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मदर इंडिया: दर्द और ज़मीन के रिश्ते की अमरकथा

फ़िल्मकार महबूब ख़ान ‘मदर इंडिया’ की आउटडोर शूटिंग के लिए गुजरात के नवसारी ज़िले के ग्राम बिलीमोरा इस निश्चय के साथ पहुंचे कि उन्हें उसी स्थान पर शूटिंग करनी है. उनके निर्माण अधिकारी खेतों के मालिक ईश्वरदास नेमानी, धीरूभाई देसाई और गोवर्धन भाई पटेल से मिलने गए और उन्हें शूटिंग के एवज़ में पांच हज़ार […]

फ़िल्मकार महबूब ख़ान ‘मदर इंडिया’ की आउटडोर शूटिंग के लिए गुजरात के नवसारी ज़िले के ग्राम बिलीमोरा इस निश्चय के साथ पहुंचे कि उन्हें उसी स्थान पर शूटिंग करनी है.

उनके निर्माण अधिकारी खेतों के मालिक ईश्वरदास नेमानी, धीरूभाई देसाई और गोवर्धन भाई पटेल से मिलने गए और उन्हें शूटिंग के एवज़ में पांच हज़ार रुपये देने का प्रस्ताव रखा. कोई जवाब नहीं मिलने पर वे रक़म बढ़ाते हुए पचास हज़ार तक पहुंचे जो उन खेतों के, उस समय के बाज़ार मूल्य से अधिक रक़म थी.

इस पर भी वे टस से मस नहीं हुए तो निर्माण अधिकारी महबूब ख़ान के पास पहुंचे कि कोई और जगह देखें. महबूब ख़ान स्वयं नेमानी, देसाई और पटेल के पास पहुंचे और उन्होंने बताया कि इन्हीं खेतों में उनके अपने पिता, दादा और स्वयं उन्होंने मज़दूरी की है. अतः वहां शूटिंग करने की इच्छा उनके मन में जागी.

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बिना पैसे के दिए खेत

यह बात जानकर तीनों ने कहा कि अब वे शूटिंग की इजाज़त देते हैं. परंतु कोई धन स्वीकार नहीं करेंगे. उन्होंने पहले भी दिया, अब भी देंगे. इसे गुजरात वर कहते हैं.

महबूब ख़ान ने स्पष्ट किया कि शूटिंग के आख़िरी भाग में खेतों में आग लगानी होगी. उन्हें इस पर भी कोई एतराज़ नहीं था.

महबूब ख़ान ‘मदर इंडिया’ को अपने अतीत की आदरांजलि की तरह बना रहे थे. सारे सृजनधर्मी लोग अपने अतीत से प्रेरणा लेकर, वर्तमान में काम करते हुए भविष्य के लिए उदाहरण छोड़ना चाहते हैं. शांताराम भी ‘दो आंखें बारह हाथ’ के बैल से लड़ाई का ख़तरों भरा दृश्य शूट करने कोल्हापुर गए थे जहां से उन्होंने अपनी यात्रा प्रारंभ की थी.

इसलिए नहीं मिल पाया ऑस्कर?

विदेशी भाषा में बनी श्रेष्ठ फ़िल्म श्रेणी में भारत की ओर से ‘मदर इंडिया’ भेजी गई थी. फ़िल्म के तकनीकी पक्ष और निर्देशक द्वारा बनाई भावना की लहर से चयनकर्ता प्रभावित थे परंतु उन्हें यह बात खटक रही थी कि पति के पलायन के बाद महाजन द्वारा दिया गया शादी का प्रस्ताव वह क्यों अस्वीकार करती है जबकि सूदखोर महाजन उसके बच्चों का भी उत्तरदायित्व उठाना चाहता है.

दरअसल, चयनकर्ता को यह किसी ने नहीं स्पष्ट किया कि भारतीय नारी अपने सिंदूर के प्रति कितनी अधिक समर्पित होती है. फ़िल्म भारत के सदियों पुराने आदर्श के प्रति समर्पित थी. ऑस्कर जीतने के लिए फ़िल्म की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को स्पष्ट करने के लिए वहां एक प्रचार विभाग नियुक्त किया जाना चाहिए था.

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फ़िल्म के अंतिम दृश्य में एक मां अपने सबसे अधिक प्रिय पुत्र को गोली मार देती है क्योंकि वह सांस्कृतिक मूल्यों के ख़िलाफ़ अपहरण कर रहा था.

महबूब ख़ान ने ‘औरत’ 1939 में बनाई जिसे 1957 में उन्होंने ‘मदर इंडिया’ के नाम से बनाया. बताया जाता है कि ‘मदर इंडिया’ नरगिस द्वारा सुझाया गया नाम था. ग़ौरतलब है कि 1939 में ‘औरत’ के प्रदर्शन के समय भारत से हज़ारों मील दूर बैठी पर्ल. एस. बक का उपन्यास ‘द गुड अर्थ’ का प्रकाशन हुआ जिसमें चीन के भूमिहीन किसानों की व्यथा-कथा प्रस्तुत की गई है.

यह एक अजीबोग़रीब दर्द का रिश्ता है जो कभी उपन्यास, कभी कविता और कभी फ़िल्म में अभिव्यक्त होता है.

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