20.4 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज: किसान नेता राकेश टिकैत ग्रामीणों से करेंगे संवाद, आंदोलन को देंगे नयी धार

Jharkhand News: यह विरोध एवं संकल्प सभा नेतरहाट फायरिंग रेंज रद्द करने की मांग को लेकर पिछले 27 वर्षों से आयोजित की जा रही है. 22 और 23 मार्च को हर साल इस सभा में 245 गांवों के ग्रामीण शामिल होते हैं.

Jharkhand News: किसान नेता राकेश टिकैत झारखंड के दो दिवसीय दौरे पर हैं. लातेहार जिले के नेतरहाट स्थित टुटूवापानी मोड़ में नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज रद्द करने की मांग को लेकर केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति द्वारा आयोजित सभा को आज संबोधित करेंगे. यहां 245 गांवों के ग्रामीण जुटेंगे. इनसे संवाद करने के लिए वे नेतरहाट पहुंच गये हैं. आपको बता दें कि राकेश टिकैत कल सोमवार को रांची पहुंचे थे, जहां केंद्रीय जनसंघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने उनका स्वागत किया.

नेतरहाट फायरिंग रेंज रद्द करने की मांग

यह विरोध एवं संकल्प सभा नेतरहाट फायरिंग रेंज रद्द करने की मांग को लेकर पिछले 27 वर्षों से आयोजित की जा रही है. 22 और 23 मार्च को हर साल इस सभा में 245 गांवों के ग्रामीण शामिल होते हैं. इस वर्ष 2022 में दो दिनों तक चलने वाले विस्थापन विरोधी आंदोलन को राकेश टिकैत अपनी उपस्थिति से धार देंगे. समिति के सचिव जेरोम जेराल्ड कुजूर ने बताया कि राकेश टिकैत दो दिनों तक ग्रामीणों के साथ रहेंगे और ग्रामीणों से संवाद करेंगे. वे इस आंदोलन को नई दिशा देंगे. 22 और 23 मार्च को टुटूवापानी मोड़ में 28वां विरोध एवं संकल्प दिवस का आयोजन किया गया है. इस दिन लातेहार एवं गुमला जिला के विभिन्न गांवों से पदयात्रा कर बड़ी संख्या में ग्रामीण इस विरोध एवं संकल्प सभा में भाग लेने पहुंचेंगे. ग्रामसभा ने तय किया है कि गांव की सीमा के अंदर की जमीन नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के लिए नहीं दी जायेगी.

Also Read: झारखंड के चिरूडीह हत्याकांड मामले में फैसला आज, पूर्व मंत्री योगेंद्र साव व उनकी पत्नी समेत तीन हैं आरोपी

किसान नेता राकेश टिकैत पहली बार झारखंड के नक्सल प्रभावित लातेहार पहुंच रहे हैं. उनके आने की सूचना के बाद से ग्रामीणों में उत्साह देखते ही बन रहा है. पीएम नरेंद्र मोदी के कृषि कानूनों के खिलाफ जोरदार आंदोलन कर कानूनों को रद्द कराने वाले राकेश टिकैत को यहां हर कोई सुनना चाहता है. फायरिंग रेंज के कारण विस्थापन से सहमे ग्रामीणों को उम्मीद है कि राकेश टिकैत के कारण उनकी आवाज सत्ता के गलियारों तक पहुंच पायेगी. केंद्रीय जनसंघर्ष समिति के सचिव जेरोम जेराल्ड कुजूर के अनुसार, उन्हें अखबारों के माध्यम से पता चला कि 10 जुलाई 2017 को पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने भाजपा के कार्यक्रम में नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज रद्द होने की घोषणा की थी, लेकिन सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई सूचना के अनुसार 1999 के बाद नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के नाम पर किसी तरह की कोई अधिसूचना जारी नहीं की गई है.

Also Read: Jharkhand News: झारखंड की प्रसिद्ध तीरंदाज मधुमिता के पिता जितेंद्र नारायण सिंह की सड़क दुर्घटना में मौत

जेरोम जेराल्ड कुजूर ने बताया कि 1956 में तत्कालीन बिहार सरकार ने मैनुवर्स फील्ड फायरिंग एड आर्टिलरी प्रैक्टिस ऐक्ट 1938 की धारा 9 के अंतर्गत अधिसूचना जारी की थी, जिसके तहत सेना ने नेतरहाट के पठार क्षेत्र में स्थित 7 गांवों में 1964 से लेकर 1994 तक प्रति वर्ष तोपाभ्यास किया. उक्त अधिसूचना के समाप्त होने के पूर्व 1991 एवं 1992 में तत्कालीन बिहार सरकार के द्वारा अधिसूचना जारी करते हुए ना केवल तोपाभ्यास की अवधि का विस्तार किया, पर अधिसूचित क्षेत्रों को भी बढ़ाया. इस अधिसूचना के अंतर्गत 1471 वर्ग किलोमीटर को चिन्हित किया गया, जिसमें कुल 245 गांव आते हैं. इससे 2,50,000 लोग, जिसमें 90 से 95% लोग आदिवासी होने पर विस्थापन का खतरा मंडराने लगा. इस अधिसूचना ने तोपाभ्यास की समय अवधि 1992 से 2002 तक कर दी. सेना के आला अधिकारी, ब्रिगेडियर आई.जे. कुमार के प्रेस को दी गयी सूचना के अनुसार, 188 वर्ग किलोमीटर का संघात क्षेत्र, नेतरहाट एवं आदर में 9-9 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में सैनिक शिविर और 206 वर्ग किलोमीटर की भूमि अर्जन करने की जानकारी सामने आयी,उसी पत्र में इस बात का उल्लेख था कि सेना को फायरिंग रेंज के लिए 3500 वर्ग किलोमीटर की आवश्यकता है। पी.यू.डी.र की 1994 में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज सेना द्वारा देश भर में चलाए जा रहे 4 पाइलट फायरिंग रेंज परियोजना का हिस्सा था, जिसमें मध्य प्रदेश का रेवा, आंध्रा प्रदेश का शमीरपेट और राजस्थान का कोलायत शामिल थे, इस पाइलट प्रोजेक्ट के तहत (सेना के लिए) स्थायी विस्थापन एवं भूमि अर्जन की योजनाओं को आधार दिया जाता.

जेरोम जेराल्ड कुजूर के अनुसार, केंद्रीय जनसंघर्ष समिति की अपील पर ग्रामीणों ने 22-23 मार्च 1994 को आंदोलन कर सेना को अभ्यास करने से रोक दिया था. सेना अंतत: वापस लौट गई थी, लेकिन सरकार की चुप्पी से यह डर बना हुआ है कि कभी भी भूमि का अधिग्रहण कर लिया जाएगा. यही वजह है कि ग्रामीण आंदोलन और सत्याग्रह करने को मजबूर हैं. हर साल 22-23 मार्च को ग्रामीण सत्याग्रह और संकल्प दिवस मनाते हैं. इसके माध्यम से अपनी एकजुटता का प्रदर्शन करते हैं.

रिपोर्ट : वसीम अख्तर

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें