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International Democracy Day: लोकतंत्र के सच्चे प्रहरी हैं जमशेदपुर के ये लोग, बने मानवता की मिसाल

हर वर्ष 15 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस मनाया जाता है. अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस में लोगों के बारे में और लोगों के लिए लोकतंत्र की महत्ता याद कराने का अवसर देता है. लोकतंत्र दिवस का मुख्य उद्देश्य पूरे विश्व में लोकतंत्र को बढ़ावा देना है.

International Democracy Day: भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है. इसकी मजबूती देशवासियों से ही है. ऐसे में देशभर के साथ शहर के भी कई लोग यहां की आम जनता के अधिकारों व सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं. लोकतंत्र के प्रति लोगों में उत्साह बरकरार रखने के लिए कुछ लोगों ने अपना जीवन देश-समाज के लिए समर्पित कर दिया है. किसी ने लोगों में संविधान के प्रति समझ बढ़ाने और उन्हें अपने अधिकार व कर्तव्य के प्रति जागरूक करने के लिए मुहिम छेड़ रखी है, तो कोई महिलाओं को उनका हक दिलाने के लिए लगातार जुटे हैं. वहीं, जब से शासन व्यवस्था में पारदर्शिता लाने के लिए आरटीआइ (सूचना का अधिकार) को लागू किया गया है, तो कई लोग इस कानून को हथियार बना कर लोगों को हक-अधिकार दिलाने में जुटे हैं. यह लोकतंत्र की खूबसूरती भी बढ़ा रही है. कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि ये लोग मानवता की जिंदा मिसाल बने हैं और वास्तव में लोकतंत्र के सच्चे प्रहरी हैं.

अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस आज

हर वर्ष 15 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस मनाया जाता है. अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस में लोगों के बारे में और लोगों के लिए लोकतंत्र की महत्ता याद कराने का अवसर देता है. लोकतंत्र दिवस का मुख्य उद्देश्य पूरे विश्व में लोकतंत्र को बढ़ावा देना है. अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस मनुष्यों के मूल अधिकारों को सुरक्षा और प्रभावी समर्थन को याद कराने का एक महत्वपूर्ण दिन है.

क्या है उद्देश्य

अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस को लोग और कई संगठन अलग-अलग तरीके से मनाते हैं. इस दिवस का मुख्य उद्देश्य लोगों के अंदर लोकतंत्र के लिए जागरूक करना है.

इतिहास क्या है

साल 2007 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के द्वारा अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस की शुरुआत की गई थी. सबसे पहले साल 2008 में अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस मनाया गया. इसके अंतर्गत दुनिया के हर कोने में सुशासन लागू करना है. भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जा सकता है, क्योंकि यहां लगभग 60 करोड़ लोग अपने मत का प्रयोग करके सरकार को चुनते हैं.

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घुमंतू लाइब्रेरी से सशक्त हो रहा है लोकतंत्र

कदमा निवासी अंकुर कंठ (शाश्वत) गांधी शांति प्रतिष्ठान संस्था से जुड़े हैं. उनका मानना है कि लोकतंत्र और मानवाधिकार की रक्षा तभी हो सकती है, जब लोग भारत के संविधान को जानें. संविधान में वर्णित अधिकार से लोग वाकिफ नहीं हैं. इसलिए अपने अधिकार की रक्षा नहीं कर पाते. इसको लेकर उन्होंने मुहिम चलाया है. कोल्हान प्रमंडल के तीनों जिले पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम और सरायकेला खरसावां में संविधान प्रदत्त अधिकार को लेकर लोगों में जागरूकता लाने के लिए वे यात्रा निकालते हैं. वे बताते हैं कि सकूल, कॉलेज के विद्यार्थियों को संविधान की सही जानकारी मिल जाने पर हमारा समाज मजबूत होगा. इस मकसद से ही यात्रा के दौरान वे विद्यार्थियों से मिलते हैं. अपनी टीम के साथ वे हर साल 21 से 26 नवंबर के बीच संविधान यात्रा भी निकालते हैं. इसमें संविधान पर सत्र चलता है, ओपन डिबेट चलाया जाता है. वे बताते हैं कि इसका फायदा हुआ, युवाओं में संविधान को लेकर समझ बन रही है. अंकुर घुमंतू पुस्तकालय भी चलाते हैं. पुस्तक, पोस्टर के जरिये युवाओं को संविधान की जानकारी दी जाती है. वे बताते हैं कि इस तरह के काम से भी लोगों को जागरूक किया जा सकता है, लोकतंत्र की रक्षा की जा सकती है.

सभा-चौपालों में चलता है अभियान

चांडिल निवासी शशांक शेखर लोकतंत्र को जन-जन तक पहुंचाने के लिए अभियान चलाते हैं. वे बताते हैं कि लोकतंत्र को बचाने के लिए जमीनी स्तर पर काम करने की जरूरत है. ग्रामीणों को उनके अधिकार बताते होंगे. वे श्रुति संस्था से जुड़े हैं, जो ग्राम सभाओं, चौपालों में लोकतंत्र पर अभियान चलाती है. नुक्कड़ नाटक के जरिये इस पर चर्चा होती है. वे संस्था से जुड़कर ग्राम विकास आधारित कार्य भी करते हैं. वे बताते हैं कि देखा जाता है कि अधिकार नहीं मिलने पर कई बार ग्रामीण शिथिल पड़ जाते हैं. यह लोकतंत्र के बढ़िया संकेत नहीं है. ऐसे लोगों को जागृत करने की जरूरत है. यह तभी होगा जब संविधान द्वारा दिये गये अधिकार जन-जन पहुंचेंगे. गांवों में लोकतंत्र जिंदा रहेगा, तो देश में भी यह जिंदा रहेगा. इसके अतिरिक्त शशांक आकाशवाणी से भी जुड़े हैं. आकाशवाणी जरिये आलोक कार्यक्रम चलता है. इस कार्यक्रम में ग्रामीणों के अधिकार की बात की जाती है. वे गांवों में जाकर कार्यक्रम चलाते हैं. लोगों को अधिकार के प्रति सचेत करते हैं. इसके अलावा स्वतंत्र लेखन के जरिये भी वे संविधान से मिले अधिकार लोगों तक पहुंचाते हैं.

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हम अपने लोकतंत्र पर गर्व महसूस करते हैं

मानगो निवासी डेमका सोय झारखंड आंदोलनकारी हैं. वे जल, जंगल, जमीन के लिए मुखर होकर अन्याय व अत्याचार के खिलाफ आवाज को उठाते हैं. वह बताते हैं कि लोकतंत्र में उन्हें निडर होकर अपनी बातों को रखने का अवसर मिला है. इसलिए जहां कहीं भी गलत तरीके से गरीब तबकों की जमीन को हथियाने या डरा-धमकाकर छीनने का प्रयास किया जाता है, तो वे पीड़ित परिवार के साथ खडे़ हो जाते हैं. वे गरीब परिवार के साथ संबंधित कार्यालय में जाकर उसका पक्ष को रखते हैं. पक्ष को रखने के बाद न्याय नहीं मिलने पर न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हैं. वे बताते हैं कि लोकतंत्र में कोई बड़ा या छोटा नहीं होता है. हर आम व खास के लिए नीति-नियम एक समान है. बहुसंख्यक आबादी को आज राष्ट्र के मुख्यधारा में समुचित प्रतिष्ठा और विकास का लाभ मिला है. लोकतंत्र के कारण ही द्रौपदी मुर्मू जैसी साधारण महिला को देश की पहली नागरिक के तौर पर राष्ट्रपति के पद पर आसीन होने का गौरव प्राप्त हुआ है. सशक्त लोकतंत्र के परिणाम स्वरूप ही देश के हर वर्ग को समान अवसर उपलब्ध हो सका है.

महिला सशक्तीकरण जीवन का मकसद

समाजसेवी व महिला कल्याण समिति की संस्थापिका अंजलि बोस करीब 30 साल से महिला सशक्तीकरण की दिशा में काम कर रही हैं. उन्होंने बताया कि वर्तमान में वह साकची थाना के वीमेंस सेल से भी जुड़ी हैं. इससे घरेलू हिंसा सहित अन्य मामलों की शिकार महिलाओं को न्याय दिलाना उनका मकसद बन गया है. साथ ही वह लड़िकयों की शिक्षा को लेकर भी काम कर रही हैं. उन्होंने कहा कि सच बात तो यह है कि आज भी 80 प्रतिशत महिलाएं अपने अधिकार और कर्तव्य से अनभिज्ञ हैं. ऐसे में महिला सशक्तीकरण पर काम करना किसी चुनौतियों से कम नहीं है. बचपन से घर की बेटियों को धार्मिक स्थल में जाकर पूजा-पाठ करना सिखाया जाता है, लेकिन लोकतंत्र में महिलाओं को मिले अधिकार एवं कर्तव्य पर बात नहीं होती है. अब सवाल है कि इसे कैसे सुधारा जाये. जो भी संस्था, सरकारी-गैरसरकारी है, उसकी महिला जिम्मेदारी है कि वे अपने दायित्व का निर्वाहन करते हुए स्कूल-कॉलेजों में विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से इसकी जानकारी दें. यहां तक कि सरकार द्वारा पाठ्यक्रम में भी इस विषय को शामिल किया जाना चाहिए.

