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अपने गांव में गर्व के साथ बनीं ”रानी मिस्त्री”

<p>&quot;ग़रीबी और बेबसी की पूछिए मत. छोटकी ननद की शादी में सूद पर लिए क़र्ज़ ने वैसे ही तोड़ दिया. फिर ज़मीन भी बिक गई. तब करते क्या. बच्चों को लेकर पति के साथ परदेस (जालंधर) चले गए. वो राजमिस्त्री का काम करते और हम मजूरी. पति मना करते और हम कहते आख़िर खटने-कमाने के […]

<p>&quot;ग़रीबी और बेबसी की पूछिए मत. छोटकी ननद की शादी में सूद पर लिए क़र्ज़ ने वैसे ही तोड़ दिया. फिर ज़मीन भी बिक गई. तब करते क्या. बच्चों को लेकर पति के साथ परदेस (जालंधर) चले गए. वो राजमिस्त्री का काम करते और हम मजूरी. पति मना करते और हम कहते आख़िर खटने-कमाने के लिए ही परदेस आए हैं. इतना ज़रूर था कि हमारी नज़र राजमिस्त्री की बारीकियों पर टिकी रहती थी. फिर वो दिन भी आया जब मैं गांव लौटी तो बन गई रानी मिस्त्री.&quot;</p><p>अपने देहाती लहजे में यह कहते हुए पूनम देवी क्षण भर के लिए ख़ामोश हो जाती हैं. फिर ठहरकर कहती हैं कि अब हाथ में पैसे आने लगे हैं और आगे बहुत कुछ करना है. </p><p>झारखंड में पलामू के एक सुदूर चौखड़ा गांव की इस दलित महिला को गर्व है कि पूरी पंचायत में वो रानी मिस्त्री कही-पुकारी जाती हैं. </p><p>पूनम देवी इकलौती नहीं हैं. इन दिनों झारखंड के कई गांवों-क़स्बों में महिला मिस्त्रियां सुर्खियों में हैं. अलबत्ता आदिवासी इलाकों में आख़िरी क़तार की ये महिलाएं चुनौतियों को अवसर में बदलने लगी हैं.</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/social-39868600">रात-दिन मर्दों का भेदभाव झेलती हैं महिलाएँ</a></li> </ul><h1>हुनर, मेहनत और प्रशिक्षण</h1><p>फुर्ती से ईंटों की जुड़ाई करती, छड़ बांधती और दीवारों पर ढलाई करती देख लोगों का भरोसा इन रानी मिस्त्रियों पर सीमेंट की मज़बूती जैसा जमने लगा है. </p><p>यही वजह है कि गांवों-कस्बों से लेकर ज़िला मुख्यालयों में सरकारी-गैर सरकारी स्तर पर कार्यक्रम कर इन रानी मिस्त्रियों को सम्मानित किया जाने लगा है. </p><p>झारखंड के सिमडेगा, रांची, लोहरदगा, लातेहार, पलामू, चाईबासा जैसे ज़िलों के गांवों में महिलाओं की बड़ी तादाद अब मर्दों के लगभग एकाधिकार वाले राजमिस्त्री का काम संभालने लगी हैं. </p><p>लोहरदगा की एक आदिवासी महिला दयमंती उरांव बताती हैं कि कई महिलाएं खुद की मेहनत और लगन से ये काम सीखने में सफल हुई जबकि बहुतों को झारखंड राज्य आजीविका कार्यक्रम के तहत प्रशिक्षण दिलाया गया. फिर एक महिला ने दूसरी को जोड़ा जिससे कारवां बनता चला गया. </p><p>और जब महिलाएं यह काम बखूबी संभालने लगी तो आजीविका मिशन ने नाम दिया- ‘रानी मिस्त्री’. अब तो गांवों में किसी योजना के निर्माण या काम में यह चर्चा जरूर होती है कि रानी मिस्त्री को बुलाओ. समझो और समझाओ. </p> <ul> <li>देखें: <a href="https://www.bbc.com/hindi/media-42479644">बड़ा मशहूर है इस महिला हज्जाम का उस्तरा</a></li> </ul><p><strong>कर्ज </strong><strong>चुकाया</strong><strong>, जमीन भी खरीदी</strong></p><p>रानी मिस्त्री कहलाना कैसा लगता है, इस सवाल पर पूनम देवी गंवई अंदाज में कहती हैं, ‘हम तो एकदमे से अकचका गए थे, जब गांव की महिलाओं ने बताया कि इधर खूबे काम निकला है ( सरकारी योजना स्वीकृत हुई है) रानी मिस्त्री के काम खातिर गांव लौट आइए. तब हम पति से पूछे भी कि ई रानी मिस्त्री का होता है जी, कौनो मजदूर रानी बन सकेगी.’ </p><p>फिर अपने पति के साथ वो गांव लौटकर महिला समूह से जुड़ गईं और इसका बाक़ायदा प्रशिक्षण भी लिया. </p><p>स्वच्छ भारत कार्यक्रम के तहत शौचालय बनाने का काम मिलने से उनकी आर्थिक तंगी जाने लगी है. ननद की शादी में लिया क़र्ज़ चुकाने के बाद उन्होंने थोड़ी सी ज़मीन ख़रीदी है और पानी के लिए बोरिंग भी कराई है. </p><p>वो बताती हैं कि सरकारी योजना के तहत उन लोगों को इंदिरा आवास मिला है. आगे बच्चों को कॉलेज तक तक पढ़ाने की ख्वाहिश है. पूनम कहती हैं कि उन्होंने पैरों में फटी बिवाइयों का दर्द बहुत सहा है लेकिन अब पैरों में सैंडल और तन पर ठीक-ठाक साड़ी आ गई है. </p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-42427843">’…ताकि हुसैन चचा को नमाज़ पढ़ने बाहर न जाना पड़े'</a></li> </ul><p>पूनम के पति रामपाल रविदास कहते हैं कि वह तो मना करते रहे कि मजूरी-मिस्त्री का काम करने पर कि गांव के लोग ना जाने क्या कहेंगे, लेकिन पत्नी ने कभी इसकी परवाह नहीं की और अब दोनों साथ मिलकर काम करते हैं. एक शौचालय बनाने पर उन्हें ढाई हज़ार रुपए तक मिल जाते हैं और यह काम तीन से चार दिन में पूरा होता है. </p><p>पिपराखुर्द पंचायत के सामाजिक कार्यकर्ता अजय पासवान बताते हैं कि शुरुआती दिनों में गांव के लोग एक महिला के इस तरह काम करने पर काम पर टीका-टिप्पणी करते रहे, लेकिन अब पूरे इलाके में वे नज़ीर बनी हैं.</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-43275883">आदिवासी बहुल राज्यों में आदिवासियों को नेतृत्व क्यों नहीं देती पार्टियां?</a></li> </ul><h1>जिंदगी के मायने बदल रही </h1><p>झारखंड राज्य आजीविका कार्यक्रम के अधिकारी कुमार विकास कहते हैं कि राज मिस्त्री का काम सीखने-जानने में इन महिलाओं ने कोई कसर नहीं छोड़ी है. आदिवासी इलाकों की रानी मिस्त्रियों की ऐसी तस्वीर उभरी है कि लगन के साथ काम के घंटों में ये महिलाएं कसर नहीं छोड़तीं और पैसे के लिए हो-हुज्जत भी नहीं करती. </p><p>यही वजह हो सकती है कि वनोत्पाद चुनने-बेचने और खेती-मजूरी में बमुश्किल पचास-सौ रुपए कमाने वाली मेहनतकश महिलाएं रानी मिस्त्री की कमाई से अपना जीवन-स्तर बेहतर कर रही हैं. </p><p>इधर सिमडेगा ज़िले के उपायुक्त जटाशंकर चौधरी ने एक अभियान छेड़ा हैः ‘रानी मिस्त्री लगाओ शौचालय बनाओ ‘. इस अभियान में बड़ी तादाद में आदिवासी महिलाएं जुड़ी हैं. </p><p>वे बताते हैं कि पंचायतों को खुले में शौच से मुक्त करने के लिए शुरू किए गए इस अभियान का मकसद स्वच्छ भारत कार्यक्रम को सफल बनाने के साथ दूरदराज गांवों की महिलाओं को सशक्त बनाना भी है.</p><p>इसके परिणाम भी अच्छे मिलने लगे हैं. घर में शौचालय और हाथों में पैसे. इन महिलाओं का जुनून ही है कि अब वे चापाकल मरम्मत से लेकर दूसरे पक्का निर्माण कार्यों में भी दिलचस्पी दिखाने लगी हैं. अलबत्ता वे सूमह बनाकर काम ले रही हैं. </p><h1>मर्दों की धारणा बदल डाली</h1><p>सिमडेगा के सुदूर बुंडूपानी गांव की आदिवासी महिला मोइलिन डांग तथा कोलेमडेगा की आश्रिति लुगुन बताती हैं कि शुरुआती दौर में राजमिस्त्री या मर्द मजदूर कहते थे कि ये काम महिलाओं के बूते नहीं. आप लोग रेजा ( महिला मजदूर) ही ठीक हैं. लेकिन पसीना बहाकर और जिद में उन लोगों ने यह धारणा बदल डाली. </p><p>मोइलिन और आश्रिति की जोड़ी अब अब दूसरे और दूर के गांवों में शौचालय निर्माण का काम करने जाती हैं और हफ्ते में उनकी आमदनी चार हजार तक होने लगी है. </p><p>रेणु देवी बताती हैं कि एक महिला होने के नाते शुरू के दिनों में यह काम चुनौती भरा और कठिन था, लेकिन शौचालय बनाने की तकनीक सीखने के बाद वे पक्का निर्माण से जुड़े दूसरे कार्यों को भी हाथ में लेने से नहीं हिचकती. </p><p>आदिवासी महिला अंजना डुंगडुंग कहती हैं कि इस नाम और काम ने गांवों की महिलाओं में उत्साह भरा है और जीने का ज़रिया भी मज़बूत होता दिखता है. </p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां </a><strong>क्लिक कर 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