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मोदी को ‘डंके की चोट पर’ वोट देने वाले मुसलमान

नितिन श्रीवास्तव बीबीसी संवाददाता, आज़मगढ़ से भारत में लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से एक लंबी बहस इस बात पर चल रही है कि केंद्र में बहुमत से सरकार बनाने वाली भारतीय जनता पार्टी के मतों में किसका कितना योगदान है. बहस इस बात पर थोड़ी ज़्यादा है कि आखिर देश के मुसलमान […]

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भारत में लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से एक लंबी बहस इस बात पर चल रही है कि केंद्र में बहुमत से सरकार बनाने वाली भारतीय जनता पार्टी के मतों में किसका कितना योगदान है.

बहस इस बात पर थोड़ी ज़्यादा है कि आखिर देश के मुसलमान मतदाताओं ने किस पार्टी को अपना मत दिया.

सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ़ डेवलपिंग सोसाइटीज़ (सीएसडीएस) ने 2009 के चुनावों में मुसलमान मतदाताओं के रुझान की तुलना 2014 के मतदान से की.

भाजपा की जीत में मुस्लिम वोटों का योगदान?

सीएसडीएस के सर्वेक्षण से मिले संकेतों के अनुसार, मुसलमानों में भी इस बार कांग्रेस या क्षेत्रीय पार्टियों के पक्ष में कोई विशेष ध्रुवीकरण देखने को नहीं मिला. दरअसल, इस चुनाव में मुसलमानों का थोड़ा वोट भाजपा की तरफ़ झुका है.

हमने उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में जाकर ऐसे ही कुछ मुस्लिम परिवारों या व्यक्तियों को ढूंढा और उनसे बात की जिन्होंने नरेंद्र मोदी यानी भाजपा को वोट दिया है.

‘मोदी और अटल बिहारी को वोट दिया है’

लखनऊ के ठाकुरगंज इलाके में रहने वाले इशरत ख़ान पेशे से बढ़ई हैं और मौका मिलने पर ठेकेदारी भी करते हैं.

उनके परिवार में कुल 15 सदस्य हैं जिनमें से 12 ने 2014 के आम चुनावों में मतदान किया है. इन सभी लोगों के मुताबिक़, इन्होंने नरेंद्र मोदी के नाम पर भाजपा को वोट दिया.

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जौनपुर के रहने वाले अब्बास ज़फर एक पढ़ा-लिखा मुसलमान होने में गर्व महसूस करते हैं.

इशरत ख़ान ने बताया, "वजह ये है कि हमें ये सरकार आज से नहीं 15 वर्ष पहले से ही पसंद है. हमें मोदी में अटल बिहारी वाजपेयी दिखे हैं."

उनकी पत्नी का मत है कि पिछली सरकार में गरीबों की दशा और बदतर हुई है इसलिए अब उन्हें मोदी में बदलाव की आस दिखी है.

इशरत की माँ ज़ोहरा बानो का पिछले एक साल से सरकारी अस्पताल में इलाज चल रहा है.

लेकिन पूरे परिवार को इस बात की टीस है कि उनके लिए अस्पताल जाना दिन पर दिन कष्टकारी होता जा रहा है.

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उन्होंने कहा, "पिछली बार भाजपा की केंद्र सरकार के दिनों में हमारे प्रदेश में एक भी दंगे नहीं हुए. कैसे न दें नरेंद्र मोदी को वोट. अब उन्हें हमारे हालात सुधारने हैं."

मेरा अगला सवाल स्वाभाविक था, "क्या आपने सुना है नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब 2002 में हुए दंगों में तमाम मुसलमानों की जानें गईं थीं?"

इशरत की बेटी परवीन ने जवाब दिया, "मैं कह सकती हूँ कि गुजरात में जो हुआ उसमे मोदी का सीधा हाथ नहीं था. हमारे इलाके में बहुत से मुसलमान परिवार हैं, जिन्होंने पहले से तय कर लिया था कि मोदी जी को ही वोट देना है."

