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छपरा में आर्चरी के लिए संसाधन व ग्राउंड हुआ उपलब्ध, अब बच्चे सीख सकेंगे धनुष-बाण चलाने की कला

जिले के बच्चे भी बहुत जल्द हाथों में धनुष-बाण लिए पदक के लिए अलग-अलग टूर्नामेंट में प्रतिस्पर्धा करते नजर आयेंगे. जिला प्रशासन ने शहर के छपरा क्लब में तीरंदाजी के लिए इंडिया राउंड धनुष, टारगेट बटरेस व ग्राउंड की व्यवस्था करायी है.

छपरा. जिले के बच्चे भी बहुत जल्द हाथों में धनुष-बाण लिए पदक के लिए अलग-अलग टूर्नामेंट में प्रतिस्पर्धा करते नजर आयेंगे. जिला प्रशासन ने शहर के छपरा क्लब में तीरंदाजी के लिए इंडिया राउंड धनुष, टारगेट बटरेस व ग्राउंड की व्यवस्था करायी है. अब यहां के बच्चे तिरंदाजी सीख जिला, राज्य व अंतराज्जीय स्तर पर आयोजित होने वाले प्रतिस्पर्द्धा में भाग ले सकेंगे.

इसके लिए सदर अनुमंडल कार्यालय में कार्यरत अंतरराष्ट्रीय स्तर की तीरंदाज अंजली बच्चों को प्रशिक्षण देने के लिए भी तैयार हैं. हालांकि कई जरूरी व्यवस्थाओं की अभी आवश्यकता है. जिसके पूरा होते ही प्रैक्टिस सेशन शुरू किया जा सकता है. प्रभात खबर से हुई बातचीत में अंजली ने बताया कि 2019 में तत्कालीन डीएम सुब्रत कुमार सेन के समय उनकी प्रैक्टिस के साथ ही स्थानीय बच्चों को प्रशिक्षण देने के उद्देश्य से प्रशासन ने छपरा क्लब की ग्राउंड को उपलब्ध कराया था.

वहीं चार धनुष (इंडिया राउंड) का सेट भी खरीद कर दिया गया है. इसके अलावे टारगेट बोर्ड भी लगाया गया है. इसके लिए प्रशासनिक स्तर पर तो प्रयास करना होगा. साथ ही स्कूल-कॉलेजों समेत स्थानीय विश्वविद्यालय के खेल कैलेंडर में आर्चरी को प्रोमोट करने का कार्यक्रम निर्धारित करना होगा. जिसके बाद ही बच्चों के साथ उनके अभिभावकों में तीरंदाजी को लेकर सोंच विकसित होगी. फिलहाल अंजली अकेले ही यहां अपनी ड्यूटी के बाद प्रैक्टिस करती हैं.

नेशनल गेम्स तक की तैयारी संभव

इस समय जितने भी संसाधन उपलब्ध हैं. यदि उनका सही इस्तेमाल हो तो स्थानीय बच्चे राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं तक पहुंच सकते हैं. अंजली बताती हैं कि इंडिया राउंड धनुष नेशनल लेबल की आर्चरी में इस्तेमाल होता है. छपरा में इसके चार सेट मौजूद हैं. इससे 50 मीटर तक निशाना लगाया जा सकता है.

सीनियर वर्ग के प्रतियोगिता के लिए उम्र सीमा 50 वर्ष तक निर्धारित है. वहीं जूनियर लेबल में नौ वर्ष तक की आयु के बच्चे प्रतिभागी बन सकते हैं. जो बच्चें सीखना चाहते हैं पहले उनकी काउंसेलिंग करनी पड़ेगी. खेल में उनके इंट्रेस्ट को देखते हुए ट्रेनिंग शुरू की जा सकती है.

प्रशिक्षण के लिए बनाना होगा कार्यक्रम

इस समय जिले में प्रारंभिक स्तर पर तरंग जैसी खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन होता है. वहीं विश्वविद्यालय स्तर पर एकलव्य खेल प्रतियोगिता में कॉलेज के बच्चे शामिल होते रहे हैं. हालांकि ओलंपिक व विश्व स्तर पर जिन खेलों में भारत का दबदबा रहा है. उसे स्थानीय स्तर पर बढ़ावा देने के कोई खास कार्यक्रम नहीं है.

हॉकी, जेवलिन थ्रो, बैडमिंटन, तीरंदाजी, कुश्ती, टेनिस व बॉक्सिंग में देश आज नयी ऊंचाइयां छू रहा है. हालांकि हाल ही में संपन्न अंतराष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा में झारखंड की बेटी ने इस कला की ओर भी लोगों का ध्यान आकृष्ट कराया है.

इन सब खेलों में तीरंदाजी ही एक ऐसा इवेंट है. जिसे स्थानीय बच्चों में प्रोमोट करने के सभी संसाधन मौजूद हैं. यदि स्कूल-कॉलेजों के स्तर पर प्रशिक्षण का कार्यक्रम बने और जिले में प्रशासन द्वारा छोटे-छोटे इवेंट कराये जायें तो यहां की प्रतिभाओं को तराशा जा सकता है.

प्रयासरत हैं अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज अजंली

सारण की रहने वाली अंतरराष्ट्रीय स्तर की तीरंदाज अंजली बताती हैं कि वर्ष 2013 में बैंकॉक में हुए एशियन ग्रां प्रिक्स में एकल स्पर्धा में रजत पदक तथा वर्ष 2011 में चाइना में हुए वर्ल्ड यूनिवर्सिटी गेम्स में टीम स्पर्धा में कांस्य पदक जीतने के बाद वह आज भी ओलंपिक्स में जाने के लिए तैयारी कर रही हैं.

इस समय एसडीओ कार्यालय में कार्यरत होने के कारण उन्हें तैयारी का पूरा अवसर नहीं मिल पा रहा है. गत वर्ष फरवरी में वह सोनीपथ में हुए वर्ल्ड कप ट्रायल के लिए गयी थीं. उनका लक्ष्य है कि स्थानीय बच्चों को इस इवेंट में आगे बढ़ाया जाये. जिसके लिए वह प्रयासरत हैं.

उपलब्ध संसाधन

  • – धनुष ( इंडिया राउंड) – 04

  • – टारगेट बटरेस- 01

  • – राष्ट्रीय स्तर का प्रशिक्षक- 01

  • – प्रैक्टिस ग्राउंड- 01

Posted by Ashish Jha

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