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मानव तस्करी के शिकंजे में फंसा नेपाल

सिलीगुड़ी. अंतराष्ट्रीय मानव तस्करी पर रोक लगाने के लिये अत्याधुनिक व्यवस्था, इंटरनेट और सोशल मीडिया की सहायता लेने पर सहमति बनी है. भारत और नेपाल के बीच एक व्हाट्सएप ग्रुप और एक इ-मेल प्रणाली बनाने का निर्णय लिया गया है. बुधवार को मानव तस्करी पर नकेल कसने के लिये नेपाल के वाणिज्य दूर मोहन निरौला […]

सिलीगुड़ी. अंतराष्ट्रीय मानव तस्करी पर रोक लगाने के लिये अत्याधुनिक व्यवस्था, इंटरनेट और सोशल मीडिया की सहायता लेने पर सहमति बनी है. भारत और नेपाल के बीच एक व्हाट्सएप ग्रुप और एक इ-मेल प्रणाली बनाने का निर्णय लिया गया है. बुधवार को मानव तस्करी पर नकेल कसने के लिये नेपाल के वाणिज्य दूर मोहन निरौला की अध्यक्षता में सिलीगुड़ी व जलपाईगुड़ी के स्वयंसेवी संगठनों व जिला चाइल्ड प्रोटेक्शन युनिट के सदस्यों की एक बैठक हुयी.

उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष अप्रैल महीने में कई बार आये भूकंप ने नेपाल को हिला कर दिया था. विश्व के मानचित्र में हिमालय की पड़ाड़ियों में बसा यह छोटा सा देश पूरी तरह से बिखर गया. नेपाल के लोग एक वर्ष पुरानी उस भयावह प्राकृतिक त्रासदी को अभी भी भूला नहीं पाये हैं. उस भयावह हादसे का असर अभी भी नेपाल की अर्थव्यवस्था पर है.

नेपाल सरकार इससे उबरने की हर कोशिश कर रही है. इधर ,इस प्राकृतिक आपदा के बाद नेपाल के काफी लोग अपना व परिवार के पालन-पोषण के लिये काम की तालाश में पड़ोसी देशों का रूख करने लगे. इसी का फायदा उठाकर मानव तस्कर गिरोह भी काफी सक्रिय हो गया. भूंकप के बाद नेपाल से भारत के रास्ते मानव तस्करी की गतिविधियां काफी बढ़ गयी है. काम की तालाश में भटक रहे नेपाली नागरिक खास कर महिलाओं को शिकार बनाया जा रहा है. वर्तमान में तस्करी के माध्यम से या काम की तालाश में या भटक कर भारत पहुंचे नेपाल के कुल 14 बच्चे दार्जिलिंग जिले में हैं. खुली सीमा से होकर बच्चे भटक कर या तस्करों के हाथों भारत में प्रवेश कर जाते हैं. प्रशासन या स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा इनकी बरामदगी तो की जाती है पर इनको वापस घर पहुंचाने में काफी मुश्किल होती है. पूरी कानूनी प्रक्रिया को मानकर बच्चो को वापस नेपाल भेजने में करीब एक वर्ष का समय लगता है. इस दौरान ये बच्चे सरकारी या जिला चाइल्ड वेलफेयर सोसाईटी के निर्देशानुसार किसी स्वयंसेवी संस्था के होम में रखे जाते हैं. इसी बीच परेशान होकर कइ बच्चे होम से भी भाग निकलते हैं. जिन्हें फिर से गिरफ्त में लेना मुश्किल होता है. ऐसे कई मामले सामने आये हैं. अभी हाल ही में सिलीगुड़ी स्थित एक ओपन सेल्टर (कन्सर्न),जिसका उपयोग सीडब्ल्यूसी द्वारा एक होम के रूप में किया जाता है, वहां से एक साथ दस बच्चे भाग निकले थे. प्रशासन और संस्थाओं की सहायता से चार बच्चों को वापस पकड़ लिया गया ,लेकिन छह बच्चे अभी भी लापता हैं. इन छह में कुछ बच्चे नेपाल के थे. जो काम की तालाश में भारत पहुंचे थे. इन सभी समस्याओं को लेकर आज की बैठक में चरचा की गयी. दार्जिलिंग जिला चाईल्ड प्रोटेक्शन अधिकारी मृणाल घोष ने बताया कि तस्करों पर लगाम लगाने के साथ बच्चों को उनके घर पहुंचाने की प्रक्रिया में सरलीकरण करने पर सहमति बनी है. इसके लिये भारत-नेपाल सीमा से सटे प्रत्येक जिले को लेकर एक व्हाट्स एप ग्रुप बनाने पर विचार किया जा रहा है. श्री घोष ने कहा कि मानव तस्करी को रोकने के लिये सशस्त्र सीमा बल(एसएसबी) भी सराहनीय भूमिका निभा रही है.

नेपाल के वाणिज्य दूत मोहन निरौला ने बताया कि आज की बैठक में मिले प्रस्तावों पर विचार किया जायेगा. भूकंप के बाद से लोग काम की तालाश में भटक रहे हैं. जिसका फायदा तस्कर उठा रहे हैं. मानव तस्करी को नियंत्रित करना आवश्यक है. बच्चों को वापस नेपाल पहुंचाने में कानूनी प्रक्रिया को सरल बनाने पर जोर दिया जा रहा है. इसके लिये नेपाल के कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ-साथ नेपाल सरकार से बातचीत की जायेगी.

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