।। दक्षा वैदकर ।।
बॉस जब भी अपने कर्मचारी को किसी गलती के लिए डांटता है, कर्मचारी उनके पीठ पीछे यही बड़बड़ाता है- ‘खुद तो एसी केबिन में बैठा रहता है, यहां भाग-दौड़ का काम तो हम करते हैं. हमें पता है इतने सारे काम करते-करते गलतियां हो ही जाती हैं.’ पति जब भी ऑफिस से आता है और पत्नी को बच्चों को पीटते हुए देख कहता है कि बच्चों को प्यार से समझाया करो, पत्नी यही जवाब देती है- ‘तुम तो ऑफिस में रहते हो. मैं बच्चों के साथ दिन भर घर पर रहती हूं, मुझे तुमसे ज्यादा पता है कि उन्हें कैसे हैंडल करना है.’
यह कहानी हर ऑफिस और हर घर की है. कितनी अजीब बात है कि हम सामनेवाले की सलाह मानने और खुद में सुधार करने की बजाय सलाह देनेवाले को ही गलत ठहरा देते हैं. हम उन्हें यह कह कर बच निकलना चाहते हैं कि अगर आप मेरी परिस्थिति में होते, तो आप भी यही करते. अगर हर व्यक्ति ऐसा ही जवाब देने लगे, तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि देश का क्या होगा. आप खूनी से पूछेंगे कि उसने हत्या कर बहुत बड़ी गलती की है, तो वह कहेगा आप मेरी परिस्थिति में होते, तो आप भी यही करते. क्या इस तरह वह खूनी अपनी गलती से बच सकता है? बिल्कुल नहीं. गलती सिर्फ गलती होती है. इसमें परिस्थितियों का बहाना न करें. ऐसा करने से हमारी गलतियां भी बढ़ेंगी और हमारे अंदर की कमजोरियां भी.
एक आध्यात्मिक गुरु ने ‘स्वीकार का जादू’ विषय पर बहुत ही खूबसूरत अंदाज में कहा कि शुरुआत में यदि आप सबके सामने गलती स्वीकार नहीं कर सकते, तो भी अकेले में आत्मविश्लेषण कर बहुत-सी बातें स्वीकार करना सीखें. हार स्वीकार करना जीत से कम नहीं होता.
अपनी कमजोरी स्वीकार करना खुद को मजबूत बनाने का पहला कदम हो सकता है. जैसे ही आपने स्वीकार किया, कुंठाएं दूर हो जाती हैं, तनाव समाप्त हो जाता है. खराब आदतें समाप्त होना शुरू हो जाती हैं, नकारात्मकता विलुप्त होने लगती है. आप सकारात्मक ऊर्जा के साथ कार्य करते है तो बाहरी परिणाम के साथ अंतरमन का विकास दिखने लगता है. इस गजब के ‘स्वीकार के जादू’ को हम-आप आत्मसात करें.
– बात पते की
* जब कोई आपको आपकी गलती बताये, तो उसे उल्टा जवाब देने की बजाय उसकी सलाह पर विचार करें. हो सकता है कि आप सच में गलत हों.
* आत्मविश्लेषण करें कि कहीं आप अपनी गलतियों से बचने का प्रयास तो नहीं कर रहे? जब आप यह सीख जायेंगे, तो व्यक्तित्व में निखार आ जायेगा.