वह राज्य सरकार के साथ किसी प्रकार का झगड़ा नहीं करना चाहते और ममता सरकार के साथ मिलकर रहना चाहते हैं. केपीपी नेता के इस बात से जाहिर है कि उन्होंने राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सामने साफ तौर पर सरेंडर कर दिया है. इतना ही नहीं, केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा नीत एनडीए में शामिल केपीपी ने इससे भी दूरी बना ली है.
केपीपी का कहना है कि उनकी पार्टी अब एनडीए के साथ नहीं है. इसके अलावा गोरखालैंड बनाने की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे गोजमुमो सुप्रीमो बिमल गुरूंग से भी उनका कोई लेना-देना नहीं है. अतुल राय ने भाजपा तथा गोजमुमो से भी पूरी दूरी बना ली है. यहां उल्लेखनीय है कि उत्तर बंगाल में कूचबिहार के साथ ही तराई एवं डुवार्स के कई जिलों को मिला कर कामतापुर राज्य बनाने की मांग पिछले दो दशक से चल रही है. यहां तक कि इस मांग को लेकर हिंसक आंदोलन भी हुआ है. केएलओ जैसे खतरनाक उग्रवादी संगठन का जन्म भी अलग कामतापुर राज्य बनाने की मांग को लेकर हुआ. एक दशक पहले कामतापुर को लेकर उत्तर बंगाल में काफी मार-काट मची. केएलओ उग्रवादियों ने बम विस्फोट जैसी घटनाओं को भी अंजाम दिया था. वर्ष 2011 में राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल की सरकार बनी. ममता बनर्जी ने मुख्यमंत्री बनने के बाद गोरखालैंड आंदोलन को शांत करने के साथ ही कामतापुर आंदोलन को भी शांत करने की कोशिश की. अब जाकर लगता है कि ममता बनर्जी को कामतापुर आंदोलन शांत करने में सफलता मिल गई है. इतना ही नहीं, दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में तृणमूल कांग्रेस उत्थान से गोरखालैंड आंदोलन भी कमजोर हुआ है.
कामतापुर भाषा को मान्यता देने को लेकर राज्य सरकार ने एक कमेटी भी बनायी है. ममता बनर्जी द्वारा अलग राज्य की मांग को छोड़कर अन्य मांगों पर विचार करने के आश्वासन के बाद केपीपी ने पिछले विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस का समर्थन किया है. इस बीच, केपीपी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, कामतापुर आंदोलन के दौरान केपीपी नेताओं पर दर्ज मुकदमे वापस लेने पर भी ममता बनर्जी से बातचीत चल रही है. इस मुद्दे पर केपीपी नेता अतुल राय ने कहा कि उन्होंने राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को पांच सूत्री मांगों से समर्थित एक ज्ञापन दिया था. उसमें कामतापुर आंदोलन के दौरान तत्काल माकपा सरकार द्वारा दर्ज मुकदमे वापस लेने की मांग की गई है. श्री राय ने आगे कहा कि कामतापुर आंदोलन के दौरान तत्कालीन वाम मोरचा सरकार ने दो हजार से भी अधिक केपीपी नेताओं एवं समर्थकों पर झूठे मामले दर्ज किये. इन मामलों की जानकारी मुख्यमंत्री को दी गई है.