दुनियाभर के फुटबॉल प्रेमियों पर इस वक्त ‘फुटबॉल विश्वकप 2014’ का खुमार छाया हुआ है. ऐसे वक्त में कप की दावेदार प्रमुख टीमों के साथ-साथ फुटबॉल के महानतम खिलाड़ियों की फेहरिस्त पर भी बहस आम है. कोई पेले का दीवाना है तो कोई माराडोना का. फुटबॉल के कुछ सर्वकालिक महानायकों से परिचय करा रहे हैं वरिष्ठ खेल पत्रकार अभिषेक दुबे.
पेले
फोनोग्राफ, मोशन पिक्चर कैमरा और बल्ब, थॉमस एडिसन की पहचान इन तीन आविष्कारों से है. लेकिन अमेरिका के मशहूर बिजनेसमैन और आविष्कारक के नाम से प्रेरित होकर फुटबॉल का एक ऐसा सितारा जगमगाया, जिससे ये खूबसूरत खेल आज भी रौशन है. एडिसन अरानतेस डो निस्मेंटो पेले कैसे बने, इसको लेकर भले ही विवाद हो, लेकिन विश्व फुटबॉल के इस ध्रुव सितारे का नाम अमेरिकी अविष्कारक एडिसन से ही प्रेरित होकर रखा गया था.
तीन वर्ल्ड कप, दो वर्ल्ड कप चैंपियनशिप और नौ साओपोलो स्टेट चैंपियनशिप विजेता पेले के नाम 1283 गोल है, जिसमें से 77 गोल अपने देश ब्राजील के लिए हैं. 15 साल से कम उम्र के इस अनमोल हीरे पर ब्राजील के मशहूर फॉरवर्ड ब्रीटो की पारखी नजर गयी और उन्होंने तभी कह दिया कि यह नौजवान आगे चलकर दुनिया का महानतम फुटबॉल खिलाड़ी बनेगा. ब्रेटो होनहार पेले को ब्राजील की क्लब सैंटोस ले गये. फुटबॉल विश्व मानचित्र पर कभी अपनी पहचान के लिए मोहताज नहीं रहा, लेकिन ‘द ब्लैक पर्ल’, ‘द किंग ऑफ फुटबॉल’, ‘द किंग पेले’ और ‘द किंग’ नाम से मशहूर पेले दुनिया की सबसे खूबसूरत खेल की सबसे खूबसूरत तसवीर बन चुके हैं. 19 नवंबर को पेले ने अपना हजारवां गोल किया और इस दिन को आज भी सैंटोस में ‘पेले दिवस’ के तौर पर मनाया जाता है. 1967 में नाइजीरिया में फेडरल और बागी सेना के बीच घमासान चल रहा था.
पेले ने युद्धग्रस्त क्षेत्र का दौरा किया और दोनों सेनाओं ने 48 घंटे की सीजफायर का ऐलान कर दिया. तभी तो यूएन में ब्राजील के राजदूत ने कहा कि पेले ने 22 साल फुटबॉल खेला और इस दौरान दुनियाभर में उनसे बेहतर कोई राजदूत न हुआ होगा. 1981 में ब्राजील की सरकार को जब यह लगा कि वे दूसरे देश चले जायेंगे, उन्हें ‘राष्ट्रीय खजाना’ घोषित कर दिया गया. फुटबॉल के चुनिंदे एक्सपर्ट जब पेले की तुलना डी स्टीफानो से करने लगे तो जाने माने फुटबॉल के लेखक जेफरी ग्रीन ने यह कहकर विवाद को खत्म कर दिया- ‘स्टीफानो धरती पर बने थे और पेले सीधे स्वर्ग से आये थे.’
माराडोना
पेले के बाद फुटबॉल के महानतम खिलाड़ियों की फेहरिस्त में माराडोना का नंबर आता है. ‘बीते दौर में किसी की तुलना के लिए सबसे अधिक इस्तेमाल किये जाने वाले हमारे मानक माराडोना रहे. उनसे बेहतर हमारी सोच और मूल आत्मा की समझ कोई नहीं. उनसे बेहतर हमारे प्रतीक कोई नहीं. बीते 20 साल में किसी दूसरे व्यक्ति ने माराडोना से अधिक जोश-जुनून हमें नहीं दिया. अर्जेटीना माराडोना हैं, माराडोना अर्जेटीना हैं’- अर्जेटीना के मशहूर मनो-चिकित्सक और लेखक गुस्ताओ बर्नस्टाइन ने पेले के बाद फुटबॉल के सबसे बड़े महानायक माराडोना की व्याख्या इन शब्दों में की है. 53 साल के माराडोना की जब कहीं भी चर्चा होती है, 1986 फुटबॉल वर्ल्ड कप फ्लैश-बैक के तौर पर सामने आ जाता है. क्वार्टर फाइनल मैच में अर्जेटीना बनाम इंग्लैंड का वह मुकाबला, माराडोना का पहला गोल, जिसे दुनिया ‘हैंड ऑफ गॉड’ के नाम से जानती है और लगभग पूरी टीम को छकाते हुए अकेले दम वो गोल, जिसे एक्सपर्ट ‘गोल ऑफ द सेंचुरी’ मानते हैं.
