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बांदापानी चाय बागान का अबतक अधिग्रहण नहीं
अलीपुरद्वार. काफी दिनों से बंद पड़े बांधापानी चाय बागान के अधिग्रहण की घोषणा केन्द्र सरकार के वाणिज्य मंत्रालय ने की थी, तो यहां काम करने वाले चाय श्रमिक काफी खुश थे. तब से लेकर अब तक कई साल बीत जाने के बाद भी इस चाय बागान की हालत जस की तस है. केन्द्र सरकार द्वारा […]
अलीपुरद्वार. काफी दिनों से बंद पड़े बांधापानी चाय बागान के अधिग्रहण की घोषणा केन्द्र सरकार के वाणिज्य मंत्रालय ने की थी, तो यहां काम करने वाले चाय श्रमिक काफी खुश थे. तब से लेकर अब तक कई साल बीत जाने के बाद भी इस चाय बागान की हालत जस की तस है.
केन्द्र सरकार द्वारा अधिग्रहण तो दूर, चाय श्रमिकों की कोई खोज-खबर तक नहीं ली गई. कमोबेश यही स्थिति राज्य सरकार की भी है. राज्य सरकार ने भी इस चाय बागान को खोले जाने को लेकर अपने हाथ खड़े कर दिये हैं. आखिरकार इस चाय बागान के श्रमिक अपने दम पर बागान को खोलने की कोशिश में जुट गये हैं. इसके लिए चाय श्रमिकों ने एक कॉपरेटिव का गठन किया है. यहां काम करने वाले चाय श्रमिकों का कहना है कि केन्द्र तथा राज्य सरकार दोनों की ओर से चाय बागान खोलने का सिर्फ आश्वासन मिला. वर्ष 2013 के अक्टूबर में बांदापानी चाय बागान बंद कर मालिका चले गये. उसके बाद सिर्फ राजनीति हुई. राज्य सरकार ने तो अढाई साल पहले चाय बागान की जमीन फैक्ट्री आदि का भी अधिग्रहण कर लिया, लेकिन बागान खोलने की कोशिश नहीं की गई.
अब तो यहां के काफी चाय श्रमिक भी काम की तलाश में दूसरे स्थानों पर चले गये हैं. यहां काम करने वाले श्रमिकों की कुल संख्या 1298 है. श्रमिकों ने बताया है कि काफी पहले जब राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उत्तर बंगाल दौरे पर आयी थी, तब उन्होंने बागान खोलेन का भरोसा दिया था. उसके बाद केन्द्रीय वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमण दो साल पहले गोजमुमो सुप्रीमो बिमल गुरूंग को लेकर यहां पहुंची थी. उन्होंने भी बागान खोलने की बात कही थी. काम कुछ भी नहीं हुआ. यहां के चाय श्रमिक काफी परेशान हैं.
स्वास्थ्य सेवा जैसी मूलभूत सुविधाएं भी इनके पास नहीं है. कई चाय श्रमिक इलाज के अभाव में बिस्तर पर पड़े हुए हैं. वह एक तरह से मौत के साथ पंजा लड़ा रहे हैं. बिशराम उरांव, हरिपद बाघवार, संचालिया उरांव आदि चाय श्रमिक किसी तरह से जीवन गुजार रहे हैं.
जंगली फूल और फल खाकर इनका गुजारा चल रहा है. बांदापानी चाय फैक्ट्री भी करीब-करीब तबाह हो चुका है. तमाम मशीन खराब हो गये हैं. काफी संपत्ति की चोरी भी हो गई है. फिर भी यहां के श्रमिक इस फैक्ट्री को बचाने की कोशिश में लगे हुए हैं.
गैर पैसे के ही चाय श्रमिक यहां पहरेदारी कर रहे हैं. एक चाय श्रमिक बुधवा उरांव ने बताया है कि आखिर कितने दिनों तक ऐसा चलेगा. बीच-बीच में कुछ स्वयंसेवी संगठन द्वारा राहत सामग्री दी जाती है. इससे कोई लाभ नहीं है. वह लोग राहत नहीं, बल्कि रोजगार चाहते हैं. चाय बागान खुलने से वह सभी काम पर लग जायेंगे. इस संबंध में एक गैर सरकारी संगठन जीनेसेफ के अधिकारी पार्थ प्रतीम सरकार ने कहा है कि चाय श्रमिकों की हालत काफी खराब है. राज्य सरकार ने बागान की जमीन को पहले ही अपने कब्जे में ले लिया है.
अब यहां के चाय श्रमिक स्वयं ही कॉपरेटिव बनाकर चाय बागान चलाना चाहते हैं. वह लोग इस काम में श्रमिकों की मदद करेंगे. चाय बागान से पत्ते को दूसरी फैक्ट्रियों में भेजने तथा चाय बेचने आदि में वह लोग चाय श्रमिकों की मदद करेंगे. एक अन्य स्वयंसेवी संगठन चाय बागान बचाओ कमेटी के संयोजक विष्णु घतानी ने कहा है कि चाय बागान की लीज मिलने पर काम करने में आसानी होगी.
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