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विशेषज्ञों का दावा, टिड्डी दलों का प्रकोप जलवायु परिवर्तन का नतीजा

पर्यावरण विशेषज्ञों का दावा है कि राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में आतंक का पर्याय बने टिड्डी दल दरअसल जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न स्थितियों का नतीजा हैं. साथ ही उन्होंने इन कीटों का प्रकोप जुलाई की शुरुआत तक बरकरार रहने की आशंका जाहिर की है.

लखनऊ : पर्यावरण विशेषज्ञों का दावा है कि राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में आतंक का पर्याय बने टिड्डी दल दरअसल जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न स्थितियों का नतीजा हैं. साथ ही उन्होंने इन कीटों का प्रकोप जुलाई की शुरुआत तक बरकरार रहने की आशंका जाहिर की है.

वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण लागू लॉकडाउन के बीच देश के पश्चिमी राज्यों पर टिड्डी दलों ने धावा बोल दिया है. पिछले ढाई दशक में पहली बार महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी इनका जबरदस्त प्रकोप दिखाई दे रहा है. जलवायु परिवर्तन विषय पर काम करने वाले प्रमुख संगठन ‘क्लाइमेट ट्रेंड्स’ की मुख्य अधिशासी अधिकारी आरती खोसला के मुताबिक टिड्डियों के झुंड पैदा होने का जलवायु परिवर्तन से सीधा संबंध है.

उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन की वजह से करीब 5 महीने पहले पूर्वी अफ्रीका में अत्यधिक बारिश हुई थी. इसके कारण उपयुक्त माहौल मिलने से बहुत भारी मात्रा में टिड्डियों का विकास हुआ. उसके बाद वे झुंड वहां से 150 से 200 किलोमीटर रोजाना का सफर तय करते हुए दक्षिणी ईरान और फिर दक्षिण पश्चिमी पाकिस्तान पहुंचे. वहां भी उन्हें अनियमित मौसमी परिस्थितियों के कारण प्रजनन के लिए उपयुक्त माहौल मिला जिससे उनकी तादाद और बढ़ गई.

वे अब भारत की तरफ रुख कर चुकी हैं. कम से कम जुलाई की शुरुआत तक टिड्डियों का प्रकोप जारी रहने की प्रबल आशंका है. आरती ने बताया कि संयुक्त राष्ट्र के खाद्य संगठन एफएओ का मानना है कि देश में जून से बारिश का मौसम शुरू होने के बाद टिड्डियों के हमले और तेज होंगे. संयुक्त राष्ट्र ने भी चेतावनी दी है कि इस वर्ष भारत के किसानों को टिड्डियों के झुंड रूपी मुसीबत का सामना करना पड़ेगा.

यह भारत में खाद्य सुरक्षा के लिए बहुत बड़ा खतरा है. उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन ने मौसम के हालात को मौजूदा प्रकोप के अनुकूल बना दिया है. चरम और असामान्य मौसम के साथ पिछले साल एक शक्तिशाली चक्रवात के कारण दुनिया के अनेक स्थानों पर नमी पैदा हुई है जो टिड्डियों के विकास के लिए अनुकूल माहौल बनाती हैं.

पर्यावरण वैज्ञानिक डॉक्टर सीमा जावेद ने बताया कि टिड्डे गीली स्थितियों में पनपते हैं और इनका प्रकोप अक्सर बाढ़ और चक्रवात के बाद आता है. उन्होंने कहा कि टिड्डियां एक ही वंश का हिस्सा होती हैं लेकिन अत्यधिक मात्रा में पैदा होने पर उनका व्यवहार और रूप बदलता है. इसे फेज़ चेंज कहा जाता है.

ऐसा होने पर टिड्डे अकेले नहीं बल्कि झुंड बनाकर काम करते हैं, जिससे वे बहुत बड़े क्षेत्र पर हावी हो जाते हैं. यही स्थिति चिंता का कारण बनती है. इस बीच, भारत कृषक समाज के अध्यक्ष अजयवीर जाखड़ ने कहा कि केंद्र सरकार को टिड्डी दल के प्रकोप के प्रबंधन के बारे में महज अलर्ट जारी करने और सलाह देने से ज्यादा कुछ करना पड़ेगा

उन्होंने कहा कि तेजी से बढ़ते प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशकों के हवाई छिड़काव की व्यवस्था करनी होगी लेकिन राज्यों में इसके लिए पर्याप्त संसाधन नहीं है. कृषि एवं व्यापार नीति विशेषज्ञ देविंदर शर्मा ने कहा कि टिड्डी दलों का हमला बेहद गंभीर है और भविष्य में हालात और भी मुश्किल हो जाएंगे.

टिड्डी दल पांच राज्यों राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र तक पहुंच गए हैं. टिड्डियों के कारण सूखे से भी बदतर हालात पैदा हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि इस साल बेमौसम बारिश और बढ़ी हुई चक्रवातीय गतिविधियों की वजह से अनुकूल जलवायु परिस्थितियां उत्पन्न हुई हैं और टिड्डे सामान्य से 400 गुना ज्यादा प्रजनन कर रहे हैं.

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