माराडोना 1986 वर्ल्ड कप में ‘प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट’ रहे, लेकिन एक्सपर्ट की मानें तो इतिहास में किसी एक वर्ल्ड कप में किसी एक खिलाड़ी ने इस कदर अपनी छाप नहीं छोड़ी होगी, जैसा 1986 वर्ल्ड कप में माराडोना ने छोड़ा. पेले और माराडोना में महानतम कौन. यह ऐसा सवाल है, जिसको लेकर आरोप-प्रत्यारोप से लेकर गंभीर बहस हुए हैं. माराडोना खेल के मैदान में लाजवाब रहे, लेकिन मैदान के बाहर कभी ड्रग्स, कभी विवादास्पद बयान की वजह से वो हमेशा सुर्खियों में रहे. फुटबॉल के साथ उनका हुनर उन्हें युवा पीढ़ी का आदर्श बनाता है, लेकिन सार्वजनिक और व्यक्तिगत जीवन में उनकी हरकत उन्हें रोल मॉडल नहीं बनने देती.
माराडोना ने जर्मनी वर्ल्ड कप में उद्घाटन समारोह का यह कह कर बहिष्कार किया कि वे पेले को चारों ओर मचलते हुए देखने के लिए आ सकते. उसी साल जब अर्जेटीना के प्रबंधक के तौर पर माराडोना गलत वजहों से सुर्खियों में आ रहे थे, तभी पेले ने चुटकी लेते हुए कहा- ‘माराडोना की कोई गलती नहीं है, यह गलती उनकी है, जिन्होंने उन्हें यह जिम्मेवारी दी.’ जवाब में माराडोना ने कहा- ‘पेले को वापस म्यूजियम में चले जाना चाहिए और वहीं रहना चाहिए.’ गंभीर संदर्भ में पेले ने उनकी माराडोना से तुलना किये जाने का दो बार जवाब दिया है. पेले ने एक बार सार्वजनिक मंच पर कहा- ‘लोग मुङो बीते 20 सालों से बार-बार पूछते हैं कि वे महानतम हैं या माराडोना. जवाब आसान है. यह देख लो कि हम दोनों में से बायें पैर और सिर से किसने अधिक गोल किये और जवाब मिल जायेगा.’
इसी बात का विस्तार करते हुए वे अपनी ऑटोबायोग्राफी में लिखते हैं- ‘महान से महानतम वो खिलाड़ी बनता है, जो लंबे समय तक शिखर पर रहे. इसमें दो राय नहीं कि 1986 वर्ल्ड कप के आसपास माराडोना कमाल का खेल दिखा रहे थे, लेकिन मैं शायद दो दशक तक ऐसे ही फॉर्म में रहा.’
जिदान
1990 और 2000 के दशक में फ्रांस के फुटबॉलर जिनेदिन जिदान ने अपने खेल से पूरी दुनिया को रोमांचित किया. अल्जीरिया से आकर फ्रांस में जिदान के माता-पिता बसे और इस महान खिलाड़ी ने अपने आखिरी निर्णायक मैच को छोड़ हर मौके को भुनाया. 1998 में जब फ्रांस ने वर्ल्ड कप का आयोजन किया, तो जिदान पूरे फॉर्म में थे. उन्होंने जबरदस्त पास और ड्रिबलिंग के सहारे फाइनल मैच में ब्राजील को पस्त करते हुए अपनी टीम को वर्ल्ड कप में जीत दिलायी. दो साल बाद उन्होंने फाइनल मैच में इटली को हराकर फ्रांस को यूरोपियन कप का विजेता बनाया. जिदान मुंहमांगी कीमत में स्पैनिश क्लब रियल मैड्रिड से जुड़े और पहले अपनी टीम को यूएफा चैंपियंस लीग और फिर अगले सीजन में ला लीगा चैंपियन बनाया. 2006 में आखिरी वक्त पर रिटायरमेंट के फैसले को बदलते हुए उन्होंने वर्ल्ड कप खेला और अपनी टीम को फाइनल में ले गये. लेकिन इटली के खिलाफ मैच में ‘हेड बट’ विवाद की वजह से उन्हें बाहर कर दिया और टीम को हार का सामना करना पड़ा.
