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नोटबंदी के चलते मालदा का मधु कारोबार संकट में

मालदा: नोटबंदी के चलते मालदा के मधु (शहद) का कोई खरीदार नहीं मिल रहा है. आम तौर पर मालदा के मधु को विदेशी बाजार में भेजा जाता है. लेकिन इस बार मधु किसानों के घर में ही पड़ा हुआ है. मधु उत्पादक किसान इसे लेकर काफी परेशान हैं. उनका कहना है कि हर साल बड़े […]

मालदा: नोटबंदी के चलते मालदा के मधु (शहद) का कोई खरीदार नहीं मिल रहा है. आम तौर पर मालदा के मधु को विदेशी बाजार में भेजा जाता है. लेकिन इस बार मधु किसानों के घर में ही पड़ा हुआ है. मधु उत्पादक किसान इसे लेकर काफी परेशान हैं. उनका कहना है कि हर साल बड़े पैमाने पर यहां से मधु अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों में भेजा जाता है. विभिन्न प्राइवेट कंपनियों के लोग यहां से मधु खरीद कर पैकिंग करते हैं और उसे विदेशी बाजार में बेचते हैं. इससे मधु किसानों को भी काफी लाभ होता है, लेकिन इस साल आठ नवंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा नोटबंदी की घोषणा एक तरह से मधु उत्पादकों के पर गहरा आघात है.

राज्य के बागवानी विभाग के जिला उप-निदेशक राहुल चक्रवर्ती ने भी इस बात को स्वीकार किया है. उन्होंने कहा है कि हर साल ही यहां मधु का अच्छा उत्पादन होता है. इस काम में राज्य सरकार मधु किसानों की काफी मदद करती है. किसानों को विशेष रूप से इसके लिए प्रशिक्षित भी किया गया है. लेकिन नोटबंदी ने मधु किसानों को बुरी तरह से प्रभावित किया है.

मालदा मधु प्रसंस्करण एसोसिएशन के सदस्य नारायण प्रमाणिक ने भी कहा है कि नोटबंदी की वजह से मधु के दाम में भारी कमी आ गयी है. पहले 110 से 120 रुपये किलो की दर से मधु बेचते थे. अभी इसकी कीमत घटकर 50 से 55 रुपये प्रति किलो हो गयी है. ऊपर से बाहरी लोग मधु खरीदने के लिए नहीं आ रहे हैं. यदि कोई आता भी है तो वह नगद रुपये नहीं देकर चेक दे रहा है. इस चेक से पैसे लेने में मधु उत्पादकों को काफी परेशानी हो रही है. मधुमक्खी पालकों ने घर-घर जाकर मधु का संग्रह कर लिया है. मधु को घर में रखा गया है. खरीदार मिले तो कुछ लाभ होने की उम्मीद उन लोगों को है. श्री प्रमाणिक ने कहा कि पिछले साल मधु उत्पादकों को काफी लाभ हुआ था. लेकिन इस साल नोटबंदी ने उनकी कमर तोड़ दी है.

संगठन सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, मालदा जिले में करीब 25 हजार मधु किसान मधुमक्खी पालन का काम करते हैं. जिले के इंगलिश बाजार, ओल्ड मालदा, चांचल, हरिश्चन्द्रपुर, हरिहरपुर, कालियाचक ब्लॉक में बड़े पैमाने पर मधु का उत्पादन होता है. किसी किसान के पास 50 से 60 बॉक्स मधुमक्खी पालन की क्षमता है, तो किसी के पास 100 से लेकर 200 बॉक्स तक की.
ओल्ड मालदा ब्लॉक के साहापुर इलाके के रहनेवाले मधुमक्खी पालक निहार मंडल, साबेक अली, साधुराम मंडल आदि का कहना है कि साल में छह महीने तक मधुमक्खी का पालन होता है एवं छह महीने तक मधु का उत्पादन. दिसंबर के अंतिम सप्ताह से मधु संग्रह का काम शुरू हो जाता है, जो मई महीने तक चलता है. मधुमक्खी के एक बॉक्स में प्रति सप्ताह 500 ग्राम चीनी देना पड़ता है. किसानों को हर साल 40 हजार रुपये से लेकर एक लाख रुपये तक सिर्फ चीनी में ही खर्च करना पड़ता है. इसके अलावा मधुमक्खियों के रख-रखाव के लिए कर्मचारियों का खर्चा, बॉक्स बनाने का खर्चा, गाड़ी भाड़ा आदि अलग है.

मालदा मधु प्रसंस्करण एसोसिएशन सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, एक मधुमक्खी बॉक्स से करीब 12 किलो मधु का उत्पादन होता है. इसके लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है. मधु को बाद में प्रसंस्करण (प्रोसेसिंग) में डाला जाता है. वर्तमान में यह प्रक्रिया पूरी कर ली गयी है और मधु को बोतलबंद कर रखा गया है. संगठन के सदस्य नारायण प्रमाणिक ने बताया है कि विदेशों में मालदा के मधु की काफी मांग है. इसके अलावा बिहार, झारखंड, असम, महाराष्ट्र से काफी संख्या में प्राइवेट कंपनियों के लोग यहां मधु खरीदने आते हैं. इससे किसानों को अच्छा मुनाफा होता है. इस साल नोटबंदी की वजह से मधु किसानों को काफी नुकसान होने की आशंका है. कम दर पर मधु बेचने से उत्पादन खर्च तक निकालना मुश्किल हो जायेगा. उन्होंने इस मामले में राज्य सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है.

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