इस मौके पर मोथाबाड़ी की विधायक सबीना यासमीन, हरिश्चन्द्रपुर के विधायक मुश्ताक आलम, चांचल के विधायक आशीष महबूब, मालतीपुर के विधायक अरबेरूनी, मानिकचक के विधायक मुश्तकीन आलम तथा जिले के अन्य विधानसभा केन्द्रों के कांग्रेस विधायक उपस्थित थे. हालांकि इंगलिश बाजार के वाम मोरचा तथा कांग्रेस समर्थित निर्दलीय विधायक निहार घोष को इस मौके पर नहीं देखा गया.
ज्ञापन देने के बाद संवाददाताओं से बातचीत करते हुए मौसम नूर ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस किस आधार पर मालदा जिला परिषद पर कब्जा करने का दावा कर रही है. वह इस मुद्दे को लेकर कुछ नहीं समझ पा रही हैं. अगर कुछ सदस्य तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गये हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि जिला परिषद पर तृणमूल का कब्जा हो गया. 15 दिन हो गये हैं कांग्रेस के पांच तथा वाम मोरचा के 11 सदस्य तृणमूल में शामिल हुए हैं. उसके बाद से ही तृणमूल कांग्रेस ने जिला परिषद पर कब्जा करने का दावा ठोक दिया है. वास्तविकता यह है कि मालदा जिला परिषद के स्थायी समिति में तृणमूल का बहुमत नहीं है. ऐसे में जिला परिषद पर कब्जे का दावा बेमानी है. जिला परिषद के स्थायी समिति में कांग्रेस तथा वाम मोरचा के सदस्य अधिक हैं. उन लोगों ने बीडीओ से बैठक बुलाने की भी मांग की है. उसके बाद भी स्थायी समिति की बैठक बीडीओ नहीं बुला रहे हैं.
दरअसल राज्य की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के इशारे पर पूरा प्रशासन काम कर रहा है. मौसम नूर ने आगे कहा कि इस मुद्दे को लेकर वह सिलीगुड़ी में उत्तर कन्या जाकर डिवीजनल कमिश्नर को भी ज्ञापन दे चुकी हैं. अब उन्होंने मालदा के जिला शासक तथा पुलिस अधीक्षक को ज्ञापन दिया है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार भेद-भाव कर रही है. यही वजह है कि जिला परिषद में अविश्वास प्रस्ताव लाने के बाद भी आम सभा नहीं बुलायी गई है. प्रशासन आखिर क्यों चुप्पी साधे है. इन्हीं सब बातों पर ध्यान दिलाने के लिए यह ज्ञापन दिया गया है. उन्होंने आगे कहा कि मंगलबाड़ी ग्राम पंचायत पर कांग्रेस का कब्जा है, लेकिन यहां कांग्रेसी सदस्यों को ही नहीं घुसने दिया जा रहा है. जाहिर है यहां भी तृणमूल कांग्रेस कब्जे की तैयारी में लगी हुई है. उन्होंने बाढ़ तथा कटाव को लेकर भी सरकार पर निशाना साधा. मौसम नूर ने कहा कि कालियाचक-3 तथा मानिकचक ब्लॉक में बाढ़ तथा नदी कटाव से स्थिति भयावह बनी हुई है. राज्य तथा केन्द्र सरकार इसको लेकर कुछ भी नहीं कर रही है. कटाव में बेघर हुए लोग आज भी खुले आसमान के नीचे दिन गुजार रहे हैं. उन्होंने बाढ़ तथा कटाव पीड़ितों के पुनर्वास की भी मांग की.