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अब ‘आप’ का क्या होगा?

लोकसभा चुनाव में जिन पार्टियों को करारी हार का मुंह देखना पड़ा है, उनमें विमर्श और सांगठनिक फेरबदल का दौर चल रहा है, लेकिन भारतीय राजनीति में नयी उम्मीद लेकर आयी आम आदमी पार्टी से उथल-पुथल की खबरें ही ज्यादा आ रही हैं. इसके कुछ प्रमुख नेताओं ने पार्टी छोड़ दी है, तो कुछ ने […]

लोकसभा चुनाव में जिन पार्टियों को करारी हार का मुंह देखना पड़ा है, उनमें विमर्श और सांगठनिक फेरबदल का दौर चल रहा है, लेकिन भारतीय राजनीति में नयी उम्मीद लेकर आयी आम आदमी पार्टी से उथल-पुथल की खबरें ही ज्यादा आ रही हैं. इसके कुछ प्रमुख नेताओं ने पार्टी छोड़ दी है, तो कुछ ने पार्टी के पदों से इस्तीफा दे दिया है. ऐसे में आम आदमी पार्टी की भविष्य की संभावनाओं की एक पड़ताल..

पिछले कुछ दिनों में आम आदमी पार्टी के कई प्रमुख नेताओं के इस्तीफे से जाहिर है कि आप के लिए अब आगे की राह मुश्किल भरी होनेवाली है. आम आदमी पार्टी को अब वैसी पब्लिसिटी नहीं मिलेगी, जैसी आम चुनाव के पहले मिला करती थी. अब कोई भी अखबार उठाइये या कोई भी न्यूज चैनल देखिये, आम आदमी पार्टी के बारे में कुछ है ही नहीं. यह भी नहीं कि पार्टी हार की समीक्षा कर रही है. कारण, मीडिया अब ‘मोदी-मीडिया’ बना हुआ है. हर तरफ नवगठित सरकार की बातें और नरेंद्र मोदी के ट्वीट्स छाये हुए हैं. हां, अगर कुछ है, तो आप नेताओं के इस्तीफे को लेकर नकारात्मक खबरें हैं. ऐसे में आप के लिए पब्लिसिटी पाना अब आसान नहीं होगा. लेकिन एक बात यह भी गौर करनेवाली है कि आप में ज्यादातर पत्रकार हैं और काफी अच्छे पत्रकार हैं, जिन पर यह जिम्मेदारी है कि वे मीडिया तक फिर से अपनी बात पहुंचाने के लिए रणनीति बनायें. आम आदमी पार्टी की अब आगे की रणनीति क्या है, जब तक यह बात सामने नहीं आती, लोग तो यही समझेंगे कि इस पार्टी का अब कुछ नहीं हो सकता. अरविंद केजरीवाल ने यह कहा, योगेंद्र यादव ने यह बोला, मनीष या विश्वास ने ऐसी प्रतिक्रिया दी या किसी और नेता ने ऐसा कहा, ये सब खबरें नहीं हैं. खबर तो यह होनी चाहिए कि आम आदमी पार्टी अब किस तरह अपने अस्तित्व को लेकर संवेदनशील है, उसके नेता पार्टी के भविष्य को लेकर कितने गंभीर हैं. आप का सबसे बड़ा हथियार है ‘थ्योरी ऑफ कम्युनिकेशन’ यानी संवाद सिद्धांत, लेकिन वे इसमें भी पिछड़ रहे हैं. हार के बाद जनता से संवाद कायम रखना भी एक राजनीति है, जो हार के कारणों को समझने में मदद करती है.

यह उम्मीद बिल्कुल भी नहीं थी कि इतनी जल्दी आम आदमी पार्टी में इस्तीफे का दौर शुरू हो जायेगा. हार-जीत का सामना हर राजनीतिक दल को करना पड़ता है. हार के बाद पार्टी के सभी नेता-कार्यकर्ता मिल कर उस हार की समीक्षा करते हैं और आगे से वही गलती न दोहराने के लिए अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करते हैं. पार्टी के भविष्य के बारे में सोचते हैं और आगे बढ़ने की कोई ठोस रणनीति बनाते हैं. परंपरा से इतर एक नयी तरह की राजनीति के बारे में सोचते हैं. दोगुनी ऊर्जा से आगामी चुनावों की तैयारी में अभी से लग जाते हैं. लेकिन, ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा है.

.. जबकि आप की जिम्मेदारी तो अब ज्यादा बढ़ जाती है, क्योंकि चुनावों के दौरान आप जिसका विरोध कर रहे थे, वर्तमान सरकार उसी की है. कमजोर विपक्ष के बीच आप के सामने यह एक बेहतरीन मौका है कि वह रणनीति बना कर फिर से जनता के उन सारे मुद्दों को उठाये, जो सचमुच अब तक नहीं उठाये गये. नये तरह के मुद्दों को जन्म देकर ही नये प्रोटेस्ट का जन्म दिया जा सकता है. आम जनता के लिए नीति के तहत संस्थागत निर्माण, संरचनात्मक निर्माण और हर पिछड़े क्षेत्र का विकास बहुत जरूरी चीजे हैं. इनको बहस के मूल में शामिल कर जनहितकारी रवैया अख्तियार करना होगा, जो कि आप में अभी नहीं दिखता. यही वजह है कि आम जनता की उससे दूरी बढ़ रही है. ऐसा चलता रहा तो पार्टी के अस्तित्व पर संकट आ जायेगा.