महिलाओं की शिक्षा और रोजगार के लिए कर रहीं काम

बाग-ए-आएशा की चेयरपर्सन जेबा कादरी महिलाओं की शिक्षा व रोजगार को लेकर काम कर रही हैं. उन्हाेंने बताया कि वह महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए उन्हें कंप्यूटर की शिक्षा भी दिलाती हैं. भारतीय संविधान में नागरिकों को मौलिक अधिकार देने के साथ नारी के लिए कुछ मूल कर्तव्य भी निर्धारित हैं. इस संदर्भ में आधी आबादी गर्व कर सकती है कि वह इन कर्तव्यों को निभाने में भी आगे है. परिवार को देश का लघु रूप मानें, तो वहां स्त्री हर मौलिक कर्तव्य निभाती नजर आयेगी. वह आदर्शों का पालन करती है, एकता और अखंडता को बनाए रखने की हरदम कोशिश करती है और समरसता व समान भ्रातृत्व भावना के निर्माण के लिए प्रयासरत रहती है. दूसरी तरफ, संविधान निर्माताओं की भावनाओं के अनुरूप, आधुनिक महिला ने कई कुरीतियों और कुप्रथाओं को नकारा भी है, जिसकी बदौलत समाज वर्तमान स्वरूप ले सका हैं.

आरटीआइ से गड़बड़ियों को कर रहे उजागर

आरटीआइ कार्यकर्ता संघ के अध्यक्ष दिलबहादुर का मानना है कि प्रजातंत्र की सफलता के लिए सूचित नागरिक और सूचना का पारदर्शी होना आवश्यक है. दिलबहादुर पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से जन सूचना अधिकार अधिनियम के तहत सरकारी कार्यालय से विभिन्न योजनाओं की जानकारी प्राप्त करते हैं. फिर जहां कहीं भी सरकारी योजनाओं में गड़बड़ी की बात सामने आती है, तो वे आरटीआइ के तहत प्राप्त सारे दस्तावेजों के साथ लड़ते हैं. गांव-देहात के गरीब व अनपढ़ लोगों के संपर्क में रहने की वजह से इस तरह की अधिकांश घटनाएं उनके पास आते रहते हैं. वे लोगों की मदद करते हैं और हक अधिकार दिलाते हैं. वर्ष 2009 में जमशेदपुर प्रखंड क्षेत्र की एक पंचायत में फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनाकर मुखिया चुनाव लड़ने का मामला प्रकाश में आया था. उसमें दिलबहादुर ने ही आरटीआइ के तहत सारे दस्तावेज निकलवाये थे और फर्जी मुखिया को पद से हटवाया था.

लोकतांत्रिक व्यवस्था ही आदिवासी स्वशासन व्यवस्था का आधार

जोसाई मार्डी आदिवासी छात्र एकता के संरक्षक हैं. वे आदिवासियों की जल, जंगल, जमीन की समस्या व संवैधानिक अधिकार सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट, समता जजमेंट, भूमि अधिग्रहण कानून समेत विस्थापन-पलायन जैसे मामलों में अक्सर मुखर होकर आंदोलन करते हैं. उनका कहना है कि लोकतंत्र में न कोई राजा होता है और न कोई गुलाम. इसमें सब एक समान है. हर व्यक्ति को अपनी बात रखने का अधिकार है. भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है, क्योंकि यहां जनता द्वारा जनता का शासन होता है. लोकतंत्र का उद्देश्य हर कोने में सुशासन को लागू करना है. आदिवासी समाज सदियों से लोकतांत्रिक व्यवस्था पर ही विश्वास करता आया है. लोकतांत्रिक व्यवस्था ही आदिवासी स्वशासन व्यवस्था का आधार है, जहां हर नीति-नियम में पारदर्शिता है. जितने भी नीति-नियम बनाये गये हैं, सबके लिए एक समान हैं.

रिटायरमेंट के बाद भी बच्चों को खेल की ट्रेनिंग देने जाते हैं स्कूल

चाकुलिया के रामस्वरूप यादव आज के दौर में लोगों के लिए मिसाल हैं. चाकुलिया के कोकपाड़ा हाई स्कूल के सेवानिवृत्त खेल शिक्षक रामस्वरूप यादव को भले सरकारी नियमों के अनुसार रिटायर्ड करार दे दिया गया है, लेकिन उनके अंदर बच्चों के प्रति कुछ करने का जज्बा खत्म नहीं हुआ है. 67 वर्षीय रामस्वरूप यादव की दिनचर्या पहले की तरह ही है. रिटायरमेंट के बाद अब भी वे सुबह स्कूल जाते हैं, वहां बच्चों को पीटी ट्रेनिंग देने के साथ ही उन्हें तरह-तरह के खेल की बारीकियों को सिखाते हैं. पूरी तन्मयता से वे चाकुलिया के सरकारी स्कूल के बच्चों को अलग-अलग खेल की ट्रेनिंग देते हैं. इसके एवज में न सरकार से वे किसी प्रकार की कोई मदद लेते हैं और न ही स्कूल प्रबंधन द्वारा कोई सुविधा. वे कहते हैं कि अगर उनकी वजह से बच्चों को कुछ लाभ मिल जाए, तो इससे बड़ा कोई पुण्य नहीं हो सकता है. सरकार ने भले रिटायर किया है, लेकिन उनके हौसले पहले की तरह ही बुलंद हैं. उनकी तन्मयता व कर्तव्य निष्ठा की वजह से ही उन्हें 2017 में राष्ट्रपति पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है.

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