12.5 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

ओल्ड मालदा: नोट बदलने पर रोक से आदिवासी गांव मुसीबत में

मालदा:हमलोगों का बैंक खाता नहीं है. गरमी के मौसम में धान, मकई, गेहूं आदि बेचकर कुछ पैसा कमाया था. उसी पैसे से घर-परिवार चल रहा है. शुक्रवार से बैंक 1000 और 500 रुपये के नोट नहीं बदल रहे हैं. पैसे के अभाव में गांव के कई घरों में चूल्हा नहीं जल रहा है. जलावन की […]

मालदा:हमलोगों का बैंक खाता नहीं है. गरमी के मौसम में धान, मकई, गेहूं आदि बेचकर कुछ पैसा कमाया था. उसी पैसे से घर-परिवार चल रहा है. शुक्रवार से बैंक 1000 और 500 रुपये के नोट नहीं बदल रहे हैं. पैसे के अभाव में गांव के कई घरों में चूल्हा नहीं जल रहा है. जलावन की लकड़ी नहीं खरीद पाने के कारण चूल्हा जलाने के लिए महिलाएं जंगल जाकर सूखे पत्ते इकट्ठा कर रही हैं. गांव के कुछ पुरुष नदियों में मछली पकड़ने जा रहे हैं, क्योंकि मजदूरी करने पर भी कहीं नकद पैसा नहीं मिल रहा है.

अगर कोई पैसा दे भी रहा है, तो पुराना 500 और 1000 का नोट ही दे रहा है.शनिवार को अपना यह दर्द श्रीरामपुर गांव की 70 वर्षीय वृद्ध आदिवासी महिला चुरका मार्डी ने बयान किया. श्रीरामपुर गांव ओल्ड मालदा ब्लॉक की आदिवासी बहुल भावुक ग्राम पंचायत में स्थित हैं. मालदा शहर से इस गांव की दूरी करीब 17 किलोमीटर है. गांव के लोगों को बैंकिंग काम-काज के लिए ओल्ड मालदा आना पड़ता है. पैसा बदलने के लिए शहर तक आने के लिए उन्हें आने जाने का भाड़ा भी खर्च करना पड़ता है.

कई लोगों की स्थिति भाड़ा देने लायक भी नहीं रह गई है.राज्य में तृणमूल के सत्ता में आने के बाद इस गांव में लाल मिट्टी और मोरम डालकर रास्ता बनाया गया. बिजली और पेयजल की व्यवस्था भी धीरे-धीरे ठीक की गई. पंचायत सूत्रों ने बताया कि श्रीरामपुर गांव में 64 परिवार हैं. गांव की कुल आबादी लगभग 550 है. इस आदिवासी गांव में एक प्राथमिक विद्यालय और एक उप-स्वास्थ्य केन्द्र भी है. लेकिन अगर किसी चीज का अभाव है, तो वह बैंक खाते और खुदरा रुपये का है. इसे लेकर गांव के आदिवासी भारी मुसीबत में हैं.गांव की एक अधेड़ विवाहित आदिवासी महिला सुकुमा सोरेन ने बताया कि उनके पति अकलू मार्डी टावर का काम-काज करने के लिए ओड़िशा गये हुए हैं. घर में दो छोटे-छोटे बेटे-बेटी हैं. वह बीड़ी बनाकर कुछ कमायी करती हैं. बीते 15 दिनों में उन्होंने 1500 रुपये का काम किया है. इसके अलावा घर में बचत किया हुए 500 रुपये के कुछ नोट भी हैं. कुल मिलाकर उनके पास 500-500 रुपये के आठ पुराने नोट हैं. उन्होंने सोचा था कि बैंकों में भीड़ कम होने के बाद वह इन नोटों को बदलवायेंगी. काम का नुकसान करके बैंक की लाइन में खड़ा हो पाना उनके लिए संभव नहीं था. लेकिन जब घर का खर्च चलना असंभव हो गया, तो वह शुक्रवार को पैसे बदलवाने निकलीं. लेकिन गांव के मोड़ पर पहुंचने पर उन्हें पता चला कि बैंक अब पुराने नोट नहीं बदलेंगे. इन पैसों को केवल खाते में जमा किया जा सकेगा. यह सुनते ही उन पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा. अब तक घर में पहले से मौजूद दाल-चावल से किसी तरह गुजारा चल रहा था. लेकिन अब क्या खायेंगे, बाजार हाट से कुछ कैसे खरीदेंगे यह समझ में नहीं आ रहा है. उनके पास बैंक खाता नहीं है. सुकुमा सोरेन से जब यह पूछा गया कि उन्होंने जन-धन खाता क्यों नहीं खुलवाया, तो जवाब में उन्होंने कहा कि इस योजना के बारे में उन्होंने कभी सुना ही नहीं. गांव के एक 60 वर्षीय आदिवासी किसान नरेन मार्डी ने बताया कि महाजन की जमीन पर खेती-बाड़ी करके वह घर-परिवार चलाते हैं. इस बारिश के मौसम में फसल अच्छी हुई थी. दाम भी बढ़िया मिला था. घर में 500 रुपये के छह पुराने नोट हैं. मैंने सोचा था कि बैंक में भीड़ कम होने के बाद इन नोटों को बदल लेंगे. लेकिन अब उनका सर्वनाश हो गया है. गत आठ नवंबर के बाद से वह एक-एक पैसा सोच-समझकर ही खर्च कर रहे हैं. नाती-नातिनों के लिए मांस-मछली, दूध जैसी पौष्टिक चीजें खरीदना असंभव हो गया है. उनके पास जो खुदरा पैसा है, जब वह खर्च हो जायेगा, तो इसके बाद वह क्या करेंगे. नरेन मार्डी कहते हैं कि अगर 500 के उनके नोट जल्दी ही नहीं बदल पाये तो उनके सामने भूखमरी की नौबत आ जायेगी. उनकी यह बातचीत सुनकर कई और ग्रामीण वहां पहुंच गये. सभी इस बात से नाराज थे कि सरकार ने नोट बदलने पर रोक लगा दी है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें