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दिखेगा सोशल मीडिया का दम

रूपम कई सर्वे से साफ है कि सोशल मीडिया आम चुनाव में बड़ी भूमिका निभानेवाला है. 2009 में कांग्रेस को जितने वोट मिले, अभी भारत में सोशल मीडिया का उपयोग करनेवाले लोगों की संख्या लगभग उतनी ही है. इंटरनेट और मोबाइल एसोसिएशन की मानें, तो ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट की विकास दर 58 फीसदी है. […]

रूपम

कई सर्वे से साफ है कि सोशल मीडिया आम चुनाव में बड़ी भूमिका निभानेवाला है. 2009 में कांग्रेस को जितने वोट मिले, अभी भारत में सोशल मीडिया का उपयोग करनेवाले लोगों की संख्या लगभग उतनी ही है. इंटरनेट और मोबाइल एसोसिएशन की मानें, तो ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट की विकास दर 58 फीसदी है. नौ करोड़ लोग सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं. सोशल मीडिया से जुड़े 45} लोग राजनीति पर खुल कर अपनी राय जाहिर करते हैं.

एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक, 2009 में कांग्रेस को मिली 75 सीटें ऐसी हैं, जिनका भविष्य सोशल मीडिया प्रभावित कर सकता है. भाजपा की 44 सीटों पर यही हाल है. माना जा रहा है कि चुनाव प्रचार थमते ही सोशल मीडिया सक्रिय हो सकता है. यही कारण है कि राजनीतिक पार्टियों ने नेटिजंस की टीम बना रखी है. भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी खुद ट्विटर पर एक्टिव हैं. उनकी टीम उनके विचारों को नौ भाषा में ट्वीट करती है. अब स्थिति यह है कि जो नेता डिजिटल मीडिया से दूर थे, अब फेसबुक और ट्विटर से जुड़ रहे हैं. माकपा की पश्चिम बंगाल इकाई ने तृणमूल को टक्कर देने के लिए फेसबुक पेज एवं ट्विटर पेज शुरू किया. फेसबुक पर तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी के पहले से ही साढ़े छह लाख से अधिक फॉलोअर्स हैं.

चुनाव आयोग की पैनी नजर
सोशल मीडिया की सक्रियता का आभास चुनाव आयोग को भी है. इसलिए इस पर कड़ी निगरानी की बात कही गयी है. इसके लिए विस्तृत गाइडलाइन तैयार की गयी है. 2004 में आये अदालत के फैसलों को इस गाइडलाइन का आधार बनाया गया है. इसी के आधार पर सोशल मीडिया के जरिये होनेवाले खर्च को राजनीतिक दलों के खर्च में शामिल किया जायेगा. इस पर निगरानी के लिए टीमें भी बनायी गयी हैं, जो राजनीतिक दलों और इनके नेताओं की गतिविधियों पर नजर रखेगी.

विज्ञापन के लिए लेनी होगी अनुमति
सोशल मीडिया पर नेताओं पर अभद्र टिप्पणी व उनके फोटो व स्केच शेयर करने की भी बड़े पैमाने पर शिकायतें हैं. विधानसभा चुनावों से सबक लेते हुए राजनीतिक दलों के प्रचार के लिए जारी होनेवाले विज्ञापन को अब बिना आयोग की अनुमति के प्रकाशन, प्रसारण पर रोक लगा दी गयी है. राजनीतिक दलों को ऐसे विज्ञापन जारी करने से पहले चुनाव आयोग से अनुमति लेनी होगी.

ट्विटर हैंडल पर सवाल-जवाब
माइक्रो ब्लॉगिंग वेबसाइट ट्विटर के जरिये भी राजनीतिक दल अपनी बातें लोगों तक पहुंचाते हैं. इनमें से कुछ नेता ट्विटर हैंडल के जरिये पूछे गये आम जन के सवालों के जवाब भी देते हैं.

कट्टर सोच नहीं युवा जोश
कांग्रेस ने युवाओं को पार्टी से जोड़ने के लिए सोशल मीडिया वेबसाइट्स पर ‘कट्टर सोच नहीं, युवा जोश’ अभियान चलाया. इसे काफी सफलता मिली, काफी लोग इससे जुड़ रहे हैं. कांग्रेस सोशल मीडिया पर पोल खोल अभियान भी चला रही है.

पार्टी की नीतियां और भाषणों के लिए यू-ट्यूब का सहारा
राजनीतिक दलों और उनके नेता के भाषण यू-टय़ूब पर अपलोड किये जा रहे हैं, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग उन्हें देख और सुन सकें. इससे पार्टियों की नीतियों, वादों और विचारधारा का प्रचार-प्रसार हो जाता है.

पार्टी फंड के लिए गूगल हैंगआउट
गूगल हैंगआउट के जरिये हर पार्टी के नेता अपनी बात मतदाताओं तक पहुंचाने में लगे हैं. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, भाजपा नेता नरेंद्र मोदी और आम आदमी पार्टी के कई नेता गूगल हैंगआउट के जरिये लोगों से बात करते हैं और पार्टी के लिए फंड भी जुटाते हैं.

बड़ा बदलाव : वर्ष 2009 के चुनाव के बाद से प्रचार अभियान में सोशल मीडिया की भूमिका अहम हो गयी है. सोशल साइट्स पर चल रहे आधिकारिक विज्ञापन एवं अभियान राजनीतिक पार्टियों की सकारात्मकता और उपलब्धियों पर तो केंद्रित होती हैं, उनमें जबरदस्त राजनीतिक व्यंग्य और आलोचना भी होती है.

272+ का लक्ष्य : भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव 2014 के लिए देश भर में 272+ सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है. इसके मद्देनजर वह सोशल साइट्स पर 272+ नाम से अभियान चला रही है. इसके अलावा ‘नमो’ अभियान भी चल रहा है. इसके तहत अगर मोदी की रैली अगले कुछ दिनों में गुजरात में होनेवाली है, तो वे ट्विटर और फेसबुक पर ‘नमो इन गुजरात’ नाम से कैंपेन शुरू करते हैं.

एएपी इन एक्शन : आम आदमी पार्टी ने अपने फैसले से लोगों को अवगत कराने के लिए ‘आम आदमी पार्टी इन एक्शन’ अभियान चला रखा है. इसके तहत वह कथित भ्रष्ट राजनेताओं और पार्टी एवं उनकी नीतियों पर हल्ला बोलती है.

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