एक तरफ कर्नाटक में 22, तो बिहार में नौ और झारखंड में तीन मेडिकल कॉलेज
मेडिकल शिक्षा की बात करें तो दक्षिण के राज्य इसमें अग्रणी भूमिका में हैं. कर्नाटक में 49 मेडिकल कॉलेज हैं. अकेले बेंगलुरु में 17 मेडिकल कॉलेज हैं. सर्वाधिक ह्यूमन कैपिटल उपलब्ध करानेवाले राज्यों बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल को इस कसौटी पर कसें तो निराशा होती है. बीमारी का इलाज कराना हो या डॉक्टरी की पढ़ाई, यहां के लोगों को दूसरे राज्यों की ओर रुख करना पड़ता है.
राज्य सरकार की निष्क्रियता या उदासीनता से अरबों रुपये की पूंजी दूसरे राज्यों में चली जाती है. राज्य के नीति-निर्माताओं के लिए यह अब तक एक महत्वपूर्ण एजेंडा नहीं बन पाया है. पढ़िए एक रिपोर्ट.
कर्नाटक की राज्य सरकार वर्ष 2015-16 के सत्र से राज्य के अल्प विकसित जिलों में छ: नये सरकारी मेडिकल कॉलेज खोल रही है. स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति बेहतर करने और डॉक्टरी की पढ़ाई करनेवालों की आकांक्षाओं के मद्देनजर मेडिकल की सीटें बढ़ाने की दिशा में यह कदम उठाया गया है. नये कॉलेज हवेरी, चित्रदुर्ग, चिकबल्लापुर, बगलकोट, यादगिरि और तुमकुर जिले में खुलेंगे.
इस संबंध में राजीव गांधी यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंसेज ने प्रक्रिया भी शुरू कर दी है. ये सभी जिला मुख्यालय में खुलेंगे. पढ़ाई के लिए इन मेडिकल कॉलेजों को जिला अस्पतालों से जोड़ा जायेगा. अगले वर्ष इन छ: नये मेडिकल कॉलेजों के खुल जाने के बाद कर्नाटक में सरकारी मेडिकल कॉलेज की संख्या 22 हो जायेगी. राज्य सरकार केंद्र पर दबाव बना रही है कि इन इन छ: नये मेडिकल कॉलेजों को एफिलिएशन की अनुमति दे दे.
कर्नाटक में सरकारी और निजी मिलाकर 49 मेडिकल कॉलेज हैं. 17 मेडिकल कॉलेज तो अकेले बेंगलुरु में हैं. पांच मेंगलुरु में, बेलगाम, बीजापुर, दावणगेरे, गुलबर्गा, मैसूर और रायचूर में दो-दो, बागलकोट, बेल्लूर, बीदर, बेल्लारी, चित्रदुर्ग, धारवाड़, हासन, हुबली, कोलार, मांडय़ा, मनीपाल, श्रीनिवासनगर, सुल्लिया, शिमोगा और तुमकुर में एक-एक. यहां एमबीबीएस(यूजी) की 5625 सीटें हैं. पीजी(एमडी, एमएस, डीएम, एमसीएच) की 3130 सीटें.
एक तरफ कर्नाटक की सरकार की मेहनत देखिए, दूसरी तरफ बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल से तुलना कीजिए. अभी तक बिहार में नौ सरकारी और चार निजी, झारखंड में तीन सरकारी, एक भी निजी नहीं और पश्चिम बंगाल में 14 सरकारी और तीन निजी मेडिकल कॉलेज हैं. यहां की सरकारें पिछड़े जिलों में मेडिकल कॉलेज खोलने की कल्पना भी नहीं कर सकती है. बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल से बड़ी संख्या में विभिन्न बीमारियों के लिए मरीज अपना इलाज कराने के लिए दिल्ली, वेल्लोर, लखनऊ, चेन्नई आदि शहरों में जाते हैं.
यह सिलसिला वर्षो से चल रहा है. दूसरी तरफ इन्हीं इलाकों से बड़ी तादाद में मेडिकल की पढ़ाई के लिए विद्यार्थी अपने राज्य से बाहर जाते हैं. अपने यहां पर्याप्त संख्या में मेडिकल कॉलेज उपलब्ध नहीं है. दोनों ही स्थितियों में राज्य के राजस्व का अच्छा-खासा हिस्सा बाहर चला जाता है. यह पूंजी का पलायन है. नेता-अफसर तो अपना इलाज देश के अच्छे अस्पतालों में करा लेते हैं, मगर, गरीबों को चिकित्सा की सुविधा आसानी से उपलब्ध नहीं है.