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विपत्ति का करो बंटवारा : राजनजी

हावड़ा : भरत जी जब अयोध्या पहुंचे तो उन्हें बड़े भाई राम के वन में जाने की बातों की जानकारी हुई. तो उन्हें राजगद्दी पर बैठने से इंकार कर दिया. उन्होंने कहा कि राजगद्दी तो भगवान का होना था, इसे मैं कैसे ले सकता हूं. उन्होंने माता कौशल्या और सुमंत जी द्वारा बार-बार निवेदन करने […]

हावड़ा : भरत जी जब अयोध्या पहुंचे तो उन्हें बड़े भाई राम के वन में जाने की बातों की जानकारी हुई. तो उन्हें राजगद्दी पर बैठने से इंकार कर दिया. उन्होंने कहा कि राजगद्दी तो भगवान का होना था, इसे मैं कैसे ले सकता हूं. उन्होंने माता कौशल्या और सुमंत जी द्वारा बार-बार निवेदन करने पर भी वे नहीं सुने. उक्त बातें राजन जी महाराज ने कही.
सोमवार को श्री रामकथा के सातवें दिन भरत चरित्र के प्रसंग को सुना रहे थे. इस मौके पर यजमान की भूमिका में अशोक ठाकुर सपत्नीक मौजूद थे.
हम राम जी के राम जी हमारे हैं सेवा ट्रस्ट एवं मानस मंथन समिति के तत्वा‍धान में हावड़ा के श्याम गार्डेन में आयोजित श्री राम कथा के सातवें दिन में भक्तों को संबोधित करते हुए व्यासपीठ पर विराजे राजन जी महाराज ने कहा कि जब भरत जी ने बड़े भाई रामजी के पत्नी व लक्ष्मण सहित वन में जाने की बात सुनी तो उन्होंने राजगद्दी लेने से इंकार कर दिया. वे नहीं माने और राजतिलक की सारी सामग्री और अयोध्यावासियों को लेकर वन के उस स्थान पर पहुंचे जहां श्री राम जी माता सीता तथा लक्ष्मण जी के साथ बैठ थे.
वहां पहुंचकर भरत जी भगवान को देखकर विलाप करने लगे. उन्होंने कई तरह से श्री रामजी को अयोध्या की राजगद्दी पर आसीन होने का निवेदन किया, लेकिन भगवान नहीं माने. भगवान ने भरत जी से कहा कि अब राजगद्दी पर बैठने का अधिकार तुम्हारा है. उन्होंने कहा कि राजगद्दी कभी खाली नहीं रहनी चाहिए. इसलिए तुम जाओ और अयोध्या की राजगद्दी संभालों लेकिन भरत जी किसी भी रुप में उनकी बातों को मान नहीं रहे थे. तब भगवान ने कहा कि भरत तुम अपने कर्तव्य का पालन करो और मैं अपने कर्तव्य का पालन करता हूं.
बड़े भाई को अपने सिद्धांत से समझौता न करते देख तब भरत जी ने कहा कि तब मुझे कोई निशानी दीजिए. श्री रामजी भरत के इस आग्रह को ठुकरा नहीं सके और अपने पैर की खड़ाऊं दे दी. जिसे लेकर अयोध्या वासियों के साथ भरत जी अयोध्या लौट गए और भगवान के खड़ाऊं को राजगद्दी पर रख कर शासन किया. राम कथा के अंत में संस्था की ओर से पं. मधुसूदन मिश्र, बासुदेव टिकमाणी, धनपाल मिश्र और राजेश्वर सिंह को सम्मानित किया गया.
कार्यक्रम का संचालन विरेंद्र शर्मा ने किया. इस मौके पर बतौर विशिष्ट अतिथि मुन्ना सिंह, राजा बाबू सिंह, शशिधर सिंह, मुन्ना तिवारी सहित कई गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे. कार्यक्रम को सफल बनाने में शिवजी तिवारी, भोला सोनकर, पं. ओमप्रकाश मिश्रा, अशोक ठाकुर, राजेश पाण्डे, समर सिंह व अन्य सक्रिय रहे.

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