सिलीगुड़ी: सिंगूर मामले का निपटारा होने के बाद ठिकनीकाटा, कावाखाली लैंड ओनर वेलफेयर सोसाइटी के सदस्यों को भी अपनी जमीन पाने की आस जाग उठी है. उन्हें एक किरण दिखाइ देने लगी है. इस किरण के साथ संगठन के सदस्यों ने फिर से राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात करने की कवायद तेज कर दी है. सोसायटी के अध्यक्ष मणिमोहन विश्वास ने बताया कि हम शुरूआत से ही तृणमूल पर भरोसा जताये हुए थे. सिंगुर मामले के निपटारे के बाद हमें भी अपनी जमीन वापस मिलने की उम्मीद है.
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2004 में तत्कालीन माकपा सरकार ने सिलीगुड़ी जलपाईगुड़ी विकास प्राधिकरण के मार्फत सिलीगुड़ी के निकट कावाखाली में उपनगरी बनाने के लिये कुल 302 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था. उस समय माकपा सरकार में शहरी विकास मंत्री और एसजेडीए के चेयरमैन पद पर सिलीगुड़ी नगर निगम के वर्तमान मेयर व विधायक अशोक भट्टाचार्य थे. 302 एकड़ जमीन करीब सोलह सौ स्थानीय लोगों से ली गयी थी. कुछ लोग तो मुआवजे की राशि देखकर राजी हुए थे, लेकिन कुछ लोग राजी नहीं थे. अपनी जमीन को बचाने के लिये अनिच्छुक लोगों ने जमीन रक्षा कमिटी तैयार कर माकपा सरकार के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया था. ठीक इसी समय नंदीग्राम में भी माकपा सरकार द्वारा जमीन अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन शुरू हुआ था. इस आंदोलन की भी ममता बनर्जी और तृणमूल के नेताओं ने अगुवायी की थी. इसी क्रम में कावाखाली जमीन अधिग्रहण के खिलाफ स्थानीय नागरिकों के आंदोलन को वर्तमान में राज्य के पर्यटन मंत्री गौतम देव व प्रतुल चक्रवर्ती सहित कइ तृणमूल नेताओ ने समर्थन किया था. तृणमूल का साथ पाकर आंदोलनकारियों ने ठिकनीकाटा, कावाखाली लैंड ओनर वेलफेयर सोसाईटी का गठन किया. इसके बाद हा कोर्ट मामला दायर करा दिया. इस मामले में अदालत ने सरकार के खिलाफ फैसला दिया. फिर एसजेडीए ने अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए डिवीजन बेंच में अपील की. डिवीजन बेंच ने तत्कालीन माकपा सरकार को सही ठहराया और आंदोलनकारी जमीन मालिक मुकदमा हार गये. मामला हारने के बाद भी आंदोलनकारी जमीन मालिक किसी भी कीमत पर सरकार को जमीन देने के लिये तैयार नहीं थे. हांलाकि मामला हारने के बाद कुछ लोगों ने आंदोलन से मुंह जरूर मोड़ लिया था. कुल सोलह सौ लोगों में से अधिकांश ने राज्य सरकार से मुआवजा लेकर जमीन दे दी . लेकिन इनमें 51 ऐसे लोग थे जिन्होंने अंतिम सांस तक सरकार से लड़ने की ठान ली थी. इन 51 लोगों ने सरकार के मुआवजे को ठुकरा दिया. 51 लोगों ने अपनी कुल 11.5 एकड़ जमीन वापस देने की मांग जारी रखी. जमीन वापसी की इनकी मांग को तृणमूल ने समर्थन दिया. इसके बाद राज्य सरकार और इन अनिच्छुक जमीन मालिकों के बीच जंग जारी रही. इसके कुछ साल बाद वर्ष 2011 में राज्य में सत्ता परिवर्तन हुआ. यह परिवर्तन सिंगुर आंदोलन की वजह से ही संभव हुआ. हाल ही में सिंगुर अधिग्रहण मामले में अदालत के फैसले से जमीन मालिकों को उम्मीद जगी है. अदालत की राय से तृणमूल तो काफी खुश है. पूरे राज्य में सिंगुर दिवस भी पालित किया जा रहा है. राज्य की सत्ता में तृणमूल के आने के बाद ठिकनीकाटा, कावाखाली लैंड ओनर वेलफेयर सोसाइटी के सदस्यों में एक नयी आस जागी थी. लेकिन पिछले पांच वर्षों से कानूनी पेंच का हवाला देकर तृणमूल भी इस मामले को टाल रही थी. सिंगुर मामले में अदालत की राय जमीन मालिकों के पक्ष में आने से इनकी आस फिर से जाग उठी है.
इस संबंध में सोसाईटी के सदस्य मणिमोहन विश्वास ने कहा कि तृणमूल हमेशा से हमारी मांग को समर्थन दे रही है. हांलाकि तृणमूल सरकार ने पिछले पांच वर्षों में हमारी मांग के लिये कदम नहीं बढ़ाया है. सिर्फ कानूनी पेंच का आश्वासन ही मिला है.सिंगुर का फैसला जमीन मालिकों के पक्ष में आने से हम फिर से उत्साहित हैं. अविलंब हमारी जमीन वापस ना मिलने पर हम इस तृणमूल सरकार के खिलाफ भी आवाज उठायेंगे.
इस संबंध में राज्य के पर्यटन मंत्री गौतम देव ने बताया कि आगामी दस सितंबर को एसजेडीए की बोर्ड बैठक है. इस बैठक में कावाखाली के इस जमीन मामले को लेकर भी निर्णय लिया जायेगा. इसके बाद हम मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात कर इस संबंध में विचार-विमर्श करेगें.
एसजेडीए के चेयरमैन सौरभ चक्रवर्ती ने कहा कि इस मामले में कुछ कानूनी अड़चन थी. सिंगुर पर फैसला मालिकों के पक्ष में आने से यह बाधा अब दूर होती दिख रही है.