नरेंद्र मोदी के विकास के नाम पर जनता ने भाजपा को पूर्ण बहुमत दिया है. ऐसे में आम आदमी पार्टी के सामने सबसे ज्यादा चुनौती खड़ी होती है कि वह अब किन मुद्दों को लेकर अपने राजनीतिक आंदोलन को जारी रखे और विपक्ष की भूमिका के लिए तैयार हो जाये. आप को पहले ‘इनफार्मल अपोजीशन’ की भूमिका तलाशनी होगी, फिर ‘फार्मल अपोजीशन’ की. इसके साथ ही यह भी तय करना होगा कि इसका नेतृत्व किसके पास होगा. अरविंद केजरीवाल होंगे या कोई और होगा. चूंकि केंद्र अब मजबूत स्थिति में है, इसलिए सिर्फ दिल्ली पर निर्भर रहने से कुछ भी नहीं होनेवाला, उसे विकेंद्रीकरण की राजनीति को एक नया आयाम देना पड़ेगा. विकेंद्रीकरण को लेकर आप की सोच पंचायती राज तक जाती है, जबकि इसका अर्थ सशक्तिकरण से लगाया जाना चाहिए. जितने भी स्थानीय मुद्दे हैं, उन्हें राष्ट्रीय फलक पर लाना होगा. लेकिन इसके लिए एक पार्टी की जो रणनीति होनी चाहिए, आप में वह कहीं दिखायी नहीं दे रही है. यदि हम पार्टी के बारे में सोच रहे हैं, इसका मतलब है कि हम उसके भविष्य के बारे में सोच रहे हैं. आप में पहले यह सोच दिखती थी, लेकिन आम चुनाव के बाद यह सोच जैसे गायब सी हो गयी है.

कांग्रेस की मानसिकता रिटायरमेंट की ओर है, उसके लिए हार एक हताशा का विषय हो सकता है, लेकिन आम आदमी पार्टी के लिए यह हार उसकी जीत का रास्ता बन सकता है. मजबूत सरकार होते हुए भी हमारा देश बहुत बड़ा है, ढाई दर्जन राज्य हैं, मुद्दे तमाम हैं, सब तक पहुंचने में थोड़ा वक्त लग सकता है. इसलिए सामूहिक तौर पर आप को एक लोकतांत्रिक विचारधारा, नीति, रणनीति, प्रॉस्पेक्टस तैयार करना होगा, क्योंकि आम चुनाव खत्म होते ही उससे पहले का सबकुछ इतिहास का हिस्सा बन गया है. राष्ट्रीय स्तर पर पर दिल्ली जैसा इतिहास दोहराने के लिए यहीं से माकूल समय शुरू होता है. भारतीय राजनीति में अब एक नयी कहानी और एक नये इतिहास को खाद-पानी देने का समय शुरू होता है. पूरे देश से ‘आप’ को कम-से-कम पांच-छह ऐसे क्षेत्रों को चुन कर राजनीतिक लड़ाई लड़ने के लिए रणनीति बनानी होगी, जो विकास के पैमाने पर बहुत नीचे हैं. उसमें भी खास काम यह करना होगा कि कुछ वंचित वर्गो को लेकर ही चलना होगा, क्योंकि देश के तमाम वर्गो को लेकर चलना एक बारगी बीते आम चुनाव की स्थिति पैदा कर देगा यानी राष्ट्रीय पार्टी बनने के चक्कर में अपनी स्थानीयता भी गंवा बैठे. तमाम वर्गो तक पहुंच के लिए बहुत पैसा और बहुत से लोग चाहिए, जो अभी आम आदमी पार्टी के पास नहीं है.

एक और जो महत्वपूर्ण बात है, आम आदमी पार्टी को सारे पुराने जनांदोलनों जैसे गरीबों-मजदूरों के सवाल, नर्मदा, गैस कीमतों में वृद्धि आदि को छेड़ना होगा. इसके साथ ही शहरी गरीबों की स्थितियों और ग्रामीण वंचितों की हालत को लेकर सरकारी रवैये की पड़ताल करनी होगी. हालांकि इसमें बहुत सा समय लगेगा, लेकिन इससे यह फायदा जरूर होगा कि आप फिर से सरकारी तथ्यों-आंकड़ों के साथ वापसी करने में कामयाब हो सकती है. भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी आदि के बीच विकास की राजनीति के लिए ये ऐसे बुनियादी तत्व हैं, जो देश की परंपरागत लोकतांत्रिक व्यवस्था की लगातार गिरती शाख को ऊपर उठाने में मददगार साबित हो सकते हैं. आप अगर ऐसा करती है, तो वह एक लंबी रेस का घोड़ा साबित होगी, नहीं तो इस देश का मिजाज बदलने भर की देर है कि बहुत कुछ बड़ी तेजी से बदलता है.

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