साल 2000 में अविभाजित दक्षिण बिहार के कई ज़िले काटकर झारखंड राज्य बना.
तर्क था कि इन उपेक्षित आदिवासी बहुल इलाक़ों का विकास होगा पर पिछले 13 साल में राज्य में राजनीतिक अस्थिरता के चलते यह दूसरे राज्यों की तुलना में पिछड़ा हुआ है.
राज्य में विधानसभा के आहट के बीच राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता अर्जुन मुंडा से पिछले दिनों बीबीसी संवाददाता सलमान रावी ने बात की. बीबीसी स्टूडियो में हुई इस बातचीत के कुछ अंशः
अभी तक राज्य में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बना हुआ है?
आपने सही कहा. आज भी राजनीतिक अस्थिरता का माहौल है. यह अवसर कभी यहां की जनता को नहीं मिला कि पूर्ण बहुमत की सरकार लोगों की अपेक्षाओं को पूरा कर सके. यह मुझे भी को कचोटता है. हम इन अपेक्षाओं के लिए जितनी तत्परता से काम करना चाहते थे, वैसा कर नहीं पाए.
छत्तीसगढ़ और झारखंड का जन्म एक साथ हुआ था. विकास के पैमाने पर देखें तो छत्तीसगढ़, झारखंड से काफ़ी आगे निकल गया है.
विकास का मतलब गगनचुंबी इमारतें ही नहीं होतीं. झारखंड में भी विकास हुआ है, मगर राजनीतिक अस्थिरता की वजह से हम उतना नहीं कर पाए, जितना लोग चाहते थे. यही हमारी सबसे बड़ी मजबूरी रही. साल 2006 में मैंने ब्लैकमेलिंग के आगे घुटने नहीं टेके और गद्दी छोड़ना बेहतर समझा. पूर्ण बहुमत न होने से कई बार राज्य हित में फ़ैसले लेते हुए दबाव का सामना करना पड़ता है.
दोनों प्रमुख राष्ट्रीय दल, कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी, राज्य में अपनी विश्वसनीयता क्यों खोते रहे. क्यों दोनों को क्षेत्रीय दल या निर्दलीय उम्मीदवारों के भरोसे रहना पड़ता है.
यह सही है कि राष्ट्रीय दल उतना अच्छा नहीं कर पाए जितना उन्हें करना चाहिए था. इसलिए हमेशा ही गठजोड़ की सरकारें बनानी पड़ीं. विधानसभा में सीटों की संख्या मात्र 82 है. इसलिए पूर्ण बहुमत पाना मुश्किल होता रहा. अब चीज़ें बदल रहीं हैं. लोकसभा चुनाव में हमने इसे देखा. अब लोग पूर्ण बहुमत वाली सरकार चाहते हैं जो बिना दबाव के फ़ैसले ले सके.
जब झारखंड का गठन हुआ, तो सिर्फ़ चार ज़िले नक्सल प्रभावित थे, आज पूरा राज्य नक्सल प्रभावित है?
इस मुद्दे पर समग्र दृष्टिकोण अपनाने की ज़रूरत है. सामाजिक और राजनीतिक चिंतन की भी ज़रूरत है. हमें लोगों की ज़रूरतें समझनी होंगी. उनके मुद्दे समझने होंगे और उनका निदान ढूंढना होगा.
सिर्फ़ पुलिस कार्रवाई से इसका निदान नहीं ढूंढा जा सकता. झारखंड में काफ़ी खनिज संपदा है. मगर उस पर लोगों का कोई अधिकार नहीं है. यानी विकास में हमें लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करनी पड़ेगी और आदिवासियों के अधिकार भी सुरक्षित रखने होंगे.
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