फ़ुटबॉल के सबसे बड़े उत्सव विश्व कप देखने के लिए दुनिया भर से सैकड़ों लोग ब्राज़ील पहुँच रहे हैं. भारत से भी काफ़ी लोग जा रहे हैं. पर कोलकाता के चटर्जी दम्पति की बात अनूठी है.
80 साल के पन्नालाल चटर्जी और 72 वर्षीय उनकी पत्नी चैताली इससे पहले आठ विश्व कप देख चुके हैं और ये उनके लिए नौवां विश्व कप होगा. वो भी अपने ख़र्च से. फ़ुटबॉल उनके लिए एक नशा है.
फ़ुटबॉल के रंग में रंगा ब्राज़ील का साओ पाओलो
दक्षिण पश्चिमी कोलकाता के खिदीरपुर इलाक़े में अपने पुश्तैनी मकान की तीसरी मंज़िल पर रहते हैं पन्नालाल और चैताली चटर्जी.
पूर्व फ़ुटबॉलर और अब फ़ुटबॉल प्रशंसक पन्नालाल फ़ोन पर साओ पाओलो में किसी से बात कर रहे थे. जब वो उन्नीस तारीख़ को वहां पहुंचेंगे तो हवाई अड्डे पर उनको लेने कौन आएगा ये तय किया जा रहा था.
फ़ुटबॉल का मक्का
वे इससे पहले विश्व कप देखने के लिए आठ देशों का भ्रमण कर चुके हैं पर ब्राज़ील उनके लिए फ़ुटबॉल का मक्का है.
पन्नालाल बताते हैं कि काफ़ी कठिनाई के बावजूद एक बार फिर से वह विश्व कप देखने के लिए निकल रहे हैं. हालांकि ब्राज़ील से जिस तरह की ख़बरें आ रही हैं उससे वह थोड़ा आशंकित भी हैं.
हर बार पन्नालाल चटर्जी कुछ दोस्तों की सहायता से ख़ुद ही सफ़र की सारी तैयारी करते हैं.
विश्व कप 2014: फ़ुटबॉल की घर वापसी
पन्नालाल चटर्जी ने बताया कि क़रीब आठ महीने पहले उन्होंने फ़ीफा को एक चिट्ठी भेजी थी. साल 1982 से पत्नी को लेकर विश्व कप देखने के लिए जा रहे हैं. इसका उल्लेख उन्होंने किया था इस चिट्ठी में. ब्राज़ील जाने के लिए फ़ीफ़ा से मदद मांगी थी उन्होंने.
पन्नालाल ने बताया, "फ़ीफ़ा ने एक व्यक्ति के माध्यम से साओ पाओलो में एक अपार्टमेंट का बंदोबस्त कर दिया है और चार क्वार्टर फ़ाइनल मैच के टिकट भी दिलवाए हैं. एक सेमीफ़ाइनल मैच देखने की भी उम्मीद है. रहने खाने का उनका ख़र्च बच गया और एक मित्र ने विमान का टिकट काफ़ी सस्ते में दिलवा दी हैं. फिर भी दो लोगों पर चार लाख रुपए ख़र्च हो रहे हैं."
रुपए का जुगाड़
इतने पैसों का जुगाड़ कैसे होता है? हमने ये सवाल चैताली चटर्जी से पूछा.
चैताली चटर्जी ने कहा, "हर महीने कुछ पैसा वो जमा करते हैं. एक फंड बनाते हैं. कितनी भी कठिनाई हो उस फंड को हाथ नहीं लगाया जाता है. अगर किसी कारण से एक महीने में पैसा जमा नहीं कर पाए तो अगले महीने दोगुना पैसा जमा करते हैं. और इसके लिए एक महीना मछली खाना भी छोड़ देते हैं. इसके अलावा पन्नालाल चटर्जी को साल में तीन-चार बार सिक्किम गोल्ड कप टूर्नामेंट आयोजन करने के लिए विमान के टिकट का पैसा दिया जाता है. पर वो सफ़र करते हैं ट्रेन में. उससे भी काफ़ी पैसा जमा हो जाता है विश्व कप फंड में."
सर चढ़ा फ़ुटबॉल विश्व कप का बुख़ार
पन्नालाल बताते हैं कि विश्व कप सफ़र में सबसे यादगार पल वो रहा जब अमरीका में फ़ुटबॉल के बादशाह पेले से उनकी मुलाक़ात हुई थी. साड़ी पहनी हुई एक भारतीय महिला को विश्व कप में देखकर पेले ख़ुद ही आगे आए थे मिलने के लिए और उस तस्वीर को अपने ड्राइंग रूम में सजा कर रखा हैं चटर्जी दंपति ने. पर उनकी पत्नी के लिए सबसे यादगार पल वो है जब मेक्सिको में हुए विश्व कप के दौरान उन्होंने अर्जेंटीना के मैराडोना को खेलते हुए देखा था.
चैताली कहती है, "सबसे यादगार मैच तो वो है अर्जेंटीना और इंगलैंड के मैच में मैराडोना को खेलते हुए देखना. ये कोई भी फ़ुटबॉल प्रेमी के लिए जीवन भर की एक उपलब्धि है. उस मैच में शिल्टन जैसे गोलकीपर थे इंगलैंड टीम में. मैराडोना ने एक शॉट मारा और बॉल के गोललाइन से पार करने से पहले ही वे मैदान के किनारे आकर नाच रहे थे. इतना आत्मविश्वास था उनको कि गोल होगा ही."
दिल दुखता है?
पन्नालाल चटर्जी से जब हमने पूछा कि इतने देशों का आपने सफ़र किया है, इतने देशों को विश्व कप में खेलते देखा है पर अपना देश वहाँ खेल नहीं पाता. दिल दुखता है?
उनका जवाब था, "विश्व कप के मैच देखने से पता चलेगा कि क्यों भारत में फ़ुटबॉल इतना पीछे हैं. जिस बॉल से मैच खेला जाएगा, उसकी क़ीमत है 27 हज़ार रुपए और यहाँ चार-पांच सौ रुपए के बॉल से खेला जाता है. हमारे यहां किसी स्टेडियम में घास बड़ी है तो कहीं छोटी. हर एक शहर का तापमान अलग है. ये भी तो देखना होगा. यहाँ फ़ुटबॉल को बढ़ावा देने के लिए आधारभूत ढ़ांचा ही नहीं है."
जिस देश में चटर्जी दंपति विश्व कप देखने के लिए जाते हैं वहां मैच देखने के अलावा उस देश को घूम भी लेते हैं. जैसे पिछली बार दक्षिण अफ़्रीक़ा में मैच देखने के बाद वो मसाईमारा घूम आए थे. उससे पहले अमरीका में ग्रैंड कैन्यन घूम आए थे. इस बार वरिष्ठ दंपति की योजना अमेज़न घूमने की है.
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