‘कोशिश करेंगे रोज़ एक दिन सीख जाएंगे.
हँसने दो उनको आज, वही ताली बजाएंगे’
ये पंक्तियां किसी कवि सम्मेलन की प्रेस रिलीज़ की नहीं हैं. ये पंक्तियां कांग्रेस के सांसद और कठिन इंग्लिश के लिए मशहूर शशि थरूर ने कही हैं.
शशि थरूर ने ट्विटर पर अपना एक वीडियो शेयर किया है. इस वीडियो के साथ शशि लिखते हैं, ‘मेरी कच्ची हिंदी सुनकर जो लुत्फ़ उठाते हैं, उनकी ख़ातिर चलो तुम्हें दो पंक्ति सुनाते हैं.’
https://twitter.com/ShashiTharoor/status/976030806664667136
सोशल मीडिया पर थरूर की हिंदी की चर्चा
शशि थरूर इस वीडियो में उन लोगों का ज़िक्र कर रहे थे, जो आए दिन उनके हिंदी न बोलने पर तंज कसा करते हैं.
शशि थरूर अक्सर अपने इंग्लिश लहजे और शब्दों के चयन को लेकर चर्चा में रहे हैं. ऐसे में हिंदी में यूं कविता की लाइनें पढ़कर शशि थरूर एक बार फिर सोशल मीडिया पर चर्चा में आ गए हैं.
कुछ लोग शशि थरूर की पढ़ी पंक्तियों की तारीफ़ कर रहे हैं तो कुछ लोग अब भी चुटकियां ले रहे हैं.
सिम्मी आहूजा लिखती हैं, ‘हम आज भी ताली बजाते हैं, कल भी ताली बजाएंगे. आपकी कोशिश रंग लाएगी, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती.’
ध्रुव थरूर को जवाब देते हुए लिखते हैं, ‘जो आपकी इंग्लिश से जलते थे, अब वो उनकी हिंदी से भी जलेंगे. पर जलने वाले जलते रहेंगे.’
पॉलोमी साहा थरूर के हिंदी लहजे पर तंज करती हैं- ‘ताली कहिए, टाली नहीं’.
अंकित ने लिखा, ‘जैसे इंग्लिश में आपका कोई तोड़ नहीं है, वैसे ही एक दिन हिंदी में भी आपका कोई तोड़ नहीं होगा.’
रमन दीप ने लिखा, ‘आप हिंदी को गले लगाइए, देश आपको गले लगाएगा.’
@TwitzenWarrior ने थरूर से सवाल पूछा- ‘हिंदी की बात बाद में करेंगे. देश ये जानना चाहता है कि आपके बालों का राज़ क्या है. कौन सा शैम्पू इस्तेमाल करते हैं?’
बीबीसी से ख़ास बातचीत में क्या बोले थे थरूर?
इस साल की शुरुआत में जयपुर लिटरेचर फ़ेस्टिवल में बीबीसी हिंदी रेडियो के संपादक राजेश जोशी ने शशि थरूर से ख़ास बातचीत की थी.
इस इंटरव्यू में थरूर ने कहा था, "भारतीय यथार्थ अलग-अलग है. शायद गाँव की कहानी लिखनी हो तो अँग्रेज़ी में नहीं लिखी जा सकती है. अगर आप किसी आईएएस अफ़सर की कहानी लिखना चाहें जैसे उपमन्यु चटर्जी ने ‘इंग्लिश ऑगस्ट’ में लिखी तो अँग्रेज़ी में ही लिखनी चाहिए क्योंकि उसकी सोच अँग्रेज़ी में ही है. अगर मैं ऑटो रिक्शा वाले से अँग्रेज़ी में बात करूँगा तो वो मुझे थप्पड़ मारेगा.
- भारतीय भाषाओं के लेखकों को जितनी मान्यता मिलनी चाहिए उतनी नहीं मिल पाती क्योंकि लोग उनके बारे में अज्ञानतावश नहीं जानते क्योंकि उनके लेखन के अच्छे अनुवाद नहीं मिलते हैं.
- हर शब्द के पीछे एक सांस्कृतिक सोच होती है. उसे डिक्शनरी में देखकर नहीं समझा जा सकता, जैसे तुम और आप के फ़र्क़ को अँग्रेज़ी में समझाना मुश्किल है और हर शब्द को समझाने के लिए फ़ुटनोट लिखेंगे तो कोई पढ़ेगा नहीं. तो जब भारतीय भाषाओं से अनुवाद किया जाता है तो कई चीजें खो जाती हैं. इसीलिए हमारे साहित्य को समझने के लिए कभी-कभी विदेशियों को दिक्कत होती है."
इंटरव्यू: शशि थरूर से राजेश जोशी की बातचीत
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