रोमारियो / रोनाल्डिन्हो /रिवाल्डो
1994 फीफा वर्ल्ड कप में ब्राजील के एक 17 साल के नौजवान को टीम के साथ बेंच पर बैठ कर अनुभव लेने के लिए जोड़ा गया. रोमारियो और बबेतो के चमत्कारिक खेल की बदौलत ब्राजील ने वर्ल्ड कप जीत कर 24 साल का सूखा खत्म किया. 1998 में यह नौजवान अपनी शिखर पर पहुंच चुका था. पूरे टूर्नामेंट में यह स्टार खिलाड़ी रहा, लेकिन फाइनल मैच में अनफिट हो गया. मैच खत्म होने के 34 मिनट पहले मैदान में जरूर आया, लेकिन अपनी टीम को फ्रांस के खिलाफ हारते हुए देखने के लिए. गंभीर चोट ने उसके करियर पर सवालिया निशान लगा दिया. लेकिन जैसे ही यह लग रहा था कि एक बेमिशाल करियर पर अचानक ब्रेक लग गया, उन्होंने 2002 वर्ल्ड कप में रिवाल्डो और रोनाल्डिन्हो के साथ मिलकर एक यादगार जीत की नींव रखी. 2006 वर्ल्ड कप में बढ़ते वजन और फिटनेस की कमी के बावजूद उन्होंने टूर्नामेंट में तीन गोल किये और सभी वर्ल्ड कप मैच मिला कर 15 गोल करने का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया. जी हां, हम ब्राजील के रोनाल्डो की बात कर रहे हैं, जो आधुनिक दौर में गोल मशीन थे, लेकिन जिन्हें शायद एक्सपर्ट ने पूरा हक नहीं दिया.
जॉन क्राइफ
दक्षिण अमेरिका ने विश्व फुटबॉल को अगर पेले और माराडोना दिया, तो यूरोप ने जॉन क्राइफ दिया. बचपन में दुबले-पतले क्राइफ को मां एजैक्स के कोच के पास ले गयी. अभी वे टीम में शामिल ही हुए थे कि 12 साल की उम्र में पिता का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. लेकिन कोच ने फुटबॉल में उनके हुनर को पैना करने के साथ-साथ शारीरिक बनावट पर काम करते हुए इस विरले को ऐसी नींव दी कि वो रयनुस मिचेल्स के बाद ‘टोटल फुटबॉल’ की सोच के सबसे बड़े अगुआ बने. 1974 वर्ल्ड कप में ‘प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट’ रहे क्राइफ अपनी टीम को फाइनल मैच तो नहीं जिता सके, लेकिन हॉलैंड ने उनकी अगुआई में जिस तरह से ‘टोटल फुटबॉल’ का नमूना दिखाया, वह तब से लेकर आज तक कई कोच और टीम की कामयाबी का नुस्खा बना हुआ है. क्राइफ अपनी बेबाकी के लिए हमेशा मशहूर रहे. स्पेन के तानाशाह फ्रैनसिसको फ्रांको का विरोध करते हुए उन्होंने रियाल मैड्रिड में शामिल होने से इनकार कर दिया.
युसेबीओ
इन विरले सितारों की फेहरिस्त में भला ‘ब्लैक पैंथर’ या ‘ब्लैक पर्ल’ के नाम से मशहूर पुर्तगाल के चीते युसेबीओ को भला कोई कैसे भूल सकता है. कहते हैं पुर्तगाल के कोच बाल कटाने के लिए नाई की दुकान पर गये थे. तभी वहां मौजूद एक आदमी ने कहा, ‘मोजैम्बिक का एक खिलाड़ी है, जो अद्भुत फुटबॉल खेलता है, उसकी तरह ना कोई है ना होगा.’ कोच ने कहा उसे ले आओ और यहां से युसेबीओ का यादगार सफर शुरू हुआ. स्पीड, तकनीक और दायें पैर से जबरदस्त शॉट लगाने वाले फुटबॉल के इस बादशाह ने बेनफीका क्लब के लिए पहचान बनायी. उनके खेल ने तत्कालीन दौर के फुटबॉल के खिलाड़ियों और दीवानों को इस कदर अपना मुरीद बनाया कि उनके मित्र और फुटबॉलर एंटोनीयो समोएस ने कहा- ‘युसेबीओ के साथ हम यूरोपियन चैंपियन बन सकते हैं, उनके बिना हम लीग चैंपियन हैं. मेरी नजर में उनकी तरह न कोई हुआ न होगा.’
