र ने सफलतापूर्वक कोर्स किया है तो उसे रोजगार के लिए भटकना नहीं पड़ेगा.चुनावी सर्वे या रिसर्च कराने वाली एजेंसियों, टेलीविजन चैनल, समाचार पत्र-पत्रिकाओं, प्रमुख राजनीतिक दलों व एनजीओ आदि को पर्याप्त संख्या में इनकी जरूरत होती है.इसके अलावा पॉलिटिकल एडवाइजर, टीचिंग, संसदीय कार्य तथा पॉलिटिकल रिपोर्टिंग में इन लोगों की बेहद मांग है.यदि प्रोफेशनल किसी संस्था अथवा बैनर से जुड़कर काम नहीं करना चाहता तो वह स्वतंत्र रूप से बतौर कंसल्टेंट अथवा अपनी एजेंसी खोलकर भी कार्य कर सकता है.
आकर्षक वेतन
इसमें सैलरी की कोई निश्चित रूपरेखा नहीं होती.चुनावी दिनों में वे एक मोटे पैकेज पर एक प्रोजेक्ट विशेष के लिए अपनी सेवा देते हैं.एनालिस्ट के रूप में वे 35-40 हजार रुपए प्रतिमाह आसानी से कमा सकते हैं.यदि वे विश्लेषक के तौर पर काम कर रहे हैं तो उनके लिए आमदनी के कई रास्ते होते हैं.