यहां करीब छोटे-बड़े 350 चाय बागान हैं. यहां करीब 15 लाख चाय श्रमिक काम करते हैं. वर्तमान में दस बागानों के बंद होने की बात कही जा रही है, लेकिन इन बागान मालिकों का कहना है कि बागान बंद करने को लेकर श्रमिकों को कोई नोटिस नहीं दी गई है. एक-दो चाय बागानों में श्रमिकों की समस्याओं को लेकर अदालत में मामला चल रहा है. कुछ चाय बागान मालिक राज्य सरकार का सहयोग नहीं कर रहे हैं, जिसकी वजह से राज्य सरकार की योजनाओं को चाय बागानों में चालू करने में परेशानी हो रही है. राज्य सरकार की ओर से चाय श्रमिकों को भत्ते दिये जा रहे हैं. कई चाय बागान मालिकों ने बागान बंद करने की कोई नोटिस नहीं दी, लेकिन वह बागान छोड़कर चले गये हैँ. खासकर इसी प्रकार के चाय बागानों में इस प्रकार की समस्या आ रही है.
उन्होंने आगे कहा कि वाम मोरचा के शासनकाल में चाय बागानों की स्थिति काफी खराब थी. काफी संख्या में चाय श्रमिक रोजगार की तलाश में चाय बागान छोड़कर दूसरे राज्यों में चले गये हैं. ऐसे चाय श्रमिकों की भी सूची डाटा बैंक में दर्ज करायी जायेगी. यह लोग दूसरे राज्य में क्यों गये, उसके कारणों को भी दर्शाया जायेगा.
उन्होंने आगे कहा कि चाय निदेशालय चाय बागानों तथा चाय श्रमिकों के बीच मध्यस्थता का भी काम करेगी, ताकि चाय श्रमिकों की समस्या दूर हो सके. यहां उल्लेखनीय है कि वर्ष 2013 में जब पुर्णेन्दु बोस राज्य के श्रम मंत्री थे तब उन्होंने भी चाय बागानों में इस प्रकार की समीक्षा करवायी थी. बागान श्रमिकों की संख्या, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, सड़क, पानी, मजदूरी, पीएफ, ग्रेच्युटी आदि की स्थिति उस समीक्षा में दर्ज है. अब चाय निदेशालय द्वारा भी इसी तरह के समीक्षा की बात की जा रही है. समीक्षा के बाद एक रिपोर्ट तैयार कर राज्य सरकार को सौंप दी जायेगी. श्री चक्रवर्ती ने कहा है कि चाय निदेशालय के एजेंडे में चाय श्रमिकों का कल्याण सबसे ऊपर है.