।। अनुज सिन्हा।।
देश में लोकसभा चुनाव हो रहे हैं और हमारे क्रिकेट खिलाड़ी आइपीएल में मस्त हैं. आइपीएल में खेलना गुनाह नहीं है. जरूर खेलें, लेकिन इस बात का भी ख्याल रखें कि आपको भारतीय संविधान ने वोट देने का अधिकार दिया है. टीम इंडिया के अधिकतर खिलाड़ियों ने मतदान नहीं किया है. कप्तान महेंद्र सिंह धौनी का नाम रांची की मतदाता सूची में है. वहां 17 अप्रैल को चुनाव हो गये और धौनी दुबई में आइपीएल ही खेलते रह गये. धौनी ही क्यों, टीम इंडिया का शायद ही कोई खिलाड़ी होगा जिसने इस बार मतदान किया होगा?
कई सीटों पर आइपीएल शुरू होने के पहले चुनाव हो गये. हो सकता है, वहां कुछ खिलाड़ियों ने मतदान किया हो. लेकिन जहां भी 16 अप्रैल के बाद (जिस दिन आइपीएल शुरू हुआ) चुनाव हो रहे हैं, वहां खिलाड़ी मतदान की तुलना में आइपीएल को प्राथमिकता दे रहे हैं. करोड़ों रुपये उन्हें इसके लिए मिल रहे हैं. लेकिन, यह नहीं भूलना चाहिए कि ये खिलाड़ी युवाओं के आइकॉन हैं. कई तो चुनाव आयोग के ब्रांड अंबेसडर हैं या रह चुके हैं. इन्हें इसलिए ब्रांड अंबेसडर बनाया गया, ताकि ये लोगों खास कर युवाओं को वोट देने के लिए उत्साहित कर सकें. लेकिन अफसोस की बात है कि कई ब्रांड अंबेसडर ही वोट नहीं देते.
विराट कोहली को आज सचिन तेंडुलकर के विकल्प के रूप में देखा जा रहा है. टीम इंडिया के सबसे भरोसेमंद बल्लेबाज हैं. अभी आइपीएल खेल रहे हैं. दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान उन्हें ब्रांड अंबेसडर बनाया गया था, लेकिन उन्होंने खुद वोट नहीं दिया. कोई मैच खेलने के लिए दक्षिण अफ्रीका में थे. लोगों से वोट देने के लिए आग्रह कीजिए, अपील कीजिए और खुद वोट मत दीजिए! पूरा देश इन खिलाड़ियों के पीछे दीवाना है. इनकी एक झलक के लिए, हाथ मिलाने के लिए दीवाना रहता है. ये खिलाड़ी दावा करते हैं कि देश के लिए खेल रहे हैं. लेकिन जब देश को मजबूत करने की बारी आती है, वोट देने का अवसर आता है, तो ये पीछे हट जाते हैं. चेतेश्वर पुजारा अभी गुजरात चुनाव आयोग के ब्रांड अंबेसडर हैं. धौनी बंगाल चुनाव आयोग के ब्रांड अंबेसडर रहे हैं. जब यही लोग वोट नहीं देंगे, दूसरे क्या प्रेरित होंगे?
यह सच है कि इस चुनाव में मतदान प्रतिशत बढ़ा है. इसके लिए प्रयास भी हुए हैं. लेकिन अनेक प्रबुद्ध या जिम्मेवार लोगों ने इस बार भी वोट नहीं दिया. खिलाड़ी भी इसमें शामिल हैं. दरअसल कोई कानून नहीं बना है जिससे व्यक्ति वोट देने के लिए बाध्य किया जा सके या वोट नहीं देनेवालों को दंडित किया जा सके. टीम इंडिया के खिलाड़ियों ने भी कानून की इसी कमी का फायदा उठाया है. आइपीएल बीसीसीआइ कराता है. तिथि तय करता है. अगर आइपीएल चुनाव बाद होता तो कौन सा पहाड़ टूट जाता! बीसीसीआइ को तय करना चाहिए कि आम चुनाव के दौरान क्रिकेट की कोई बड़ी प्रतियोगिता न हो. आइपीएल तो कतई नहीं. लेकिन बीसीसीआइ एक स्वतंत्र संस्था है जिस पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है. इसलिए जो मन किया, वह कर दिया. जिद इतनी थी कि चुनाव के कारण जब सुरक्षा बल नहीं मिलने की बात बता दी गयी तो विदेश में यह प्रतियोगिता हो रही है. चुनाव खत्म होने पर भारत में होने लगेगी. इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्राथमिकता आइपीएल है, देश या लोकतंत्र नहीं.
चुनाव के दिन छुट्टी देने का प्रावधान है, ताकि लोग वोट दे सकें.सरकार और क्या कर सकती है? अब खिलाड़ियों को भी जिम्मेवार होना पड़ेगा. सिर्फ पैसे के पीछे भागने से काम नहीं चलेगा. कभी पैसे की जगह देश को भी चुनना होगा. ऐसा कोई खिलाड़ी सामने नहीं आया है जिसने अपनी टीम से कह दिया हो कि आइपीएल का एक मैच वह खेल नहीं पायेगा क्योंकि उसे वोट देने के लिए अपने क्षेत्र में जाना है. क्या यह संभव नहीं है? दुबई कौन दूर है खिलाड़ियों के लिए. करोड़ों कमानेवाले अगर वोट देने के लिए विमान से आते, वोट देकर जाते और फिर मैच खेलते तो उनकी प्रतिष्ठा और बढ़ जाती.