कोयलांचल का पूजा पंडाल सज-धज कर तैयार है. आकर्षक विद्युत सज्जा से पूरा शहर रोशन हो गया है. पूजा पंडालों के पट खुलने के साथ ही मां के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगी है. दो साल के कोरोनाकाल के बाद पंडालों में भक्तों की भीड़ उमड़ना शुरू हो गयी है. पंडालों में धूप दीप की सुगंध वातावरण में पवित्रता भर रही है. मां के दर्शन में कोई परेशानी न हो इसके लिए स्वंय सेवक और कमेटी के सदस्य कमान संभाल चुके हैं. धनबाद के झारखंड मैदान में बने पूजा पंडाल में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगी. वहीं, पंडाल के समक्ष लगे मेला में लोगों की भीड़ उमड़ी.
बैंक मोड़ पुराना नगर निगम कैंपस में इस साल ड्रैगन किला की थीम पर पंडाल बनाया गया है. बाहर रथ रूपी आकृति देखने को मिलेगी. पंडाल के अंदर गणेश, लक्ष्मी व कार्तिक की प्रतिमा स्थापित की गयी है. इस पूजा पंडाल की लागत आठ लाख रुपये है.
दुर्गा पूजा को लेकर शहर के अलग-अलग जगहों पर बने पंडाल सजधज कर तैयार है. इस साल विभिन्न पूजा समितियों की ओर से एक से बढ़कर एक पंडाल का निर्माण कराया गया है. शहर में निर्मित लगभग सभी पंडाल किसी न किसी थीम पर आधारित हैं, जो इस साल श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करेगी. ज्यादातर पंडाल पश्चिम बंगाल के कारीगरों द्वारा बनाया गया है. पंडाल के जरिए श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए पूजा समितियों की ओर से लाखों रुपये खर्च किये गये है. तेतुलतल्ला में केदारनाथ मंदिर की थीम पर पंडाल बनाया गया है. अंदर केदारनाथ गुफा का दृश्य देखने को मिलेगा.
मैथन क्षेत्र में दुर्गोत्सव की धूम है. इस वर्ष श्री श्री सार्वजनिक दुर्गापूजा समिति बनमेढ़ा का पंडाल सबसे अलग दिखेगा. ढोलक के आकार में भव्य पंडाल बनाया गया है. यहां पूजा का आठवां साल है. वहीं, पहाड़ के ऊपर माता रानी को विराजमान किया गया है. पहाड़ के ऊपर मां का प्राचीन मंदिर को देखने श्रद्धालु आने लगे हैं.
राजघराने से जुड़े होने के कारण कतरास कोयलांचल की दुर्गा पूजा का इतिहास समृद्ध रहा है. यहां की पूजा 400 वर्ष से अधिक पुरानी है. राजघराने के सदस्य साल भर कहीं भी रहें, पर परंपरा के अनुसार पूजा में सभी सदस्य कतरास में होते हैं. महासप्तमी से दशमी तक प्रतिदिन 108 कमल के फूल मां दुर्गे को चढ़ाये जाते हैं. महाअष्टमी में भक्तों की भीड़ यहां देखते ही बनती है. कतरास बाजार, झींझीपहाड़ी, राजबाड़ी, लस्करीटांड़, गोपालपुर, टंडा बस्ती, केशलपुर आदि दूर-दराज से लोग पूजा करने पहुंचते हैं.