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सेवा रूपी धर्म शरीर के पराक्रम पर आधारित होता हैः आचार्यश्री महाश्रमण

सिलीगुड़ी: कुछ ऐसे भी धर्म हैं जो शारीरिक सेवा के सापेक्ष होते हैं और सेवा रूपी धर्म शरीर के पराक्रम पर आधारित होता है. इसलिए इंसान को तब-तक सेवा धर्म करने का प्रयास करते रहना चाहिए जब-तक कि शरीर पराक्रम करने के योग्य हो. इंसान को शरीर सक्षम रहते ही सेवा धर्म कर लेना चाहिए. […]

सिलीगुड़ी: कुछ ऐसे भी धर्म हैं जो शारीरिक सेवा के सापेक्ष होते हैं और सेवा रूपी धर्म शरीर के पराक्रम पर आधारित होता है. इसलिए इंसान को तब-तक सेवा धर्म करने का प्रयास करते रहना चाहिए जब-तक कि शरीर पराक्रम करने के योग्य हो. इंसान को शरीर सक्षम रहते ही सेवा धर्म कर लेना चाहिए. यह कहना है जैन श्वेतांबर तेरापंथ समाज के 11वें अनुशास्ता भगवान महावीर के शांतिदूत व अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी का. वह शनिवार को जलपाईगुड़ी के फाटापुकुर में आयोजित धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे.

आचार्यश्री की ‘अहिंसा यात्रा’ का विशाल जत्था आज राणीनगर स्थित पारख ल्यूब्स से लगभग 12 किमी का विहार कर फाटापुकुर के एक चाय फैक्ट्री में पहुंचकर धर्मसभा में तब्दील हो गया. जैसे ही आचार्यश्री के सानिध्य में विशाल जत्था कार्यक्रम स्थल पहुंचा वैसे ही हजारों अनुयायियों ने आचार्यश्री के स्वागत में जयकारे लगाये. धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्यश्री ने अनुयायियों के बीच सेवा धर्म का अलख जगाया.

आचार्यश्री ने केवल इंसानों को ही नहीं बल्कि साधु-संतो और साध्वियों को भी बुढ़ापा आने और शरीर के कमजोर होने से पहले सेवा धर्म कर लेने का सुझाव दिया. उन्होंने धर्मसभा में मौजूद मुमुक्षु बाइयों को भी विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि इस छोटी अवस्था में ही अधिक से अधिक ज्ञान हासिल कर लेने का प्रयास करना चाहिए. अच्छा ज्ञान का अर्जन कर समय का सदुपयोग करें और अपना ज्ञान सबों के बीच बांटे. उन्होंन युवाओं को भी अपने पराक्रम शरीर का अधिक से अधिक सेवा धर्म में लगाने का सलाह दिया. धर्मसभा के अंत में मुनि ध्रुव कुमारीजी ने सभी को सामायिक करने की प्रेरणा प्रदान की.

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