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वह आदमी, जो अनंत को जानता था

गणितज्ञ एस रामानुजन के लिए गणित बिना रंगों की पेंटिंग की तरह था. वह अनंत को जानते थे. प्रो हार्डी हमेशा प्रमाण मांगते थे, जबकि रामानुजन को सारे जवाब उनकी आत्मा से मिलते थे. कितनी हैरत की बात है कि भारतीय फिल्मकारों ने भारत से बाहर जाकर फिल्में बनाने की कोई कोशिश नहीं की, जैसे […]

गणितज्ञ एस रामानुजन के लिए गणित बिना रंगों की पेंटिंग की तरह था. वह अनंत को जानते थे. प्रो हार्डी हमेशा प्रमाण मांगते थे, जबकि रामानुजन को सारे जवाब उनकी आत्मा से मिलते थे.

कितनी हैरत की बात है कि भारतीय फिल्मकारों ने भारत से बाहर जाकर फिल्में बनाने की कोई कोशिश नहीं की, जैसे विदेशी फिल्मकारों ने भारत में आकर फिल्में बनायी हैं. शेखर कपूर अपवाद हैं, जिन्होंने एलिजाबेथ पर लंदन में जाकर फिल्म बनायी. इस समय तीन ऐसी फिल्में याद आ रही हैं, जिन्हें हर भारतीय को जरूर देखनी चाहिए- ईरान के निर्वासित फिल्मकार मोहसिन मखमलबॉफ की ‘स्क्रीम ऑफ दि ऐंट’ (2006), कनाडा के कविराज की ‘द ब्लैक प्रिंस’ (2017) और मैथ्यू ब्राउन की ‘द मैन हू निउ इनफिनीटी’ (2015 ).
मखमलबॉफ की फिल्म ‘स्क्रीम ऑफ दि ऐंट’ में ईश्वर में विश्वास करनेवाली एक युवती की शादी एक नास्तिक युवक से हो जाती है. वे हनीमून मनाने भारत बनारस पहुंच जाते हैं. उन्हें यकीन है कि बनारस में उनके आध्यात्मिक सवालों के जवाब मिल जायेंगे.
पंजाबी गायक सतिंदर सरताज की मुख्य भूमिका वाली कनाडा की फिल्म ‘द ब्लैक प्रिंस’ पंजाब के आखिरी महाराजा दिलीप सिंह की बायोपिक है. महारानी विक्टोरिया ने दिलीप सिंह को गोद ले लिया था और उन्हें ब्रिटिश जीवनशैली में ढालकर लंदन में अपने महल में रखा था. अपनी सगी मां रानी जिंदा (शबाना आजमी) से मिलने के बाद दिलीप में देशभक्ति जागती है और वे स्वाधीनता संग्राम में कूद पड़ते हैं. पेरिस में उनकी अलक्षित मौत कई सवाल खड़े करती है.
प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ एस रामानुजन पर मैथ्यु ब्राउन की ब्रिटिश फिल्म ‘द मैन हू निउ इनफिनीटी’ हर भारतीय को देखनी चाहिए. यह फिल्म रामानुजन और कैम्ब्रिज विवि के ट्रिनीटी काॅलेज के प्रोफेसर जीएच हार्डी की विलक्षण मित्रता को दिखाती है, जिनके कारण रामानुजन को दुनिया में ख्याति मिली. देव पटेल ने रामानुजन की यादगार भूमिका निभायी है. रिचर्ड एटनबराे की ‘गांधी’ के बाद यह दूसरी ऐसी ब्रिटिश फिल्म है, जो किसी भारतीय व्यक्तित्व पर बनी है. मद्रास पोर्ट में मामूली क्लर्क का काम करनेवाले रामानुजन 1913 में कैम्ब्रिज में प्रोफेसर जी एच हार्डी को खत लिखते हैं और अपने शोध का नमूना भेजते हैं. उनकी प्रतिभा से चमत्कृत प्रो हार्डी उन्हें अपने साथ काम करने के लिए कैम्ब्रिज बुलाते हैं. बाद में उन्हें रॉयल सोसायटी और ट्रिनीटी कॉलेज कैम्ब्रिज का फेलो चुना जाता है. दक्षिण के पारंपरिक अयंगार ब्राहम्ण रामानुजन की यह यात्रा बहुत कठिन थी. साल 1920 में 26 अप्रैल को भारत आते ही मात्र 32 साल की उम्र में कुपोषण और लीवर में संक्रमण से उनकी मृत्यु हो जाती है.
एस रामानुजन की भूमिका निभानेवाले देव पटेल काे इस किरदार को निभाने के लिए बड़ी तैयारी करनी पड़ी. यह एक सांस्कृतिक यात्रा की तरह है. एक तरफ पत्नी है, तो दूसरी तरफ मां है, जिसके कई धार्मिक पूर्वग्रह हैं. कैम्ब्रिज में हार्डी जैसे अलग तरह के इंसान के साथ तालमेल बिठाना बड़ी चुनौती थी, क्योंकि रामानुजन ईश्वर में विश्वास करते थे, जबकि प्रो हार्डी नास्तिक थे.
रामानुजन के जिन सात आखिरी सालों की यह गाथा है, उसमें कई उतार- चढ़ाव हैं, लेकिन गणित के साथ उन्माद की हद तक दीवानगी इस फिल्म की जान है. रामानुजन के उस ऐतिहासिक खत के 75 साल बाद रॉबर्ट कानिगेल ने उनकी जीवनी लिखनी शुरू की, जिस पर यह फिल्म बनी है. रामानुजन की पत्नी जानकी का किरदार निभानेवाली देविका भिस्से कहती हैं कि उनको बहुत कम लोग जानते हैं. किताब के लेखक कानिगेल शोध के दौरान उनकी पत्नी से 1988 में मिले थे, तब वे 90 साल की थीं.
रामानुजन के लिए गणित बिना रंगों की पेंटिंग की तरह था. वे अनंत को जानते थे. हार्डी हमेशा प्रमाण मांगते थे, जबकि रामानुजन को सारे जवाब उनकी आत्मा से मिलते थे. रामानुजन के आखिरी सौ पृष्ठों के नोट्स कैम्ब्रिज के ट्रिनीटी काॅलेज के रेन पुस्तकालय में वर्षों धूल खाते रहे. जॉर्ज एंड्रयू ने उन्हें 1976 में फिर से खोजा. सही मायने में यह फिल्म रामानुजन की जीवनी से अधिक गणित और हार्डी के साथ उनके रिश्तों की फिल्म है.
अजित राय
संपादक, रंग प्रसंग, एनएसडी

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