फ्रैंज बैकेनबोर /जॉर्ज बेस्ट
‘अकल्पनीय’, ‘अजेय’, ‘अद्भुत’. नॉर्थ आयरलैंड के महान फुटबॉल खिलाड़ी जॉर्ज बेस्ट एक बार भी वर्ल्ड कप में हिस्सा तो नहीं ले सके, लेकिन उनके फैन्स इन शब्दों में जॉर्ज बेस्ट को याद करते हैं. 1946 में जन्मे बेस्ट के बारे में उनकी मां हमेशा कहती- ‘बेस्ट और गेंद की बचपन से यारी थी, शायद तबसे जब उसने होश भी नहीं संभाला था.’ दुनिया बेस्ट मैनचेस्टर यूनाइटेड के साथ उनके लाजवाब दौर, नॉर्थ आयरलैंड के साथ उनके यादगार प्रदर्शन और जिंदगी के साथ उनके ‘किंग साइज’ रवैये के लिए उन्हें याद करती है. जॉर्ज बेस्ट को महान पेले भी उनके दौर का बेस्ट खिलाड़ी मानते थे. 59 साल की उम्र में जब उनका निधन हुआ तो उनकी श्रद्धांजलि सभा में उनके लिए ये अमर वाक्य लिखे गये- ‘खूबसूरत खेल का एक खूबसूरत सितारा.’
जर्मनी के फुटबॉल खिलाड़ी, कोच और मैनेजर रहे फ्रैंज बैकेनबोर को उनके पहले नाम ‘फ्रैंज’, फुटबॉल की उनकी निराली शैली और उनकी लीडरशिप के लिए ‘अल काइजर’ की उपाधि दी गयी. फ्रैंज ने मिडफील्डरर के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की और बाद में जबरदस्त डिफेंडर के तौर पर नाम कमाया. फुटबॉल के एक्सपर्ट की मानें तो उन्होंने फुटबॉल में ‘स्वीपर’ पोजिशन का अविष्कार किया. 1980 के दशक में पौलो रोस्सी के तौर पर इटली से एक ऐसा तूफान आया, जिसने फुटबॉल जगत को हैरान कर दिया. 1982 वर्ल्ड कप से पहले पौलो रोस्सी पर मैच फिक्सिंग समेत कई गंभीर आरोप लगे. इस वर्ल्ड कप के लीग स्टेज में उनका प्रदर्शन मामूली रहा. लेकिन तभी उन्होंने अपने खेल से ब्राजील की ड्रीम टीम को फाइनल में नेस्तनाबूद कर इटली को वर्ल्ड कप विजेता बना दिया. यही फुटबॉल का रोमांस और रोमांच है.
वर्ल्ड कप फुटबॉल इतिहास का स्टार कास्ट- पुकास से मेसी तक
फुटबॉल के शुरुआती दौर में एक ऐसा खिलाड़ी आया, जिसे इस खेल का सुपरस्टार कहा जा सकता है. हंगरी के फेरनेक पुकास ने 1954 वर्ल्ड कप में इंग्लैंड को अकेले दम हराया था. अपनी टीम को ओलिंपिक गोल्ड मेडल दिलाने वाले पुकास ने पश्चिमी जर्मनी के खिलाफ फाइनल मैच में फ्रैक्चर होने के बावजूद खेला. पुकास ने 1961 में स्पेन की सदस्यता ले ली और उनके लिए अगले साल वर्ल्ड कप भी खेला, लेकिन तब तक वो अपने बेहतरीन दौर को पीछे छोड़ चुके थे. फुटबॉल में मौजूदा दौर में एक सितारा है, जो लीग फुटबॉल में अपने खेल से हर किसी को मंत्रमुग्ध कर चुका है.
अर्जेटीना के मेसी वर्ल्ड कप में अब तक अपनी छवि और प्रतिभा के साथ न्याय नहीं कर पाये हैं, लेकिन फीफा 2014 में उन्होंने यादगार दस्तक दी है. शायद, पेले के देश में हो रहे वर्ल्ड कप पर परदा गिरते ही वो इन महानायकों की कतार में खड़े हों. पेले के शब्दो में- ‘जब फुटबॉल स्टार खो जाते हैं, तो टीम भी खो जाती है, यह एक अद्भुत फेनॉमेना है. शायद एक थियेटर की तरह, जहां लीड आर्टिस्ट के जाते ही पूरा स्टार कास्ट बिखर जाता है.’