परवीन ने अपनी बहन अकीला, उनकी दो बेटियों और अपने पूरे परिवार के साथ सुबह-सुबह मोदी को वोट देने की बात दोहराई.

हालांकि उन्हें इस बात का अफ़सोस रहा कि लखनऊ से भाजपा प्रत्याशी राजनाथ सिंह उनके मोहल्ले में प्रचार करने नहीं पहुंचे.

‘अच्छे दिन सच में आने वाले हैं’

जौनपुर के रहने वाले अब्बास ज़फर की आयु 29 वर्ष है और वो खुद को एक पढ़ा-लिखा मुसलमान कहने में गर्व महसूस करते हैं.

ज़फर ने सबसे पहले तो इस बात को साफ़ किया कि भारत में कुछ जगहों पर हाल ही में हुई सांप्रदायिक हिंसा के पीछे की वजह क्या है.

उन्होंने कहा, "भारत में समुदायों के बीच जो भी मतभेद हैं उनके पीछे सिर्फ एक ही वजह है और वो है शिक्षा का अभाव. हमने नरेंद्र मोदी को इसलिए वोट दिया कि हमारे जैसे युवा लोगों को रोज़गार की संभावनाएं ज़्यादा मिलें. पिछले दस साल से विकास एकदम थम सा गया है. आने वाली पीढ़ी के लिए समझ लीजिए हमारा वोट."

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अब्बास ज़फर एक निजी टेलीकॉम कंपनी में काम करते हैं और इसके लिए उन्होंने एमबीए की डिग्री हासिल की थी.

उनको लगता है कि गुजरात में हुए बुरे कामों के बजाय अच्छे मौकों और विकास पर ज़ोर और ध्यान देने की आवश्यकता है.

अब्बास ज़फर का ये भी मानना है कि जब भी इन दोनों के बीच हिंसक वारदातें देखी जाती हैं तो हिंदू-मुसलमान दोनों समुदायों का दोष रहता है .

इसीलिए वे नरेंद्र मोदी को 2002 के गुजरात दंगों के सिलसिले में जोड़ा जाना कतई पसंद नहीं करते.

लेकिन उन्होंने चेताते हुए ये भी कहा, "जो हालात अभी तक देश में रहे हैं उसे देखते हुए मोदी सरकार को कम से कम एक वर्ष तो लगेगा ही चीज़ों को पटरी पर लाने में."

‘डंके की चोट पर कहता हूँ मोदी को वोट दिया’

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लखनऊ निवासी मोहम्मद फज़ल कहते हैं कि वो भारत के युवा हैं हिन्दू या मुसलमान युवा नहीं.

लखनऊ में बारूदख़ाने के रहने वाले मोहम्मद फ़ज़ल को इस बात पर ख़ासा ऐतराज़ होता है जब उन्हें कोई ‘एक मुसलमान युवा’ कह कर संबोधित करता है.

उन्होंने कहा, "मैं भारत का एक युवा हूँ, हिंदू या मुसलमान इसके कोई मायने नहीं हैं क्योंकि युवाओं को धर्म के घेरे में रखने वाला नहीं है."

फज़ल मध्यमवर्गीय मुसलमान परिवार से हैं और उनके पिता का साइकिल का व्यापार है.

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स्कूल से निकलने के बाद इन्होंने कॉमर्स की पढ़ाई की और इन दिनों एक एकाउंटिंग कंपनी में काम करते हैं.

पहली बार के मतदाता फ़ज़ल ने 2014 के आम चुनावों में बहुत उम्मीदों के साथ वोट दिया.

उन्होंने बताया, "मैं डंके की चोट पर कहता हूँ कि मैंने मोदी को वोट दिया है. देखिए भारत में हमें अब राम राज्य की ज़रूरत है. एक ऐसा राम राज्य जिसमें न तो दंगे होते हैं और न फ़साद. हमें शांति चाहिए और साथ में चाहिए विकास."

फ़ज़ल का मानना है कि आज युवा वर्ग को खुशहाली चाहिए और वो सिर्फ विकास से ही मिल सकती है.

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