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नयी किताब : रहस्यमयी कहानियां

एक कहानी के लिए पठनीयता बहुत मायने रखती है. पठनीयता तभी बरकरार रहती है, जब कहानी में रोचकता हो और काल्पनिक होते हुए भी कुछ वास्तविकता से उसका पारस्परिक जुड़ाव हमारे मानस से हो जाये. रस्किन बांड ऐसे ही कथाकार हैं, जिनकी कहानियों से हर उम्र का मानस परस्पर ही जुड़ता चला जाता है. दुनियाभर […]

एक कहानी के लिए पठनीयता बहुत मायने रखती है. पठनीयता तभी बरकरार रहती है, जब कहानी में रोचकता हो और काल्पनिक होते हुए भी कुछ वास्तविकता से उसका पारस्परिक जुड़ाव हमारे मानस से हो जाये. रस्किन बांड ऐसे ही कथाकार हैं, जिनकी कहानियों से हर उम्र का मानस परस्पर ही जुड़ता चला जाता है. दुनियाभर में बेहद लोकप्रिय कथाकार रस्किन बांड की कहानियों में अद्भुत रोचकता होती है, दिलचस्प कहन शैली होती है, जो पाठक को कभी बोर नहीं होने देती. मंजुल पब्लिशिंग हाउस से आयी उनकी किताब ‘देवदारों के साये में’ आठ कहानियों की एक ऐसी ही किताब है, जो रहस्यों से भरी हुई है, जो पाठक को कहीं भी उलझाती नहीं है.

‘देवदारों के साये में’ किताब अंग्रेजी में पेंगुईन इंडिया से आयी ‘डेथ अंडर द देवदार्सः द एडवेंचर्स ऑफ मिस रिप्ली-बीन’ का हिंदी अनुवाद है, जिसे आशुतोष गर्ग ने किया है. आठों कहानियां साठ और सत्तर के दशक के दौरान मसूरी में घटी कुछ घटनाओं को लेकर रची गयी हैं. बकौल रस्किन बांड, ये कहानियां मसूरी में रहनेवाली उनकी एक वृद्ध मित्र और पड़ोसी मिस रिप्ली-बीन से जुड़ी हुई हैं और इन्हें मिस रिप्ली-बीन के द्वारा सुनायी गयी हैं,
जिनमें उनके कुछ मित्रों के साथ अन्य लोगों की रहस्यमयी हत्याएं तो हैं, लेकिन हत्या के बाद हत्यारों की धर-पकड़, कानूनी दांव-पेच, पुलिस खोज-बीन जैसे दृश्य कहीं नजर नहीं आते. हत्या के रहस्यों के बीच हास्य और अनूठे किरदार पाठकों के साथ मस्ती करते हैं. इसलिए हत्या के रहस्य के ताने-बाने से बुनी कहानियां बेहद रोचक और सुलझी हुई लगती हैं. जाहिर है, सुनी हुई घटनाओं को रस्किन बांड जैसा कथाकार जब कहानियों में ढालता है, तो उसमें उसकी कल्पना का पुट उसे रोचक बना ही देता है.
शीर्षक कहानी ‘देवदारों के साये में’ में श्रीमती बसु और डॉ राइनहार्ट की हत्या, ‘जन्मजात दुष्ट’ में एजेक्जेंडर की हत्या, ‘शराब में जहर’ में दिलीप रॉय की हत्या, ‘जुनूनी अपराध’ में पादरी विन्सेंट की हत्या, ‘डाक में संखिया’ में क्लैरेंस स्मिथ और समर्स की पत्नी की हत्या, ‘एक विस्तर में तीन’ में रोहित की हत्या और ‘दरियागंज का हत्यारा’ में रोशन पुरी की हत्या, इन हत्याओं को गुस्सा, ईर्ष्या, नफरत में आकर अंजाम दिया गया है, जो पैसों के लिए हत्या करनेवाले लोगों से बेहद अलग और रहस्यमयी है.
सारी हत्याएं संभ्रांत लोगों की हैं. जाहिर है, संभ्रांत लोग अपनी नाक की साख के लिए रिश्ते बनाने-बिगाड़ने को लेकर प्यार, गुस्सा और नफरत का ऐसा चक्रव्यूह रचते हैं कि वह घटना खुद-ब-खुद रहस्यमयी बन जाती है. ये कहानियां इसकी शानदार मिसाल हैं. – वसीम अकरम

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