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उपसभापति बनने के बाद बोले हरिवंश, देखें वीडियो

नयी दिल्ली : लगभग चार दशक तक पत्रकारिता में सक्रिय भूमिका निभाने वाले हरिवंश का चयन राज्यसभा के उपसभापति के रूप में हुआ. चुने जाने के बाद राज्यसभा के सदस्यों ने अपनी बात रखी. हरिवंश ने चुनाव जीतने के बाद राज्यसभा को संबोधित किया. संबोधन के बादउन्हें सभापति वेंकैया नायडू ने बुलाकर आसन पर भी […]

नयी दिल्ली : लगभग चार दशक तक पत्रकारिता में सक्रिय भूमिका निभाने वाले हरिवंश का चयन राज्यसभा के उपसभापति के रूप में हुआ. चुने जाने के बाद राज्यसभा के सदस्यों ने अपनी बात रखी. हरिवंश ने चुनाव जीतने के बाद राज्यसभा को संबोधित किया. संबोधन के बादउन्हें सभापति वेंकैया नायडू ने बुलाकर आसन पर भी बैठाया. अपने संबोधन में उन्होंने कहा, आप में से एक – एक व्यक्ति का आभार. मुझे पता है कि इस गौरवशाली सदन का महत्वपूर्ण जिम्मा आपने मुझे सौंपा है. आपने सही कहा, मैं किसी दल का पक्ष का नहीं हूं. जिन लोगों ने मुझ पर भरोसा किया इस पद के लायक समझा. संसदीयकार्य मंत्री समेत राज्यसभा सचिवालय के सभी लोगों का आभार.सदन के नेता अरुण जेटली का आभार की वह आये.

इस अनुभव के लिए मेरे पास एक शब्द है, मैं भाव विह्वल हूं. मैं उस गांव का हूं, जो दो नदियों घाघरा और गंगा के बीच बसा है. मैं पेड़ के नीचे पढ़ा हूं, गांव में बाढ़ आती थी, तो लगता था अंतिम दिन है. हमें विश्वास नहीं था कि इस पद पर पहुंच जायेंगे. मैं उन सभी लोगों का आभार व्यक्त करता हूं जिन्होंने इसे सच किया. हमारे गांव में आने-जाने का रास्ता नहीं था. हमने समुद्र बाद में देखा, पहले बाढ़ देखी थी, लगता था कि यही समुद्र है. गंगा और घाघरा की उफान देखी. किसी ने जयप्रकाश नारायण से गांव की बदहाली पर शिकायत की कहा, गांव में जाने के लिए सड़क नहीं है.इलाज के लिए खटिया पर ले जाते थे. रौशनी बहुत बाद में देखी. जेपी ने इसका जो जवाब दिया वह आज तक मेरे जेहन में है. उन्होंने जवाब दिया अगर मैं कह दूं, तो मेरे गांव में काम हो जायेगा लेकिन देश के साढ़े पांच लाख गांव में काम ना हो, तो मैं लोगों को क्या जवाब दूंगा.
अपने पुराने दिनों को याद करते हुए हरिवंश ने कहा, मैंने लगभग 40 वर्ष नौकरी की. 37 वर्षों तक पत्रकारिता की. मैं आपके सामने खड़ा हूं, मैं यहा कई नेताओं का कायल हूं. 2014 में सांसद बनने के बाद मैं बाबूवीर कुंवर सिंह की धरती आरा गया था. वहां कॉलेज में बोलने गया तो मुझसे कुछ सवाल पूछे गये. एक युवक ने मुझसे पूछा कि हमने सदन चलाने के लिए पश्चिमी मॉडल अपनाया है. उसने पश्चिम के कई उदाहरण के साथ कहा – आपलोग भी उसी तरह चलाने की कोशिश करें जैसे वहां चलते हैं हम उस तरह क्यों नहीं चला पाते.
दूसरा सवाल हमारी परंपरा थी, जिसमें शास्त्रार्थ की परंपरा थी. जो बौद्ध पीठ की स्थापना हुई. शंकराचार्य का शास्त्रार्थ पुराना है. इस परंपरा को भी हम कायम नहीं रख पाते, इन दोनों सवालों को मैंने यक्ष प्रश्न के रूप में माना. इन दोनों सवालों का जो जवाब मिला मैं आपको बता रहा हूं. गांधी ने इसके कई सूत्र दिया है. सदन में अलग-अलग ढंग से सोचने वाले लोग हैं. 13 मई 1952 कोराज्यसभा का गठन क्यों हुआ. इस पर राधाकृष्णन का बयान है पढ़ने योग्य है. पहली बार आपको सौजन्य से मौका मिला लेकिन डर लग रहा है. मुझे आप रास्ता दिखायेंगे नियम की जानकारी देंगे.
Prabhat Khabar Digital Desk
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