उन्होंने कहा कि सड़क हादसों के शिकार लोग एवं नदियों से बरामद लाशें अधिकांशतः लावारिश होती हैं. परिजनों का अता-पता नहीं लगता और शिनाख्त न होने पर मूर्दा घरों में यूं ही पड़े रहते हैं. यह सोचकर ही आत्मग्लानी महसूस होती है. कशमेरा के इस अनोखे कार्य के लिए पुलिस द्वारा हमेशा आर्थिक सहयोग किया जाता है.
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कशमेरा बने ‘डेड बॉडी’ वाले दादा
सिलीगुड़ी. सड़क दुर्घटना में मारे गये लोगों एवं नदियों से लाशों को उठाते-उठाते कशमेरा उर्फ के वर्ल्ड ‘डेड बॉडी वाले दादा’ बन गये हैं और मृतकों का ‘भगवान’ भी कहलाने लगे हैं. प्रभात खबर के प्रतिनिधि के साथ एक विशेष वार्ता के दौरान कशमेरा ने राष्ट्रीय राजमार्ग (हाइवे) में विभिन्न सड़क दुर्घटनाओं में मारे गये […]
सिलीगुड़ी. सड़क दुर्घटना में मारे गये लोगों एवं नदियों से लाशों को उठाते-उठाते कशमेरा उर्फ के वर्ल्ड ‘डेड बॉडी वाले दादा’ बन गये हैं और मृतकों का ‘भगवान’ भी कहलाने लगे हैं.
प्रभात खबर के प्रतिनिधि के साथ एक विशेष वार्ता के दौरान कशमेरा ने राष्ट्रीय राजमार्ग (हाइवे) में विभिन्न सड़क दुर्घटनाओं में मारे गये लोगों एवं विभिन्न नदियों से अब-तक दो हजार से भी अधिक लाशों को उठाने का दावा किया. पेशे से ऑटो चालक कशमेरा पिछले 28 वर्षों से यह अनोखा कार्य कर रहे हैं. लावारिश पड़े लाशों को हाथ लगाना तो दूर पास भी जाने से जहां अधिकांश लोग कतराते हैं वहीं, मृतकों के भगवान, कशमेरा को लावारिश लाशों को उठाने और लाश को परिजनों तक पहुंचाने जैसे कार्यों से आत्म शांति मिलती है.
सरकारी सहयोग मिले तो घंटों का काम मिनटों में : कशमेरा का दावा है कि अगर सरकारी सहयोग मिले तो घंटों का काम वह मिनटों में निपटा सकते हैं. उन्होंने कहा कि आर्थिक तंगी की वजह से अत्याधुनिक सामानों के अभाव में नदियों से लाश निकालने में घंटों समय लग जाता है. अगर उनके पास स्पीड बोट, लाइफ जैकेट, ट्रेचर, पावर ग्लास, वाटर हेल्मेट, पावरफूल हेंड ग्लब्स, दूरबीन, हाइक्वालिटी प्लास्टिक जैसे अत्याधुनिक सामानों की सुविधा हो तो नदियों या कैनल के फाटकों में अटके लाशों को भी बाहर निकालने में ज्यादा समय नहीं लगेगा. कशमेरा ने कहा कि इसके लिए वह कई बार सरकारी अमलों डीएम, एसडीओ यहां तक की सिलीगुड़ी के विधायक डॉ रूद्रनाथ भट्टाचार्य से भी गुहार लगा चुके हैं. हर बार आश्वान के बाद उनकी चिट्ठियां फाइलों में बंद हो जाती है और आगे कुछ नहीं होता.
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